2 घंटे पहले
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रचित आज भी ऋचा का इंस्टा हैंडल स्टाक कर रहा था।
ऋचा, उसकी लाइफलाइन, जिसे उसने दुनिया में सबसे ज़्यादा चाहा था, वह उसके ही बेस्ट फ्रेंड राहुल के साथ उसे चीट करेगी, उसने सपने में भी नहीं सोचा था।
एक दिन जब वह अपनी मां से मिलने जा रहा था, रास्ते में उसे याद आया कि मां के लिए ली हुई स्मार्ट वॉच वह अपने रूम पर ही भूल गया है। आधे घंटे की ड्राइव के बाद उसने अपनी चाबी से फ्लैट का दरवाज़ा खोला और यह देखकर उसके पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई कि राहुल और ऋचा एक-दूसरे में गुत्थम-गुत्था थे।
उसे देखकर वे चौंक गए थे। हड़बड़ी में कपड़े पहनकर वे शर्मिंदा से खड़े हुए कि रचित ने राहुल को घुमाकर एक थप्पड़ जड़ दिया। लेकिन यह क्या! ऋचा ने पलटकर उसे ही एक थप्पड़ रसीद कर दिया था।
“मैं एडल्ट हूं, अपनी मर्ज़ी की मालिक। तुम मेरे मालिक नहीं हो। हाथ उठाने की हिम्मत कैसे हुई राहुल पर।” कहती हुई वह राहुल का हाथ पकड़कर जो गई, दोबारा नहीं लौटी थी।
इस घटना को छह महीने बीत चुके थे। राहुल और ऋचा दुनिया घूम रहे थे और वह छह महीने से वहीं का वहीं था। अगर एक के मन से प्यार ख़त्म हो जाए तो दूसरे की क्या ग़लती? वह कैसे मूव ऑन करे? फीलिंग्स का कोई स्विच है क्या, जब चाहा ऑन कर दिया, जब चाहा ऑफ।
उसने अपना ट्रांसफर करा लिया था। अब वह मां के ही पास रहता था। मां कई बार उसे शादी के लिए कह चुकी थीं लेकिन वह हर बार टाल जाता। प्यार और दोस्ती, दोनों पर से उसका विश्वास उठ गया था और लड़कियों से नफ़रत हो गई थी।
एक दिन जब वह घर आया तो देखा मां किचन में बेहोश थी, दूध उफनकर जल चुका था। उन्हें लेकर वह फौरन अस्पताल भागा। शुगर लो होने की वजह से वह बेहोश हो गई थीं।
“मां आप जिस लड़की से कह रही थीं, शादी की बात चला लें।” उसने धीरे से कहा तो वह बच्चों जैसे ख़ुश होते हुए बिस्तर से उठ बैठीं।
“मैं उषा को आज ही फोन करती हूं कि किरण को लेकर आ जाए। तुम दोनों एक दूसरे से बात कर लो…”
“रहने दो मां, मुझे बात-वात नहीं करना। आपने कहा न, उसे घर का सब काम आता है। कामवाली बाई को सैलरी देंगे, इससे तो अच्छा बहू ले आओ आप। आपके अरमान भी पूरे हो जाएंगे और पैसे भी बच जाएंगे।” रचित ज़हरीली मुस्कान लिए हुए बोला तो मां ने दुःखी होकर उसे देखा पर चुप रहीं। वह तैयार हो गया था, यही क्या कम था। फिर किरण है ही इतनी प्यारी, सबके दिल में जगह बनाना जानती है।
“हुह, उषा, किरण, नाम ही कितने आउटडेटेड हैं।” उसने सोचा। उसका दिल, उसके सपने सब ऋचा के जाते ही मर गए थे।
आनन-फानन में सब बातचीत तय हो गई। न जाने मां में कैसे इतनी फुर्ती आ गई थी। एक सादे से फंक्शन में पंद्रह दिन बाद ही किरण उसकी दुल्हन बनकर उसके घर आ गई थी।
कमरे में आते ही वह शेरवानी फेंककर बिना कोई बात किये सो गया तो किरण को अंदाज़ा हो गया था कि उसकी राह बहुत मुश्किल होने वाली है। रचित के हालात के बारे में उसको पहले ही सब बता दिया गया था। किरण ने बी.कॉम किया था। एक छोटे से शहर की, तीन बहनों में तीसरे नम्बर की लड़की, जिसके जन्म पर ख़ुशी तो दूर, सबको दुःख ने आ घेरा था और जिसके क्लर्क पिता दो बड़ी बहनों की शादी में ही कर्ज़ में डूब गए थे, क्या ही बड़े सपने पालती।
अगली सुबह जब वह रचित का नाश्ता कमरे में लेकर आई तो रचित उसे देखता ही रह गया।
कमर के नीचे तक खुले, गीले, पानी टपकाते बाल, भीगा काला ब्लाउज़ और पीली साड़ी, मांग में मोटा सा सिंदूर और लाल बिंदी, जैसे कोई अप्सरा या जलपरी पानी से निकलकर उसके सामने आ खड़ी हुई हो, पीली साड़ी और सुनहरी रंगत जैसे सच में सूरज की ही किरण हो। रचित उसके रूप में खोकर सब-कुछ भूल गया। पहले फोटो में देखा था फिर ब्राइडल मेकअप में, लेकिन यह धुला-निखरा रूप एकदम अलग और मादक था। कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है।
“चाय ठंडी हो रही है।” शहद टपकाती मीठी आवाज़ कानों में पड़ी तो लगा वह बोलती रहे और वह सुनता ही रहे। फिर जैसे उसे करंट लगा और होश बहाल हुआ।
“रख दो नीचे, मैं ब्रश किये और नहाए बिन कुछ नहीं खाता, बेड टी मत लाना अब।” रुखाई से कहता वह बाथरूम में घुस गया।
दिन भर ऑफिस में मन नहीं लगा। रात को यूं ही सड़कों पर आवारागर्दी करता रहा, लेकिन कब तक। आख़िर घर जाना ही था। साढ़े बारह बजे वह पहुंचा तो उसे अपना इंतज़ार करते पाया।
“मुझे आदत है, अपना खाना गर्म करके खाने की। मेरे इंतज़ार में बैठे रहने की ज़रूरत नहीं।” उसने किरण की तरफ बिन देखे ही कहा। उसने जवाब नहीं दिया और किचन से गर्म गर्म फुल्के लाकर उसकी थाली में परोसने लगी। इतना स्वादिष्ट खाना उसे याद नहीं कब घर पर खाया हो। पेट ज़्यादा ही भर गया तो आंखें बंद होने लगीं। वह जाकर बैडरूम में सो गया। किरण ने किचन समेटा, दो चपातियां और थोड़ी सब्ज़ी लेकर खाना खाया, पति ने तो पूछा भी नहीं एक बार। दो आंसू लुढ़ककर गालों पर आ गिरे।
कई दिनों तक यही चलता रहा। लेकिन दोनों एक-दूसरे को सहने की आदत डाल रहे थे। इसमें बड़ा हाथ किरण की सहनशक्ति का ही था। वह चुपचाप एक प्रोग्रामिंग वाले रोबोट की तरह हर काम निपटाती रहती। रचित के नाश्ते-खाने, टॉवल, जूते, घड़ी रुमाल से लेकर मां की दवाइयां तक, सब काम टाइम पर होता। घर में ही होटल का लुत्फ़ मिल रहा था। फ्री रूम सर्विस। न वह कोई शिकायत करती, न डिमांड। न पलटकर जवाब देती। सुबह बिस्तर से उठती और रात को आकर सो जाती। कभी-कभी रचित के मन में उसे लेकर सहानुभूति होने लगती तो वह फिर ऋचा का सोशल मीडिया देखने लगता और उसका ग़ुस्सा फिर भड़कने लगता।
“यह किरण भी जितनी सीधी दिखती है, उतनी होगी नहीं। इतनी बला की सुंदर है, न जाने कितने बॉयफ्रेंड रहे होंगे। किस-किस के साथ मुंह काला किया होगा। ख़ूब खाई खिलाई होगी, तभी यहां चुपचाप पड़ी है। इसके शहर में इसकी करतूतें सब जानते होंगे, इसीलिये यहां ब्याहकर भेज दिया।” वह अपने ख़यालों में ही उसे बहुत सारे मर्दों के साथ देखते-देखते मन ही मन ग़ुस्से से उबल रहा था और आई लव यू क…क…क…किरण उसके दिमाग़ में गूंज रहा था। न जाने कितने शाहरुख़ ख़ान और सनी देओल आशिक रहे होंगे इसके।
इधर किरण इस सबसे बेख़बर काम में लगी थी।
आज भी वह इंस्टा स्क्रॉल कर रहा था कि अचानक ऋचा के अकाउंट पर रुक गया। ढेर फोटोज़ डली थीं। महंगे रेस्त्रां के स्विमिंग पूल में दोनों कितने ख़ुश नज़र आ रहे थे। वीडियो में टू पीस स्विम सूट में ऋचा राहुल के साथ अठखेलियां कर रही थी। फोटो में दोनों एक दूसरे को चूम रहे थे। उसे इतना ख़ुश देखकर रचित के तन-बदन में आग लग गई थी। ऋचा को उससे बेहतर कोई मिल गया था और वह बेहद ख़ुश थी, यह बात उसका मेल ईगो पचा ही नहीं पा रहा था।
तभी किरण रूम में आ गई। किचन निपटाकर, पसीना और थकान उतारने के लिये आदत के मुताबिक वह गर्म शॉवर लेकर आई थी। काले गाउन में उसका चांदी जैसा बदन बन्द लाइट में भी दमक रहा था। रचित ने कुछ देर उसे घूरा फिर बालों से खींचकर बेड पर पटक दिया। उसे इतनी ज़ोर से चूमा कि उसके होंठों से खून निकलने लगा। वह बिल्कुल अपने हवासों में नहीं था। उसके सारे कपड़े उसने फाड़ने के अंदाज़ में नोंचकर फेंक दिए और किसी वहशी की तरह उस पर टूट पड़ा था।
सुबह जब उसकी नींद खुली तो किरण कहीं नज़र नहीं आई। अपनी हालत और रात के वाकये को याद करके उसने सिर पकड़ लिया। वह तो ऐसा नहीं था, फिर ऐसा क्यों किया। उसे ख़ुद पर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था।
“कोई बात नहीं, जो किया, अपनी ब्याहता पत्नी के साथ किया, इसमें शर्म कैसी।” दिमाग़ ने एक कमज़ोर सी दलील दी।
“लेकिन जिस तरह किया, वह बहुत ग़लत था।” दिल ने धिक्कारा।
गिल्ट इसलिये भी ज़्यादा था कि उसे रात को अंदाज़ा हो गया था कि किरण उसकी सोच के मुताबिक कइयों से सम्बन्ध रखने वाली नहीं थी बल्कि कुंवारी ही थी फिर भी उसने इतनी ज़ोर-ज़बरदस्ती की थी।
“रचित, उषा का फोन आया है। किरण सुबह-सुबह मायके पहुंच गई है। हुआ क्या है आख़िर।” मां ने घबराते हुए पूछा।
दोनों के बीच सब सही नहीं चल रहा, यह तो वह जानती थीं और मासूम किरण चुपचाप बिन शिकायत सब काम निपटाती रहती है, यह भी। महीना भर की नई दुल्हन मुरझाकर बरसों की गृहस्थिन लगने लगी थी।
रचित बिन कुछ कहे कार की चाबी लेकर निकल गया तो किरण के दरवाज़े पर ही आकर रुका। उसकी सास तो निहाल ही हो गई थीं। शादी के बाद दामादजी पहली बार घर आए थे।
उसे डर था कि शायद किरण तमाशा करेगी लेकिन उसने एक दस्तक पर ही दरवाज़ा खोल दिया। रचित ख़ुश हो गया। उसकी शर्मिंदगी भी कुछ दूर हुई। पत्नी तो आख़िर पत्नी होती है।
“तुम बिन कुछ कहे चली आईं।” उसने नज़रें चुराते हुए पूछा।
“इससे पहले मैंने कब कुछ कहा या आपने पूछा।” आज पहली बार वह आंखों में आंखें डालकर आत्मविश्वास से बात कर रही थी। हालांकि आंखें सूजी हुई थीं।
“घर चलो।”
“घर पर ही हूं।”
“यह तुम्हारा मायका है। अपने घर चलो।”
“वह मेरा ससुराल था। घर नहीं।”
किरण चलो।”
“नहीं। आप बलात्कारी हैं। मैं एक टूटे दिल के, हारे हुए, मेल ईगो के मारे, फ्रस्ट्रेटेड, डिप्रेस्ड आदमी के साथ रह सकती हूं। उसे उसका टाइम, स्पेस और प्राइवेसी दे सकती हूं लेकिन किसी रेपिस्ट के साथ नहीं रह सकती। वैवाहिक बलात्कार भी बलात्कार होता है। मेरा मन अब आपका साथ नहीं गंवारा कर सकता। आप यहां से चले जाइए।” उसने इतनी सख़्ती से कहा कि रचित ख़ुद को ज़मीन में गड़ता सा महसूस करने लगा।
वह हारे हुए कदमों से लौट गया। किरण जानती थी कि ब्याहता का मायके बैठना कितना मुश्किल है और उसके बीमार मां-बाप कर क्या बीतेगी पर उसे अपना स्वाभिमान भी प्यारा था।
इधर घर आकर रचित को एहसास हुआ कि कांच के टुकड़े के पीछे उसने हीरा गंवा दिया है।
उसने किरण को बहुत लंबा मैसेज लिखा जिसमें अपनी हरकत की कई बार मुआफ़ी मांगी। किरण ने पढ़ा पर जवाब नहीं दिया लेकिन रचित को यही तसल्ली थी कि उसने उसे ब्लॉक नहीं किया था।
फिर तो रचित का यह नियम बन गया, वह रोज़ किरण को मैसेज करता। और न सिर्फ़ उस रात के गुनाह के लिए बल्कि अपनी हर ज़्यादती और उपेक्षा के लिए उससे मुआफ़ी मांगता। किरण को लगा था, दो-चार दिन में वह थककर ख़ुद बन्द कर देगा लेकिन आज महीना भर हो चुका था और उषा और उसके पापा भी कई बार उससे पूछ चुके थे कि वह कब वापस जा रही है। जब उसने जॉब करने को कहा तो दोनों को समझ आया कि बात गम्भीर है। लेकिन जब उसके पिता ने रोते हुए उसके आगे हाथ जोड़ लिए कि अपने घर को मत टूटने दे, बचा ले तो वह सही मायनों में टूट गई। पिता को रोते देखना बहुत कष्टप्रद होता है और अपने कारण रोते देखना सबसे ज़्यादा कष्टप्रद।
आज भी रचित उसे मैसेज करके सोने चला गया था। इतने दिनों में वह जान गया था कि किरण से उसे प्यार हो गया है। बेतहाशा प्यार और उसके लिये वह मरते दम तक कोशिश और इंतज़ार करने को तैयार है। तभी उसे नीचे कुछ हलचल और सुगबुगाहट सुनाई दी।
हॉल में अंधेरा था। लाइट जलाते ही टेबल पर केक रखा दिखा और हैप्पी बर्थडे टू यू की आवाज़ गूंजी। वह दौड़कर किरण से लिपट गया। फिर अकबकाकर पीछे हटा और धीरे से पूछा- “तुमको गले लगा सकता हूं, इजाज़त हो तो?”
जवाब में किरण ने उसे गले लगा लिया।
“ये मेरा बेस्ट बर्थडे सरप्राइज़ और गिफ्ट है। आई लव यू किरण। मुआफ़ करने के लिए शुक्रिया। अब मैं बेस्ट हज़बैंड बनकर दिखाऊंगा।”
“कोई कॉम्पिटिशन नहीं है, गुड बेटर बेस्ट की। अच्छे इंसान बन जाओ बस काफ़ी है। और मेरा इरादा बदलने के बहुत सारे कारण हैं। पर सबसे बड़ा यह है और यही तुम्हारा बर्थडे सरप्राइज़ गिफ्ट है।” कहकर किरण ने अपने पेट पर हाथ फेरा।
“तुम प्रेग्नेंट हो…”
“हां…”
“ये मेरा जन्मदिन नहीं मेरा पुनर्जन्म है एक पिता और पति के तौर पर।” कहकर रचित ने उसे चूम लिया।
-नाजिया खान
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