5 घंटे पहले

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रिश्ते निभाना अब किसी चैलेंज से कम नहीं है। हर कोई अपनी शर्तों पर जीना चाहता है। रिश्ते में जब एडजस्टमेंट की बात आती है तो इसकी उम्मीद पार्टनर से की जाती है। अपनी तरफ से एडजस्टमेंट की कोशिश नहीं की जाती।

‘चैट रूम’ में आज चर्चा एक ऐसे कपल की जहां पत्नी को शिकायत है कि उससे अब पति का व्यवहार बर्दाश्त नहीं होता। शादी के 10 साल बाद उसके मन में तलाक का खयाल आ रहा है। रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. माधवी सेठ बता रही हैं इस समस्या का समाधान।

हमारी अरेंज मैरिज है और शादी को 10 साल हो गए हैं। शादी के बाद से ही हमारे विचार नहीं मिलते जिसके कारण हमारा रिश्ता कभी नॉर्मल नहीं रह पाया। मैंने अपनी तरफ से रिश्ता निभाने और शादी बचाने की पूरी कोशिश की। लेकिन अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा है।

अब न पति मुझे बर्दाश्त कर पा रहे हैं और न ही मुझमें सहन करने की शक्ति बची है। हमारे रिश्ते में दरार बढ़ती ही जा रही है। मेरे मन में बार बार तलाक का खयाल आता है। मुझे इस रिश्ते को निभाना चाहिए या छोड़ देना चाहिए? क्या शादी के 10 साल बाद तलाक लेना सही है?

ये आज की एक बड़ी समस्या है। रिश्तों में अब सहनशीलता खत्म होई जा रही है। मूव ऑन करना इतना आसान हो गया है कि लोगों में अब रिश्ता तोड़ने से पहले अपने रिश्ते को एक चांस देने का सब्र तक नहीं बचा है। लेकिन ये जल्दबाजी सही नहीं है। बिना सोचे समझे मूव ऑन करने से अक्सर बाद में पछतावा ही हाथ आता है।

सहनशीलता क्यों कम हो रही है?

हर रिश्ते में सहनशीलता जरूरी है, फिर चाहे पति-पत्नी का रिश्ता हो, दो फ्रेंड्स या भाई-बहन। कोई भी दो इंसान एक जैसे नहीं हो सकते। दोनों की आदतें, सोचने और जीने का तरीका अलग हो सकता है। ऐसे में एक दूसरे में मीन मेख निकालने की बजाय एक दूसरे में खूबियां ढूंढना सही रास्ता है। किसी को बदलने के बजाय उसे उसी रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा वो है। इससे रिश्ते में अपेक्षाएं कम होती हैं और साथ रहना आसान हो जाता है।

पति-पत्नी में अलगाव की सबसे बड़ी वजह एक दूसरे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें करना है। दोनों ही जब खुद को सही और साथी को गलत साबित करने की होड़ में लग जाते हैं तो रिश्ते में खटास बढ़ने लगती है।

हम अन्य रिश्तों में तो आसानी से एडजस्टमेंट कर लेते हैं, लेकिन जब जीवनसाथी की बात आती है तो हम चाहते हैं कि वह खुद को हमारे लिए पूरी तरह बदल दे। ये उम्मीदें पति और पत्नी दोनों की तरफ से हो सकती हैं।

जब उम्मीदें इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें पूरा कर पाना संभव नहीं हो पाता, तो कपल का एक साथ रहना मुश्किल हो जाता है।

आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचाएं

चाहे पति हो या पत्नी, अपने रिश्ते को बचाने के लिए कुछ हद तक बर्दाश्त करने में कोई बुराई नहीं। लेकिन जब बात आत्मसम्मान तक आ जाए तो आपको अपनी बात रखने और अपने हक में निर्णय लेने का पूरा अधिकार है। थोड़ी बहुत नोकझोंक हर पति-पत्नी के बीच होती है, लेकिन जब पार्टनर आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने लगे तो सब्र टूटने लगता है।

आत्मनिर्भरता से बढ़ा महिलाओं का कॉन्फिडेंस

पहले के मुकाबले अब महिलाएं भारी मात्रा में आत्मनिर्भर होने लगी हैं। इससे उनका कॉन्फिडेंस बढ़ा है। पहले महिलाएं पूरी तरह से पति पर आश्रित रहती थीं इसलिए चुपचाप सबकुछ बर्दाश्त करती चली जाती थीं। लेकिन आज की महिलाएं ये जानती हैं कि तलाक हो भी गया तो वह खुद को संभाल लेगी। पेरेंट्स भी तलाक होने पर बेटी का साथ देने लगे हैं। तलाक लेना अब पहले की तरह टैबू नहीं रह गया है। यही वजह है कि पहले के मुकाबले अब तलाक के केसेस तेजी से बढ़ रहे हैं।

तलाक लेना आसान नहीं

पहले के मुकाबले अब तलाक के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं। लेकिन शादी के बाद लंबा समय एक साथ गुजारने के बाद तलाक लेना इतना आसान नहीं होता। जब आप किसी नए रिश्ते में बंधते हैं तो जरूरी नहीं कि आपको वहां भी संतुष्टि मिले। ऐसे में व्यक्ति बार बार दोनों पिछले रिश्ते से अपने वर्तमान रिश्ते की तुलना करने लगता है। ऐसा करते समय वह बार-बार कंफ्यूज हो जाता है कि उसका यह फैसला सही है या गलत।

रिश्ता निभाना सीखें

रिश्ते निभाना एक कला है जिसे सीखना हर किसी के लिए जरूरी है। जब आप जन्म लेते हैं तो आपको कोई भी रिश्ता चुनने का अधिकार नहीं मिलता। आपके माता-पिता, भाई-बहन जैसे भी हैं, आपको उनके साथ एडजस्ट करके रहना होता है। तब आपके मन में रिश्ता तोड़ने का ख्याल नहीं आता। लेकिन लाइफ पार्टनर का चुनाव आप अपनी मर्जी से करते हैं। इस रिश्ते में आपको रिश्ता तोड़ने की लिबर्टी मिलती है इसलिए आप आसानी से फैसला कर लेते हैं।

रिश्ता तोड़ने से पहले सोचें

पति हो या पत्नी, रिश्ता तोड़ने से पहले उन्हें एक बार इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि अगर वो कोशिश करते तो क्या अपने रिश्ते को बचा सकते थे? रिश्ता टूटने में उनका खुद का दोष कितना है। पार्टनर को दोषी ठहराने से पहले अपने व्यवहार पर ध्यान दें। कई बार जल्दबाजी में लिए गए फैसले से बाद में पछतावे के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता।

आप दोनों ने 10 साल साथ गुजारे हैं। तलाक का फैलसा लेने से पहले पार्टनर से इस बारे में बात करें। आपकी उनसे क्या शिकायते हैं और पति को आपसे क्या उम्मीदें हैं, इस बारे में दोनों अपनी बात खुलकर रखें। फिर विचार करें कि क्या इसका समाधान निकाला जा सकता है? जरूरत पड़े तो काउंसलर की मदद लें। कई बार एक्सपर्ट के समझाने से समस्या आसानी से हल हो जाती है।

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मार खाकर रिश्ता निभाना कोई समझदारी नहीं है। पति-पत्नी ही नहीं, किसी को भी किसी पर हाथ उठाने का अधिकार नहीं है। कई घरों में महिलाएं चुपचाप पति की मार खाती हैं, लेकिन ये बात घर से बाहर नहीं निकलती। पढ़ी-लिखी महिलाएं भी पति से पिटती हैं, लेकिन इसके बारे में किसी से बात नहीं करतीं। उन्हें अपनी प्रेस्टीज की चिंता रहती है, लेकिन इसे बढ़ावा देकर कई बार वो अपने लिए मुसीबत मोल ले लेती हैं। फिर जब पति किसी के सामने हाथ उठाता है तो भेद खुल ही जाता है। तब उनके लिए इसे बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है।

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शादी करने के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं- एक साथ और दूसरा संतान। यानी शादी के बाद दो लोग एक दूसरे का साथ पाकर, साथ मिलकर अपना वंश आगे बढ़ाते हैं। शादी के बाद जब साथ मिल जाता है, तो बच्चे की जरूरत महसूस होने लगती है। पति-पत्नी जल्दी बच्चा न भी चाहें तो परिवार द्वारा प्रेशर बढ़ा दिया जाता है।

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