3 घंटे पहले
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‘अक्सर जब कोई सुखद घटना घटती है तो लोग उसे संयोग कह देते हैं। ज्यादातर ऐसा तब कहा जाता है जब किसी से अचानक तब मुलाकात हो जाती है, जब आपके मन में उससे मिलने की इच्छा हो रही हो। पर मैं इसे नियति कहता हूं। नियति ही सब कुछ होती है। हमारे बस में कुछ नहीं। जब जो होना है, वह होकर ही रहता है। इतना समझ लें कि सब पहले से ही तय होता है, इसलिए किसी बात को लेकर मन में न तो पछतावा रखें, न ही अपराधबोध।’ एक दिन टीवी पर सुना था उसने एक धर्म प्रचारक के मुंह से।
जब सब कुछ नियति ही तय करती है, तो विधि को भी मन में गिल्ट लेकर नहीं जीना चाहिए। खुद को दोष देती है कई बार। बहुत बुरा भी सोचती अपने बारे में कि ‘विधि यह क्या कर रही है? रोक ले अपने कदम!’
ठीक है जब यह नियति है तो वह खुलकर जीएगी और खुश भी रहेगी, क्योंकि इतना प्यार हर किसी को नहीं मिलता। कोई आपको समझे और किसी तरह से आपको ‘जज’ न करे और बस आपकी बात धैर्य से सुनता रहे, इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है? वह भी तब जब आप तमाम तरह की परेशानियों से घिरे हों। हर किसी में इतनी योग्यता भी नहीं होती कि वह दूसरे की बात समझ उसे सही राय दे सके, या अपना दिल का गुबार निकालने का मौका दे सके। लेकिन विराट में यह सब खूबियां हैं।
बेशक यह ‘लव एट फर्स्ट साइट’ वाला मामला था विधि के लिए, लेकिन जितना वह विराट को जानती गई, उसके लिए प्यार उतना ही गहरा होता गया। बस कह नहीं पाई और जब मन में इस एहसास को रखना मुश्किल हो गया, जब उसके दिल ने उसे झिंझोड़ना शुरू कर दिया तो कह ही दिया। कहा भी कहां जा रहा था…मन में हिचक तो तब भी थी। वह तो विराट ने ही पूछ लिया था।
जब विधि ने फोन कर विराट से कहा कि वह उससे मिलना चाहती है तो भी पूछा था कि क्या बात है। वे दोनों आईटीओ पर मिले थे, क्योंकि दोनों के ही ऑफिस के रास्ते वहां से जाते थे। आसपास भीड़ थी। वह अपनी स्कूटी पर थी और वह अपनी मोटरसाइकिल पर। एक खाली जगह देख दोनों वहीं खड़े हो गए। तब भी कहां से ठीक से विधि से बोला जा रहा था। वह तो विराट ने ही पूछा था, “इनफैचुएशन का मामला तो नहीं है?”
विधि ने कहा था, इनफैचुएशन नहीं प्यार करती हूं तुमसे।”
“पहले क्यों नहीं कहा? अब तो मेरी शादी हो चुकी है।”
“हिम्मत ही नहीं हुई। लेकिन तुम भी तो नहीं समझे। मैं डरती थी कि कहीं कहा तो तुम्हारी दोस्ती भी न खो दूं।”
“क्यों डरती थी, किस बात की हिचक थी? एक बार कहती तो।”
“गोरी नहीं हूं न, इसलिए। शशि दी समझ गई थीं तुम्हारे लिए मेरे मन में उठते एहसासों को। उन्होंने कहा कि ‘तू सुंदर नहीं है। विराट क्यों तुझे पसंद करेगा या शादी करेगा।’
“शशि जैन?” वही जो आर्ट क्लास में हमारी सीनियर थीं। उनकी सोच पर क्या टिप्पणी करूं, लेकिन तुमने ऐसा कैसे मान लिया? मैं रंग से किसी की सुंदरता को नहीं आंकता। वैसे किसने कहा कि तुम सुंदर नहीं हो। रंग-रूप का सुंदरता से क्या मतलब? मन की खूबसूरती मायने रखती है और मैं जानता हूं कि तुम्हारा मन कितना सुंदर है विधि। तुम मुझे अच्छी लगती थी…अच्छी लगती हो।”
“फिर तुम क्यों नहीं समझ पाए? क्या कभी मेरी आंखों में अपने लिए प्यार नहीं दिखा?” विधि की आंखों में आंसू आ गए थे।
“दिखा तो था, पर तुम्हारी चुप्पी से मुझे लगा कि मेरा वहम है। फिर एक दिन कीर्ति ने मुझसे कहा कि वह मुझसे शादी करना चाहती है। हम दोनों एक ही सरकारी कॉलोनी में रहते थे। मैंने हां कर दी।”
“कीर्ति को देखकर ही तो मुझ में कहने की हिम्मत आई है। उससे तो बेहतर ही हूं मैं हर तरह से।”
“अब इन सब बातों का क्या फायदा विधि? बहुत मासूम हो तुम। अब कर ही क्या सकते हैं। चलता हूं। ऑफिस पहुंचना है और तुम भी ऑफिस जाओ और मुझे भूल जाओ। मैं समझ सकता हूं भूलना आसान नहीं होगा, लेकिन कोशिश तो कर ही सकती हो।”
‘भूलना आसान होता है क्या?’ विधि अकसर सोचती है। फिर कुछ ऐसा हुआ कि जिंदगी ने एक बार फिर से उसे पशोपेश में डाल दिया। सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वह इसे नियति का इशारा समझे!
वे लोग भी उस एरिया में शिफ्ट हो गए जहां विराट रहता था। कुछ दूरी पर ही उसकी कोठी थी और विराट को उसी रास्ते से गुजरना पड़ता था जहां विधि की कोठी थी। ऑफिस जाने का दोनों का रास्ता भी एक था। ऑफिस जाने का समय भी लगभग एक था। मुलाकात हो ही जाती रास्ते में। कुछ पल रुक बात करने लगे वे। विराट इसलिए उससे मिल लेता ताकि समझा सके कि उसे विराट को भूल किसी से शादी कर लेनी चाहिए।
लेकिन विधि उससे दीवानों की तरह मोहब्बत करती है, यह बात वह जल्दी ही समझ गया। बहुत बार उसने रास्ते बदले, विधि के फोन नहीं उठाए, लेकिन वह जिद्दी बन कितनी बार उसकी मोटरसाइकिल के सामने अपनी स्कूटी खड़ी कर देती। हार गया विराट उसके प्यार के सामने।
वे मिलते हैं अब। एक दूसरे की बांहों में खोकर सब कुछ भूल भी जाते हैं और वह कई बार गिल्ट से भर जाती है। एक शादीशुदा पुरुष की जिंदगी में घुसने की गिल्ट से।
“तुम्हारी जिंदगी में खलबली मचा दी है न मैंने?”
“ज्यादा मत सोचा करो विधि। बहुत सी चीजें हमारे वश के बाहर होती हैं। नियति ने हमें मिलाना था, तो ऐसे मिला दिया। वैसे भी कीर्ति की अपनी एक अलग दुनिया है। वह बहुत स्वच्छंद किस्म की है। पार्टी, घूमने और शॉपिंग करने में ही व्यस्त रहती है। घर में कम ही रहती है। मां ही सारे घर को संभालती है। कीर्ति को जो चाहिए, मैं देने में कभी कमी नहीं रखता, लेकिन प्यार नहीं हो पाया है उससे।”
“इसकी वजह मैं तो नहीं?”
“वजह क्या है, मैं इस विवाद में नहीं पड़ना चाहता। बस नियति के हिसाब से चलते रहो। एक बार जब मैं बहुत पहले देहरादून गया था ऑफिस के काम से तो एक साधु ने मेरा हाथ देख कहा था कि कोई तेरी जिंदगी में ऐसी आएगी जो उम्र भर साथ रहेगी। प्यार से भर देगी तुझे। न जाने कौन से पूर्वजन्म का फल है जो इतना प्यार करने वाला मिलता है। उसे ठुकराना मत।’ तब हंसकर उड़ा दी थी मैंने वह बात। तब तक शादी नहीं हुई थी। सोचा बीवी से बहुत प्यार मिलेगा, लेकिन अब समझ आया विधि की उस साधु ने तेरे लिए कहा होगा। बंधन नियति ही जोड़ती है।”
“तो तुम भी इसे नियति मानते हो?”
“तुम इसे कुछ भी कहो, लेकिन एक बात अवश्य कहूंगा कि अब मैं तुम्हें कुछ दे नहीं पाऊंगा। शादीशुदा आदमी से प्यार करने से क्या हासिल होगा? तुम मुझसे उम्मीदें रखती होगी, पर कीर्ति चाहे जैसी हो, मैं उसके प्रति कमिटेड रहना चाहता हूं।”
“मैं तुमसे कोई उम्मीद नहीं रख रही। तुम दोस्ती तो निभा सकते हो न? तुमसे तुम्हारा कुछ समय चाहिए मुझे बस।”
“समय भी कितना दे पाऊंगा तुम्हें? रोज मिलने का वादा भी नहीं कर सकता।”
“अपने समय का एक टुकड़ा तो दे सकते हो? मेरे लिए वही बहुत है। प्यार करती हूं तो इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम्हें कैद करके रख लूं। फिर तुम्हीं ने तो कहा नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता। और मुझसे खुद को भूलने के लिए भी मत कहना। नहीं कर पाऊंगी ऐसा।”
विराट ने विधि के हाथ को कसकर पकड़ लिया था।
-सुमन बाजपेयी
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