नई दिल्ली25 मिनट पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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जिंदगी संघर्ष का दूसरा नाम है। जो मुश्किल हालात में हिम्मत नहीं हारते, उन्हें ही एक समय बाद अच्छा मुकाम हासिल होता है।

दिल्ली की रहने वालीं तीतरी देवी ने जिंदगी के हर कदम पर मुसीबतों का सामना किया। लेकिन सब्र रखकर खुद पर विश्वास रखा और दिल में हमेशा उम्मीद जताई कि सब ठीक हो जाएगा। हुआ भी कुछ ऐसा।

तीतरी पहले गली-मोहल्लों में कूड़ा बीनतीं और दिनभर में 250 रुपए कमा पातीं। आज वह ‘स्वच्छता वॉरियर’ हैं।

‘ये मैं हूं’ में आज जानिए तीतरी देवी के इस सफर की कहानी…

8 साल की उम्र में शुरू किया काम

मैं बिहार के नालंदा से हूं। मेरा बचपन का नाम रूबी है। लेकिन मैं 3 भाइयों के बाद पैदा हुई तो मां-पापा ने मेरा नाम तीतरी रख दिया।

मेरे मां-पापा एक बड़े आदमी के घर गाय-भैंस संभालने का काम करते थे। काम करने के बाद वहां से आटा-चावल मिल जाता था। इसके बाद ही घर में चूल्हा जलता।

मैं स्कूल जाती लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लगने की वजह से मैंने दूसरी क्लास में ही पढ़ाई छोड़ दी। तब मेरे दिमाग में यही बात बार-बार आती कि पढ़कर क्या करूंगी।

अगर भैंस चराऊंगी तो कम से कम दूध दही खाने को तो मिलेगा। मैंने किसी दूसरे के घर में 8 साल की उम्र में गायों की देखभाल करने का काम शुरू कर दिया। गरीबी के चलते हर रोज खाना मिलना मुश्किल होता था। इसलिए घर के हालात को देखकर और पेट की भूख को भरने के लिए मैं बचपन से ही काम करने लगी।

9 साल की उम्र में शादी

पापा को कहीं से एक लड़के का पता चला। वह दिल्ली के मटियाला में कूड़े बीनने का काम करता है तो वह तुंरत शादी करने को तैयार हो गए। मेरी शादी 9 साल की उम्र में हुई और बिना गौना हुए ही ससुराल चली आई।

मेरे पति बचपन से कूड़ा बीनने का काम करते थे लेकिन मैं शादी के बाद बिहार में ही रही और वो दिल्ली में।

ससुराल में रहना मेरे लिए आसान था। वहां मुझे लंबे घूंघट के साथ साड़ी पहननी पड़ती थी। मुझे साड़ी पहननी भी नहीं आती थी तो मेरी जेठानी मुझे साड़ी पहनाती। लड़कपन में ससुराल वालों को मेरे चलने, बैठने हर चीज से दिक्कत होती। वह मेरे पति को कहते थे कि इसे चलना, बैठना, पहनना सिखाओ। सास बोलती कि यह अच्छी बहू नहीं है।

ससुराल वालों के ताने परेशान करते

शादी के कई साल बीत चुके थे लेकिन मुझे बच्चा नहीं हो रहा था। ऐसे में मेरी सास, ननंद, जेठानी सब मेरे खिलाफ मेरे पति को भड़काते।

मैं जब सिंदूर लगाती तो जेठानी मेरी सिंदूर धो देती और कहती जो औरत पति को पिता नहीं बना सकती, उसे सिंदूर लगाने का कोई हक नहीं।

मैं बहुत रोती थी। सभी मेरे पति को कहते कि इस बांझ को साथ में रखकर क्या करोगे। यह शब्द मुझे अंदर से तोड़ रहे थे। मेरा हर पल रोते हुए गुजरता।

पति को दूसरी शादी के लिए कहा

मेरी सास पति को कहती थी कि इसे छोड़ दो। दूसरी शादी करोगे तो बच्चे हो जाएंगे। सास, जेठानी सब मुझसे कहते कि मैं अपने पति से बात नहीं करूं। वह मुझे नहीं चाहता है और ना ही मुझे अपने साथ रखेगा।

जब पति दिल्ली से गांव आए तो उन्होंने अपने परिवार के सामने दूसरी शादी करने से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं तीतरी के साथ ही रहूंगा। दूसरी शादी कभी जिंदगी में नहीं करूंगा।

मैं तानों से इतनी परेशान थी कि पति को बोल दिया कि आप दूसरी शादी कर लीजिए। कम से कम आपको पिता बनने का सुख तो मिलेगा।

मेरी यह बात सुन पति ने भावुक होकर कहा कि तुम चली जाओगी तो मैं मर जाऊंगा पर दूसरी शादी नहीं करूंगा। जीते जी मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा।

पति के साथ दिल्ली आ गई

इन हालात में पति मुझे अपने साथ दिल्ली लेकर आ गए। हम यहां झुग्गी में रहते थे। कहने को तो वह झुग्गी थी लेकिन मेरे लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं थी क्योंकि मैं अपने पति के साथ थी, जो मुझे बहुत प्यार करते।

हम पति-पत्नी साथ में गली-मोहल्ले में कूड़ा बीनते और कूड़ा छांटकर बेचते। इस तरह हर दिन 250 रुपए कमा लेते।

एक दिन मुझे किसी ने दिल्ली के नजफगढ़ स्थित साईं बाबा के मंदिर के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वहां जाकर जो मांगते हैं, बाबा सब मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।

गुरुवार के दिन मैं वहां उस मंदिर में पहुंची और उनसे अपनी गोद भरने की प्रार्थना की। वहां सच में मेरी मुराद पूरी हुई। शादी के 7 साल बाद मुझे लड़का पैदा हुआ। जब मैं ससुराल जाती तो मेरी जेठानी मेरे लड़के के बारे में बोलती कि यह बच्चा किसी दूसरे का होगा। मैं तब बहुत रोती लेकिन मेरे पति कहते कि जिसको जो बोलना है बोलने दो। सच मैं और तुम जानते हैं।

बाकी लोग क्या बोलते हैं, इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। आज मेरे 3 बच्चे हैं।

3 साल पहले बदली किस्मत

एक दिन मैं सड़क किनारे कूड़ा छांट रही थी। तभी एक आदमी मेरी पास आया और मुझसे कहा कि हमारे यहां नौकरी करोगी। मैं पूछा कि आप कौन हैं और क्या काम करना है।

उस भाई ने बताया कि वह ‘चिंतन’ नाम की संस्था से हैं जो वेस्ट मैनेजमेंट पर काम करती है। उन्होंने कहा कि आपको दिल्ली के जखीरा में शिफ्ट होना पड़ेगा। यहां आपको कूड़ा अलग-अलग करना होगा। सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम करना है और महीने में 4 छुट्‌टी मिलेगी। सैलरी 18 हजार रुपए होगी।

18 हजार रुपए सुनकर मैं खुश हो गई क्योंकि रोज के ढाई सौ रुपए से गुजारा बहुत मुश्किल से होता था। मैंने काम करने के लिए तुरंत ‘हां’ कर दी। चिंतन में नौकरी के बाद मेरी किस्मत ही पलट गई।

आज मैं अपने खुद के खरीदे पक्के मकान में रहती हूं। ननद की शादी करवाई। बच्चों को स्कूल में भर्ती करवाया और उनके खातों में पैसे जमा करती हूं।

कूड़ा बीनने को लोग छोटा काम समझते हैं, लेकिन मैंने अपनी किस्मत कूड़े में से ही बीनकर निकाली है। काम छोटा बड़ा नहीं होता, मेहनत सबसे बड़ी होती है।

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