नई दिल्ली13 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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एक अच्छी गहरी नींद हर इंसान को तरोताजा बना देती है और कई बीमारियों से दूर रखती है। इसलिए नींद को कई मर्ज की दवा माना गया है।

लेकिन आजकल हर इंसान की एक आम समस्या है नींद न आना, क्योंकि लाइफस्टाइल में बदलाव आ गया है। अब लोग देर रात तक मोबाइल देखते हैं या कुछ नाइट शिफ्ट करते हैं। यहीं नहीं कई बार स्ट्रेस होने पर भी नींद उड़ जाती है।

लेकिन इस समस्या को एक हॉर्मोन ठीक कर सकता है जिसका नाम है मेलाटोनिन।

स्लीप साइकिल को सुधारे मेलाटोनिन

मेलाटोनिन स्लीप हॉर्मोन है जिसे ‘ड्रैकुला हॉर्मोन’ या ‘हॉर्मोन ऑफ डार्कनेस’ कहा जाता है। सर गंगाराम हॉस्पिटल में न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंशु रोहतगी कहते हैं कि मेलाटोनिन हॉर्मोन दिमाग में पीनियल ग्लैंड में रिलीज होता है। जब आसपास अंधेरा होता है तब यह ब्लड में मिलता है जिससे इंसान को नींद आने लगती है।

रोशनी इस हॉर्मोन की दुश्मन है। वह रोशनी सूरज की हो या मोबाइल या टीवी से निकलने वाली ब्लू लाइट।

दरअसल नींद का सूरज से गहरा रिश्ता है। हमारे शरीर में एक घड़ी है जिसे ‘सर्केडियन रिदम’ कहते हैं। यह सूरज के निकलने के साथ शुरू हो जाती है। इसलिए पहले के जमाने में लोग सुबह सूरज की पहली किरण के साथ जागते थे और सूरज ढलने के बाद सो जाते थे।

चूंकि मेलाटोनिन प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर शरीर में बनता है इसलिए इस हॉर्मोन का स्तर रात के समय ज्यादा होता है।

अंधेरा गहरा बढ़ाता मेलाटोनिन का लेवल

शरीर में मेलाटोनिन 10 बजे के बाद बनने लगता है लेकिन रात 2 से 4 बजे तक यह हॉर्मोन पीक पर होता है। सुबह 5 बजे इसका असर कम हो जाता है। रातभर शरीर में चलने वाली मेलाटोनिन की गतिविधि नेचुरल तरीके से नींद को कंट्रोल करती है और इंसान के दिमाग को रिलैक्स कर उसे ऊर्जा से भर देती है।

मेलाटोनिन हॉर्मोन की कमी घटाए इम्यूनिटी

जो लोग रात को सोते नहीं है, उनके शरीर में मेलाटोनिन की कमी होने लगती है। इस हॉर्मोन की कमी शरीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता को कम कर देती है जिससे व्यक्ति आसानी से बीमार पड़ने लगता है। कई रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि जो लोग रात को समय पर सो जाते हैं, उनकी इम्यूनिटी अच्छी होती है।

डायबिटीज का बढ़ता खतरा

2018 में जनरल डायबिटीज केयर की स्टडी में पाया गया कि जो लोग रात को जागते हैं, उनमें डायबिटीज का खतरा बाकी लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है। रात को जागने से मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता क्योंकि मेलाटोनिन बनता ही नहीं है। इससे शरीर इंसुलिन रेजिस्टेंस हो जाता है। इसलिए आजकल कम उम्र के लोगों में भी डायबिटीज मिलने लगी है।

मोटापा बढ़ाता घटता मेलाटोनिन

डॉ. अंशु रस्तोगी कहते हैं, मेलाटोनिन हार्मोन का अच्छा लेवल बॉडी के फैट को बर्न करने में मदद करता है जिससे व्यक्ति का वजन नहीं बढ़ता।

अमेरिका में हुई एक स्टडी में पाया गया कि लगातार 12 महीने तक सही समय पर सोने और जागने से बॉडी फैट पर असर देखने को मिला। इससे शरीर में एडिपोनेक्टिन (adiponectin) नाम का केमिकल बनने लगता। इससे शरीर में जमी चर्बी तेजी से घटती है। जो लोग रात को सोते नहीं है, उन्हें मोटापा जल्दी घेरता है।

हाई ब्लड प्रेशर के मरीज बन सकते हैं

रात को न सोना इंसान को हाई ब्लड प्रेशर दे सकता है। जब नींद नहीं आती तो व्यक्ति थकान महसूस करता है, मूड स्विंग होने लगते हैं और पाचन से जुड़ी दिक्कतें शुरू हो जाती हैं।

नींद पूरी ना लेने से आलस घेर लेता जिसका असर सीधा दिल पर पड़ता है।

जनरल हाइपरटेंशन में छपी एक रिसर्च में भी यह बात साबित हो चुकी है। यह शोध 66 हजार महिलाओं पर किया गया जिनकी उम्र 25 से 42 साल की थी।

16 साल तक चली इस रिसर्च में पाया गया कि जो महिलाएं रात को सोती नहीं थीं, उसका असर उनके बॉडी मास इंडेक्स (BMI) और डाइट पर पड़ा। इनमें से 26 हजार महिलाओं को हाइपरटेंशन हुआ। स्टडी में यह भी सामने आया कि जिनकी नींद 7 से 8 घंटे की नहीं होती, उनमें यह दिक्कत ज्यादा होती है।

अच्छी नींद के लिए बाजार में मौजूद कई सप्लीमेंट

आजकल अधिकतर लोग रात 11-12 बजे के बाद ही सोते हैं। अच्छी नींद के लिए आजकल बाजार में कई तरह की स्लीप गमी और सप्लीमेंट मिल रहे है। यह सप्लीमेंट दावा करते हैं कि इन्हें खाने से शरीर में मेलाटोनिन एक्टिव होता है जिससे अच्छी नींद आती है।

इस पर डॉ. अंशु रोहतगी कहते हैं कि अधिकतर लोगों को नींद ना आने की दिक्कत तब शुरू होती है जब वह नाइट शिफ्ट कर रहे हों या ज्यादा ट्रैवल करने से ‘जेट लैग’ का शिकार हों।

नींद लाने के लिए किसी भी दवा में 3 मिलीग्राम मेलाटोनिन की मात्रा होनी चाहिए लेकिन कुछ में इसकी मात्रा 10 मिली ग्राम तक होती है, जिसे लेना ठीक नहीं।

कैम्ब्रिज हेल्थ अलाइंज में स्लीप सप्लीमेंट्स पर स्टडी हुई। इस स्टडी में एक गमीज के पैक पर लेबल की गई मेलाटोनिन की मात्रा 347% ज्यादा मिली।

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार स्लीप सप्लीमेंट्स में मौजूद मेलाटोनिन का स्तर सेहत के लिए खतरनाक है। इससे बेहोशी, सिरदर्द, बिस्तर पर यूरिन निकलना, अनियमित पीरियड्स जैसी समस्या हो सकती है। स्टडी में दावा किया गया कि 88% सप्लीमेंट्स के पैकेट पर किए गए दावे झूठे निकले।

उम्र के साथ घटता मेलाटोनिन

कई लोग उम्र बढ़ने के साथ अनिद्रा का शिकार हो जाते हैं। दरअसल उम्र बढ़ने के साथ शरीर में मेलाटोनिन की मात्रा घटने लगती है। इसके अलावा जो लोग अल्जाइमर या मूड डिसऑर्डर का शिकार होते हैं, उनके साथ भी ऐसा होता है।

वहीं, शाम के समय टेलीविजन, मोबाइल या लैपटॉप का इस्तेमाल भी इस हॉर्मोन का स्तर घटा देता है। इसलिए शाम ढलते ही हर इंसान को अपना स्क्रीनटाइम कम या बंद कर देना चाहिए।

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