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वॉशिंगटन4 मिनट पहले

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ट्रम्प ने 11 जनवरी को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट उनके विरोधियों को एक फैसले से शांत कर देगा। (फाइल) - Dainik Bhaskar

ट्रम्प ने 11 जनवरी को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट उनके विरोधियों को एक फैसले से शांत कर देगा। (फाइल)

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन से जुड़ी बड़ी राहत दी है। ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक- सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने कोलोराडो राज्य की अदालत के एक फैसले को पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोलोराडो के प्राइमरी बैलट पेपर से ट्रम्प का नाम नहीं हटाया जा सकता। इस फैसले के मायने ये हुए कि अमेरिका के सभी 50 राज्यों में ट्रम्प का नाम बैलट पेपर पर रहेगा।

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इन्हीं 9 जजों ने ट्रम्प के हक में फैसला दिया है। (फाइल)

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इन्हीं 9 जजों ने ट्रम्प के हक में फैसला दिया है। (फाइल)

विरोधियों की पिटीशन खारिज

  • ट्रम्प पर अमेरिका की कई अदालतों में अलग-अलग मामलों में केस चल रहे हैं। लेकिन, सियासी लिहाज से देखें तो 2024 में दोबारा राष्ट्रपति बनने की राह में सबसे बड़ा रोढ़ा 6 जनवरी 2021 को अमेरिकी संसद पर हमले की साजिश रचने का है। ट्रम्प पर ये आरोप भारी इसलिए पड़ रहे थे, क्योंकि करीब एक महीने में तीन राज्यों (कोलोराडो, माइने और इलिनोइस) ने प्राइमरी बैलट से उनका नाम हटाने के आदेश दिए।
  • अगर बाकी राज्य इस फॉर्मूले पर चलते तो ट्रम्प 2024 में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट नहीं बन पाते। इसकी सीधी सी वजह यह होती कि वो प्राइमरी इलेक्शन में प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट बनने के लिए जरूरी वोट ही हासिल नहीं कर पाते। और अगर ऐसा होता तो जाहिर है कि वो प्रेसिडेंशियल इलेक्शन भी नहीं लड़ पाते। लिहाजा, सोमवार को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला ट्रम्प के लिए बेहद खुशनुमा खबर है।
  • ट्रम्प के विरोधियों ने उनके खिलाफ कई पिटीशन्स दायर की हैं। उनकी सबसे बड़ी मांग ही यही है कि प्राइमरी बैलट से पूर्व राष्ट्रपति का नाम हटाया जाए। उनकी दलील है कि अमेरिकी संविधान का आर्टिकल 14 ट्रम्प को इलेक्शन लड़ने से रोकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मांग खारिज कर दी है।
ट्रम्प ने राज्यों की अदालतों के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया और अब यह फैसला सामने आया है। (फाइल)

ट्रम्प ने राज्यों की अदालतों के फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया और अब यह फैसला सामने आया है। (फाइल)

24 साल बाद इतना अहम फैसला

  • ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक- साल 2000 में राष्ट्रपति चुनाव के पहले इसी तरह का केस सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था। तब मुकाबला जॉर्ज बुश जूनियर और अल गोर के बीच था। उस वक्त कोर्ट का फैसला बुश के हक में आया था।
  • कोलोराडो के 6 वोटर्स ने सुप्रीम कोर्ट में दायर पिटीशन में कहा था- अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 14 के सेक्शन 3 में उन लोगों के इलेक्शन में हिस्सा लेने पर रोक का जिक्र है, जिन पर संविधान या संसद के काम में रुकावट या किसी तरह की साजिश में शामिल होने के आरोप होते हैं। इन्हीं आरोपों के आधार पर कोलोराडो की डिस्ट्रिक्ट जज ट्रेसी पोर्टर ने पिछले हफ्ते प्राइमरी बैलट से ट्रम्प का नाम हटाने का आदेश दिया था।
  • कोलोराडो के सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले की सुनवाई की, लेकिन कोई स्पष्ट फैसला नहीं दिया। उसने सेक्शन 3 के एक हिस्से के बारे में कहा कि ट्रम्प पर आरोप सही हैं, लेकिन दूसरे हिस्से का जिक्र ये कहते हुए किया कि उन्हें चुनाव लड़ने या प्रेसिडेंट बनने से नहीं रोका जा सकता। इसके बाद ट्रम्प ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया और अब यह फैसला सामने आया है।

इस फैसले के मायने समझिए

  • चूंकि यह फैसला फेडरल सुप्रीम कोर्ट ने दिया है लिहाजा, इस बात की आशंका अब कम ही है कि किसी भी राज्य में ट्रम्प का नाम प्राइमरी बैलट से हटाया जाएगा। हालांकि, कई राज्यों में उन पर केस चल रहे हैं। तकनीकि तौर पर ये भले ही चलते रहे, लेकिन बेअसर रहेंगे।
  • सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में एक कानूनी पहलू अहम है। इसमें कहा गया है- कॉन्सिट्यूशन के सेक्शन 3 को लागू करने का अधिकार मोटे तौर पर संसद (कांग्रेस) को है। राज्य सिर्फ प्रतिनिधियों के जरिए मांग कर सकते हैं। यह कानूनी व्यवस्था पूरी तरह दुरुस्त है। खास तौर पर फेडरल ऑफिसर्स (यहां ऑफिसर का मतलब प्रेसिडेंट) के खिलाफ राज्य सेक्शन 3 का इस्तेमाल नहीं कर सकते।
  • अब जिन तीन राज्यों ने ट्रम्प का नाम प्राइमरी बैलट से हटाया था, उन्हें फैसला बदलना पड़ेगा। 50 में से 30 राज्यों में ट्रम्प का नाम प्राइमरी बैलट से हटाने की मांग की गई है।
6 जनवरी 2021 को हुए कैपिटल हिल दंगे में कम से कम 138 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। जवाबी फायरिंग में 5 से ज्यादा उपद्रवियों की मौत हुई थी। (फाइल)

6 जनवरी 2021 को हुए कैपिटल हिल दंगे में कम से कम 138 पुलिसकर्मी घायल हुए थे। जवाबी फायरिंग में 5 से ज्यादा उपद्रवियों की मौत हुई थी। (फाइल)

ट्रम्प संसद हिंसा के जिम्मेदार

  • दिसंबर 2023 में कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट ने ट्रम्प को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था- इसमें कोई दो राय नहीं कि पूर्व राष्ट्रपति किसी न किसी तौर पर 6 जनवरी 2021 की हिंसा में जाने या अनजाने तौर पर शामिल थे। इसका सीधा असर 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में ट्रम्प को मिलने वाले वोटों पर होगा।
  • इसके बाद माइने राज्य के चीफ इलेक्शन ऑफिसर ने ट्रम्प का नाम प्राइमरी इलेक्शन बैलट पेपर से हटाने का आदेश दिया था। यह फैसला शेना बेलोस ने किया। उन्हें डेमोक्रेट पार्टी और बाइडेन का करीबी समझा जाता है। बेलोस के मुताबिक- कैपिटॉल हिल दंगों के लिए ट्रम्प जिम्मेदार हैं। उन्हें समर्थकों को रोकने के बजाए भड़काया।
  • बेलोस ने कहा था- मैं जानती हूं कि इसके पहले किसी प्रेसिडेंशियल कैंडिडेट के बारे में हमारे राज्य में इस तरह का फैसला नहीं किया गया। मैंने अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन की धारा 3 का इस्तेमाल किया है। लेकिन, ये भी सच है कि पहले इस तरह की हरकत भी नहीं हुई थी।
  • अमेरिकी मीडिया हाउस ‘द हिल’ के मुताबिक- ट्रम्प की स्ट्रैटेजी यह है कि इन मामलों को लंबे वक्त चलने दिया जाए, क्योंकि वो विक्टिम कार्ड खेलकर सियासी बढ़त हासिल करना चाहते हैं। इसमें उन्हें कामयाबी भी मिल रही है। मसलन साउथ कैरोलिना निकी हेली का होम स्टेट है। इसके बावजूद
  • ‘फॉक्स न्यूज’ के पॉलिटिकल एक्सपर्ट मार्क स्टोन कहते हैं- जॉर्जिया में ट्रम्प के खिलाफ 2020 के नतीजे पलटने की साजिश के दो मामलों में आरोप तय हो चुके हैं। हालांकि, 6 जनवरी हिंसा के मामले में उन पर सीधे तौर पर कोई आरोप ही नहीं हैं। इन्हें साबित करना लगभग नामुमकिन है। अब डेमोक्रेट्स अपनी सरकारों वाले राज्यों में अगर ट्रम्प को कानूनी मामलों में फंसाएंगे तो वो ट्रम्प को हीरो ही बना रहे हैं। ट्रम्प भी तो यही चाहते हैं।

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