नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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भारतीय समाज में सेक्शुअल हेल्थ और सेक्शुएलिटी एक बड़ा मुद्दा है। हर कोई इस विषय को लेकर उलझा बैठा है क्योंकि सेक्स एजुकेशन की देश में कमी है। डॉ. निकिता दौंड भी अपनी सेक्शुएलिटी को लेकर कंफ्यूज रहीं क्योंकि वह बाइसेक्शुअल हैं। ( बाइसेक्शुअल यानी वह व्यक्ति जो स्त्री और पुरुष, दोनों के प्रति बराबर आकर्षित हो) इसलिए उन्होंने समाज में महिलाओं और एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी की सेक्शुअल हेल्थ के प्रति जागरूकता फैलाने का बीड़ा उठाया।

‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए मुंबई की सेक्सोलॉजिस्ट और सेक्शुअल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. निकिता दौंड से।

बचपन से गायनेकोलॉजिस्ट बनना चाहती थी

मेरी मां गायनेकोलॉजिस्ट और पापा पीडियाट्रिशियन हैं। बचपन में ही मैंने तय कर लिया था कि मुझे डॉक्टर ही बनना है। इसलिए मैंने एमबीबीएस की पढ़ाई की।

जब मैं किशोर अवस्था में पहुंची तो मैंने नोटिस किया कि मुझे लड़कियां अच्छी लगती हैं और मैं उनकी तरफ आकर्षित होती हूं लेकिन मैंने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया।

धीरे-धीरे बड़ी हुई तो पता चला कि मैं क्वीर यानी बाइसेक्शुअल हूं यानी मुझे लड़कियां और लड़के दोनों ही अट्रैक्ट करते हैं।

एमबीबीएस की डिग्री के बाद प्रैक्टिस शुरू की तो मां के क्लिनिक में कई महिलाएं आती थीं जो सेक्शुअल हेल्थ को नजरअंदाज कर बीमार पड़ जाती थीं।बस यहीं से लगा कि मुझे फीमेल सेक्शुअल हेल्थ पर और चूंकि मैं क्वीर हूं तो LGBTQ लोगों की हेल्थ के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए और इसलिए मैंने रेनबो कम्युनिटी की सेहत के लिए काम करना शुरू किया।

बॉलीवुड मूवी देख पेरेंट्स से पूछा सवाल

मैं अपनी सेक्शुएलिटी को समझ नहीं पा रही थी तो मैंने अपनी एक कजिन से ‘गे’ और ‘लेस्बियन’ के बारे में सवाल पूछा। उस समय बॉलीवुड में इस टॉपिक पर फिल्में बनने लगी थीं। तब उसका जवाब था कि यह सब गलत होता है।

मुझे याद है कि एक फिल्म आई थी ‘गर्लफ्रेंड’। उस फिल्म को देख मैंने मम्मी-पापा से पूछा था कि ऐसी भी कोई बात होती है क्या? तो उनका जवाब था कि यह फिल्में एंटरटेनमेंट के लिए होती हैं। इन्हें गंभीरता से नहीं लेना चाहिए। हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता। मैं आज सोचती हूं कि मेरे मम्मी-पापा शायद मुझे मेरी बाइसेक्शुअल की तरफ बढ़ते झुकाव से बचा रहे थे। लेकिन उनका यह भी कहना था कि उनके मेडिकल करियर में ऐसे मरीज कभी देखे नहीं गए।

मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई गई हर बात गलत

कॉलेज में मैं अपने आसपास देख रही थी कि जो लोग गे होते हैं उनका खूब मजाक उड़ाया जाता है। इसलिए मैं अपने बारे में किसी से बात नहीं करती थी।

मेडिकल बुक में एक सब्जेक्ट है- Forensic Medication and Toxicology (FMT) । इसमें होमोसेक्शुएलिटी को मेडिकल इलनेस यानी मेडिकल डिसऑर्डर बताया गया है। इसमें बताया गया कि यह बात नॉर्मल नहीं है। काउंसिलिंग कर लोगों को नॉर्मल बनाना पड़ता है। किताबों में लेस्बियन को गलत तरीके से पेश किया गया।

किताब में बताया गया है कि चूंकि लेस्बियन महिलाएं पुरुषों से संतुष्ट नहीं होतीं इसलिए वह महिलाओं को पार्टनर के तौर पर चुनती हैं। उनमें होमीसाइड (दूसरों को मारना) और स्यूसाइड की प्रवृत्ति ज्यादा होती है।

यह बात बिल्कुल गलत है। मेडिकल के इस सब्जेक्ट में बदलाव की जरूरत है क्योंकि यह ब्रिटिश काल के दौरान लिखा गया।

2012-13 के दौरान मेरे पास एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के बारे काफी सारी जानकारी आ गई थी। लेकिन हेल्थकेयर सेक्टर में कोई इस बारे में बात नहीं करता। आज भी लोग इस बारे में बात करने से कतराते हैं।

एलजीबीटीक्यू समाज के लोग बहुत कंफ्यूजन में रहते हैं क्योंकि ना उनकी फैमिली उन्हें समझती और ना वह डॉक्टर से बात कर सकते हैं। दोस्तों को भी अपने बारे में नहीं बताते। वहीं, उन्हें इंटरनेट पर भी सही जानकारी नहीं मिलती।

अपनी हकीकत छुपाने को बनाया बॉयफ्रेंड

मैं जिस परिवार में बड़ी हुई हूं, वह बहुत खुल्ले विचारों का है। जब मैं छठी क्लास में आई तो पापा ने पीरियड्स, कंडोम जैसे टॉपिक्स के बारे में बताया। जब मेरा एमबीबीएस में एडमिशन हुआ, तब भी उन्होंने ही मुझे सेक्स के विषय पर जानकारी दी। लेकिन हर कोई मेरी तरह लकी नहीं होता।

बाहर का माहौल घर से बिल्कुल अलग था। कॉलेज में मेरा बहुत मजाक उड़ाया जाता। मैं गर्ल होस्टल में रहती थी। वहां एक बार मेरे बारे में अफवाह उड़ा दी गई कि मैं किसी लड़की को डेट कर रही हूं।

मैंने एक लड़के के साथ सिर्फ इसलिए रिलेशनशिप रखा ताकि मैं नॉर्मल लगूं। मैंने अपनी फीलिंग्स को छुपाकर रखा। एक बार तो किसी ने मेरे बारे में यह भी कह दिया कि मैं ट्रांसजेंडर हूं। मैं लड़की नहीं हूं, आदमी बनना चाहती हूं। लेकिन फाइनल ईयर के बाद जब इंटर्नशिप की, तब मैंने खुलकर सबको बताया कि मैं बाइसेक्शुअल हूं।

बॉडी शेमिंग की भी हुई शिकार

कॉलेज में जहां भी जाती, वहां मेरा मजाक ही उड़ाता। साथ ही पीसीओडी की वजह से मेरा वजन लगातार बढ़ रहा था। मैं एक ऑटो इम्यून डिजिज की भी शिकार हूं जिससे मेरे बाल झड़ने लगे थे। जरा सोचिए एक यंग लड़की के लिए उसके बाल और लुक्स इतने जरूरी होते हैं और मैं उन्हें ही खो रही थी।

मैं आज भले ही विग पहनती हूं लेकिन तब मैं बॉडी शेमिंग के साथ अपनी सेक्शुएलिटी से भी जूझ रही थी। मैं अकेली बैठकर रोती रहती, टूटकर बिखरती। मेडिकल की पढ़ाई का प्रेशर अलग बना रहता।

मनोचिकित्सक की बात सुनकर हुई हैरान

एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी को आज भी समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता। उनके मेंटल हेल्थ इश्यू के बारे में कोई बात नहीं करता।

जब मैं खुद की पहचान और कॉलेज में अपने साथ हो रही बुलिंग से डिस्टर्ब थी तो मैंने मनोचिकित्सक के पास जाकर सेशन लिए।

मैं हैरान हुई जब उन्होंने मुझे सलाह दी कि अगर आप किसी पुरुष के साथ रहेंगी तो जिंदगी आपके लिए आसान रहेगी।

उन्होंने मुझसे पूछा और कहा भी कि अगर कोई बचपन में किसी ट्रॉमा या सेक्शुअल अब्यूज का शिकार हुआ हो या किसी का अपनी मां से रिलेशनशिप अच्छा नहीं हो या दिक्कत हो तभी व्यक्ति बाइसेक्शुअल होता है। लेकिन मैं कभी ऐसे किसी बुरे हादसे से नहीं गुजरी।

मां हमेशा करती हैं मेरी वकालत

मैं कभी सोशल मीडिया पर ट्रोल नहीं हुई हूं लेकिन पर्सनल लाइफ में मुझे लोगों से मिले-जुले कमेंट्स मिलते रहे हैं।

मेरे रिश्तेदार मेरे काम को इग्नोर करते हैं। वह मुंह पर तो अच्छा बोलते हैं लेकिन पीठ पीछे कहते हैं कि ये सही नहीं है। इसे इतनी खुलकर बात नहीं करनी चाहिए। कुछ ने तो मेरे मुंह पर ही कह दिया कि ऐसा कुछ मत करो कि कल तुम्हारी शादी में दिक्कत हो। तुम्हारी फैमिली को कोई कुछ भी कह सकता है।

कई बार मां ने बीच में आकर मेरा बचाव किया और कहा कि ‘मेरी बेटी लोगों को सही जानकारी दे रही है। वह अपने प्रोफेशन के हिसाब से काम कर रही है।’

मैंने हमेशा कॉन्सेन्शुअल सेक्स (consensual intercourse) यानी रजामंदी से बनने वाले संबंध की वकालत की है । सेक्स के लिए शादीशुदा होने की जरूरत नहीं। यह आपसी रजामंदी से होना चाहिए। जरूरी है तो केवल इतना कि व्यक्ति अपनी सेक्शुअल हेल्थ पर ध्यान दे, कॉन्ट्रासेप्शन का इस्तेमाल करे और सेक्शुअल हाइजीन को सबसे ज्यादा अहमियत दे।

कोई कुछ भी कहे, लेकिन मुझे पता है कि मैं सोसाइटी के उस तबके के लिए काम कर रही हूं जिन्हें लोग स्वीकारते नहीं और इग्नोर करते हैं। लेकिन इस सच को कोई नकार नहीं सकता।

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