9 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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खाने-पीने में दिलचस्पी न होना कई बीमारियों का लक्षण है। कभी-कभी खाना स्किप करना या खाना खाने का मन न करना अलग बात है। लेकिन, यह रोजा के रूटीन का हिस्सा बन गया है तो इसे बिल्कुल नजरअंदाज न करें। आइए जनरल फिजिशियन डॉ. अनिल तोमर से जानते हैं कम भूख लगना किन बीमारियों का लक्षण हो सकता है।

एनोरेक्सिया नर्वोसा

डॉ तोमर कहते हैं वजन बढ़ाने की फिक्र में कुछ लोग एनोरेक्सिया नर्वोसा का शिकार हो जाते हैं । ऐसे में भूख कम होने के साथ-साथ दिल की धड़कन बढ़ती है, खाना खाने की इच्छा नहीं रहती, बॉडी पेन रहता है और हर वक्त थकान महसूस होती है।

बुलीमिया नर्वोसा

बुलीमिया नर्वोसा में इंसान जरूरत से ज्यादा खाता है और हमेशा वजन को लेकर फिक्र करता है। ऐसे लोग कई बार खाने-पीने के मामले में परहेज करते हैं, लेकिन वजन कम नहीं हो पाता और न ही वे अपने खान-पान को कंट्रोल कर पाते हैं। एनोरेक्सिया और बुलीमिया आमतौर पर 15 साल की कम उम्र से शुरू होता है।

वायरल गैस्ट्रोएनट्राइटिस

भूख में कमी की एक वजह वायरल गैस्ट्रोएनट्राइटिस भी होती है। यह पेट और आंतों से जुड़ी परेशानी है। इसमें वायरल इंफेक्शन की वजह से पेट में जलन और गैस्ट्रिक होती है। डाइट कम होने के अलावा बॉडी पेन, लगातार वजन घटना, स्किन प्रॉब्लम और रेक्टल ब्लीडिंग जैसी समस्याएं भी इस रोग का संकेत है।

तनाव

डेली रूटीन काफी बीजी और थकाऊ होता है जिससे टेंशन और डिप्रेशन है तो इसका असर भी भूख पर हो सकता है। यानी भूख का तनाव से सीधा कनेक्शन है। ऐसे में कुछ और परेशानी हो सकती हैं जैसे नींद में दिक्कत, हमेशा थकान रहना, ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव।

डिप्रेसिव डिसऑर्डर

मेजर डिप्रेसिव डिसॉर्डर डिप्रेशन की एक कंडीशन है जिसमें व्यक्ति के मूड में बहुत जल्दी जल्दी बदलाव होते हैं। इसका असर भूख पर भी पड़ता है। ऐसे में भूख घट जाने के साथ-साथ मूड तेजी से बदलना, वजन घटने, थकान, घबराहट होती है।

फ्लू यानी इन्फ्लूएंजा

फ्लू यानी इन्फ्लूएंजा के दौरान भी भूख बहुत घट जाती है। यह रोग इन्फ्लूएंजा वायरस की वजह से होता है जिसमें श्वसन तंत्र में वायरल इंफेक्शन हो सकता है। इसमें भूख कम होने के अलावा, सांस लेने में दिक्कत, बहुत ज्यादा पसीना आने जैसी दिक्कतें भी होती हैं।

लिवर में दिक्कत

लिवर खराब होने की वजह से लिवर फेल भी हो सकता है। इलाज न करवाने पर भूख कम लगती है जिसकी वजह से वजन कम होता है। ऐसे केस में मरीज को नस के जरिये से न्यूट्रिशन दिया जाता है।

टीबी

भूख में कमी महसूस हो रही है और वजन में लगातार गिरावट दिख रही है तो यह टीबी का लक्षण हो सकता है। भूख में कमी या खाना खाने का मन ना करना टीबी की शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।

भूख न लगना, हार्मोनल इमबैलेंस के संकेत

दिनभर स्ट्रेस, रात में नींद की कमी भूख न लगने की वजह हो सकती हैं. प्रॉपर डाइट न खाने से शरीर में कमजोरी हो सकती है। कुछ आदतों को अपनाकर भूख को बढ़ाया जा सकता है।

भूख बढ़ाने के लिए खाली पेट धनिया के पत्तों का जूस पिएं

बॉडी की सबसे पहली जरूरत खाना है। खाने से हमें कार्य करने की ताकत और न्यूट्रिशन मिलता है। सेहत रहने के लिए सही डाइट करना जरूरी है, लेकिन स्ट्रेसफुल लाइफस्टाइल ने खाने की आदतों को खराब कर दिया है। सही डाइट न लेने की वजह से शरीर में न्यूट्रिशन की कमी होती है।

इससे भूख न लगने की परेशानी बढती है। सही मात्रा में खाना न खाने से कमजोरी, थकान और न्यूट्रिएंट्स की कमी हो जाती है। कमजोर बॉडी को बीमारियां घेर लेती हैं। हेल्दी रहने के लिए अच्छी खुराक लेना जरूरी है। भूख न लगना बॉडी में हार्मोनल असंतुलन और पेट की बीमारियों का संकेत हो सकता है। जानें भूख न लगने की वजह से क्या होते हैं और इस परेशानी से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है।

हार्मोनल असंतुलन

खाना डाइजेस्ट से लेकर एनर्जी देने तक, हर काम में हार्मोन की भूमिका रहती है। हार्मोन्स भूख को भी रेगुलर करते हैं। ऐसे में हार्मोन असंतुलन भूख न लगने का कारण बनता है।

स्ट्रेस और पुरानी बीमारियां

मेंटल स्ट्रेस भूख को कम कर देता है। काम का स्ट्रेस और वर्कलोड भूख न लगने की मुख्य वजह है। इससे मेंटल और फिजिकल हेल्थ बुरी तरह प्रभावित होती है। लंबी बीमारियां और उनकी दवाइयां बॉडी पर नेगेटिव असर डालती हैं।

भूख बढ़ाने के लिए टिप्स

पेट की बीमारी भूख कम करती हैं। ऐसे में दालचीनी, काली मिर्च, पुदीना और अजवाइन जैसे मसाले हमारी भूख बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इन्हें किसी भी खाने में छिड़ककर सेवन कर सकते हैं। धनिया गैस्ट्रिक एंजाइम को बढ़ाता है, जिससे डाइजेशन अच्छा होता है और भूख बढ़ती है। खाली पेट धनिए के पत्तों का जूस पीने से अपच की प्रॉब्लम सुलझती है जो भूख बढ़ाने में मदद करती है। अदरक भूख बढ़ाने का रामबाण उपाय है। धनिया के बीजों और अदरक पाउडर को अच्छे से पानी में पकाकर और इसका जूस पीने से भूख बढ़ती है।

ईटिंग डिसऑर्डर का इलाज है जरूरी

कई लोग बढ़ते मोटापे या वजन को लेकर इतना सजग होते हैं कि इन्हें कम करने के लिए कुछ अलग खान-पान की आदतें अपना लेते हैं। अब इनकी वजह से वजन और मोटापा तो कम हो जाता है, लेकिन इससे सेहत पर बुरा असर पड़ता है। इन्हीं आदतों को ईटिंग डिसऑर्डर यानी खान-पान से जुड़ी बीमारी कहा जाता है।

ईटिंग डिसऑर्डर क्या है?

यह एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खाता है तो कभी बहुत ही कम । जिसकी वजह से वह एनोरेक्सिया नर्वोसा का शिकार हो जाता है। एक रिसर्च के अनुसार, एनोरेक्सिया के मरीजों का दिमाग बाकी लोगों की तुलना में कुछ अलग तरीके से व्यवहार करता है और कुछ लोग जन्म से ही इस बीमारी की संभावना के साथ पैदा होते हैं। कई लोग तो शरीर में मौजूद कैलोरी को घटाने के लिए हानिकारक तरीकों का सहारा लेते हैं, जिससे बुरा असर पड़ता है।

ईटिंग डिसऑर्डर के कारण

ईटिंग डिसऑर्डर होने के कारणों का तो अभी तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन माना जाता है कि वातावरण संबंधी कारणों की वजह से होती है। रिसर्च के मुताबिक, एनोरेक्सिया और बुलिमिया नाम की खान-पान संबंधी बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में 10 गुना ज्यादा होती है।

ईटिंग डिसऑर्डर से बचाव

  • ईटिंग डिसऑर्डर से बचने के लिए तीनों वक्त पौष्टिक खाना खाएं।
  • सही समय पर ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करें।
  • दही, फ्रूट्स, छाछ और हरी पत्तेदार सब्जियां खाएं।
  • थोड़ी मात्रा में कुछ हेल्दी खाने की आदत डालें।

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