6 घंटे पहले

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‘तीन दिन से वो रोज मेरे सपने में आ रहा है। मुझे उससे जल्दी बात करनी पड़ेगी। मैं अपना सुकून ऐसे बर्बाद नहीं कर सकती।’

आधी रात में निशा अपने दिमाग में खुद से बात कर रही थी। उसने मोबाइल में टाइम देखकर अपना सिर पीट लिया। आज भी सुबह होने में तीन घंटे बाकी थे। वो ये सोचकर जबरदस्ती सोने की कोशिश करने लगी कि अगर फिर उसकी नींद पूरी नहीं हुई तो इसका असर उसके फेस पर एक हफ्ते तक चलने वाले डार्क सर्किल में दिखने लगेगा। उसे ये कतई बर्दाश्त नहीं था।

सुबह उठते ही वह अपने अंकल की लाइब्रेरी पहुंची। उसे उम्मीद थी कि वह लड़का उसे वहीं मिलेगा और ऐसा हुआ भी। वह उसी कॉर्नर पर बैठा था जहां मेज पर बाहर से आती रोशनी गिर रही थी। वह पन्नों के बीच खोया था। बीच-बीच में खुद से बातें करता और अपनी नोटबुक में कुछ उतारता जाता।

निशा को उसे डिस्टर्ब करने की हिम्मत नहीं हुई। वह लाइफस्टाइल मैगजीन सेक्शन में जाकर पन्ने पलटने लगी। असल में, वह उसके उठने का इंतजार कर रही थी। जब तीसरी बार चायवाला उसका कप रीफिल करके गया तो निशा से रहा नहीं गया। वह ठीक उसके सामने जा खड़ी हुई। लड़के ने इतनी तसल्ली से नजरें उठाईं जैसे उसे पहले से निशा के आने का पता हो। निशा ने कहा- ‘तुमसे जरूरी बात करनी है।’

वह अधखुली किताब और नोटबुक मेज पर पलटकर बाहर चला गया। उसने मुड़कर देखना तक जरूरी नहीं समझा कि निशा उसके पीछे आ भी रही है या नहीं?

लाइब्रेरी के बाहर पेड़ के गोल चबूतरे पर बैठ उसने सिगरेट सुलगा ली और आंखें बंद कर लंबी कश खींचने लगा।

अचानक उसे ध्यान आया कि निशा उसके सामने खड़ी है तो उसने निशा को सिगरेट ऑफर की जिसे निशा ने हल्की सी चिढ़ और गुस्से के साथ नकार दिया।

निशा ने पहला सवाल दागा- तुम मुझे कैसे जानते हो?

उसने आंखें खोलते हुए निशा को आश्चर्य के साथ देखा- ये तुम्हारी जरूरी बात है?

निशा ने कहा- तुमने छोटू को मेरे घर क्यों भेजा था?

वह हंसते हुए बोला- हम 15 अगस्त को साइक्लिंग इवेंट करवा रहे हैं। जो लोग भी पार्टिसिपेट कर सकते हैं, उनको इनवाइट किया जा रहा है।

निशा ने उखड़े लहजे में कहा- मैंने तुमको लाइब्रेरी से किताबें चोरी करते देखा है।

वह चोरी पकड़ी जाने से बेफिक्र हंसते हुए बोला- तुमको ये नहीं लगा कि किताबें चोरी करना दुनिया की सबसे खूबसूरत चोरी है?

निशा वहां से पैर पटकते हुए लौट आई। उसे लगा कि वह देर तक उसकी पीठ पर हंसता रहा था।

असल में पिछले कुछ दिनों से निशा को ये लड़का अपने अंकल की लाइब्रेरी के अलावा शहर में कई जगहों पर टकरा चुका था। पिछले हफ्ते ही अंकल ने निशा से बातों ही बातों में साइंस और इंजीनियरिंग सेक्शन की कुछ इंपोर्टेंट बुक्स गायब होने की शिकायत की थी। निशा तब से किताब चोर को पकड़ने की जुगत में थी और उसने ऐसा कर भी लिया था। लेकिन यह लड़का उसे अब तक समझ में नहीं आया था। अंकल के सामने इसका पर्दाफाश करने से पहले वह खुद इसकी पूरी कुंडली खंगालना चाहती थी।

वह देखने से यहां का नहीं लगता। न ही ऐसा जो छुट्टियों में या किसी रिश्तेदारी में आया हो। छोटे शहरों में आपकी पहचान कई किलोमीटर के दायरे में फैली होती है। किसके घर कौन आया, कब गया ये सबको पता होता है।

ये लड़का कभी नुक्कड़ पर सिगरेट पीते, कभी लाइब्रेरी में, कभी छोटे बच्चों के साथ खेलते दिख जाता। एक दिन तो यह साइकिल की दुकान पर पंक्चर लगाते हुए भी नजर आया।

आखिरी बार निशा के घर पर हुई पूजा में वह पंडितजी को बाइक पर बैठाकर लाया था। पंडितजी उसके पीछे खरगोश की तरह दुबके बैठे थे। बाइक रुकते ही पंडितजी ने कहा- बेटा थोड़ा धीरे चला करो। कुछ भी हो सकता है।

इसके जवाब में उसने हंसते हुए कहा था- आपको डर लग रहा था तो हनुमान चालीसा पढ़ लेते।

जब निशा के पिता ने उसे पूजा में बैठने को कहा तो वह सिगरेट सुलगाते हुए बोला था- मुझे पंडित को लाने-ले जाने के पैसे मिले हैं। पूजा में बैठने से कुछ नहीं मिलेगा।

तब भी निशा ने इस बदतमीज लड़के के बारे में एक-दो बार पता करने की कोशिश की, लेकिन कोई इसका नाम तक नहीं जानता था और न ही इसके रहने का पता।

खैर, निशा ने छोटू का दिया पैम्फलेट देखा कि उसमें लिखा था कि साइक्लिंग घंटाघर से शुरू होकर, मॉडल टाउन, सिविल लाइंस, राजेंद्र नगर और स्टेडियम के बाहर से होते हुए यूनिवर्सिटी रोड पर खत्म होगी। ये 25 किलोमीटर लंबी रेस थी। पार्टिसिपेट करने के 100 रुपए लगने थे और फर्स्ट 5 विनर को प्राइज मिलना था।

15 अगस्त के दिन मौसम में उमस और बादलों के बीच लुकाछिपी करता सूरज था। निशा टाइम पर साइक्लिंग के स्टार्टिंग पॉइंट पर थी। वो लड़का सभी पार्टिसिपेंट को पानी की बोतलें बांट रहा था। नया होते हुए भी शहर में उसने अच्छी खासी भीड़ जमा कर ली थी। रेस बारिश की फुहारों के बीच शुरू हुई थी। इससे मौसम अच्छा हो गया था।

वह लड़का कुछ मोहल्लों के जाने-पहचाने चेहरों के साथ खुली जीप में चल रहा था। हाथ में इलेक्ट्रिक मेगाफोन लिए वो सबको सावधानी से चलने के डायरेक्शन दे रहा था। अभी रेस आधी भी नहीं हुई थी कि उसे पलटकर देखने के चक्कर में निशा की साइकिल एक कर्व पर स्लिप हो गई। कुछ पलों तक तो उसे समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ? आंख खुली तो वही लड़का उसके ऊपर झुका हुआ कुछ कह रहा था। उसका पूरा बदन दर्द से भरा था। कोहनियों, घुटनों, हथेलियों पर चोट आई थी। निशा ने कुछ कहना चाहा, पर आवाज उसके गले में फंसी रह गई।

वह कुछ सुनने लायक हुई तो देखा कि वह उसे खुद से उठने के लिए कह रहा था। निशा से उठा नहीं गया। उसने निशा को उठाकर जीप में रख दिया। उसकी साइकिल एक लड़के के हवाले की और उन्हें कुछ डायरेक्शन देकर निशा को ले गया।

पहली बार वह थोड़ा परेशान सा नजर आया था। निशा की नजरें उसके चेहरे पर जमी थीं। वह रेस के फिनिशिंग प़ॉइंट पर पहुंचा, जहां मेडिकल हेल्प अवेलेबल थी। उसने खुद निशा की ड्रेसिंग की और उसे पीने के लिए जूस दिया और कहा- हाय। आई एम रितेश। आपको ज्यादा चोट नहीं आई है। कुछ देर में आपको घर छोड़ देंगे।

तो तुम्हारा नाम भी है। निशा ने अपनी चोटों को देखते हुए कहा।

उसने एक पल हैरानी से निशा को देखा अगले ही पल कहा- सबका होता है। तुम्हारा भी तो है- निशा।

‘तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?’

‘तुम्हारा नाम तो पूरे शहर को पता है।’

तुम शायद यहां नए हो। किताबें चुराने, पंक्चर लगाने, गली क्रिकेट खेलने और फेफड़ों में सिगरेट का धुंआ भरने के अलावा क्या करते हो?

रितेश हंसते हुए बोला- तुम तो मेरे बारे में सब जान चुकी हो। वैसे, मैं पुराने शहर के कुछ स्टूडेंट्स को NEET और IIT की तैयारी करवाता हूं।

चोरी की किताबों से तैयारी करवाते हो? यही अपने स्टूडेंट्स को भी सिखाते होगे न? चोरी करना… निशा ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा।

उसने कहा- असल में मेरे या मेरे स्टूडेंट्स के पास ये महंगी किताबें खरीदने के पैसे या पूरी किताबें पढ़ने का टाइम नहीं है। सब छोटा-मोटा काम करते हैं। इसलिए मैंने लाइब्रेरी से कुछ किताबें ली हैं, जिनके इंपोर्टेंट चैप्टर के मैं नोट्स बना रहा हूं। नोट्स तैयार होने पर किताबें वापिस लाइब्रेरी में रख दूंगा।

इस साइकिल रेस से होने वाली कमाई से मेरे स्टूडेंट्स के क्लासरूम के लिए कुछ टेबल-चेयर और चार हीटर आ जाएंगे।

यह जवाब सुनकर निशा कहीं खो सी गई और दूर शून्य में ताकने लगी। उसके ख्यालों में पंक्चर तब लगा जब फिनिशिंग रेस पर पहुंचकर कई साइक्लिस्ट घंटी बजाने लगे।

मैं रितेश के बारे में कितनी गलत थी। निशा के इस ख्याल को तोड़ती घंटी की आवाज अब उसे इरिटेट कर रही थी। उसे लग रहा था कि ये लोग रेस पूरी करने के इतनी देर तक घंटी क्यों बजा रहे हैं।

तभी उसके कानों में मम्मी की तीखी आवाज पड़ी। ‘अलार्म बंद करो निशा और फटाफट नहा लो।’

‘ओफ्फोह। आज तो मैं इस लड़के से बात करके रहूंगी। चौथे दिन भी ये मेरे सपने से बाहर नहीं निकल रहा है।’ ये बड़बड़ाती हुई निशा वॉशरूम में घुस गई।

-गीतांजलि

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