44 मिनट पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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शहर-ए-अदब लखनऊ की तंग गलियों में लगे अड्डे पर नाजुक उंगलियों और खूबसूरत धागों से की गई चिकनकारी के कद्रदान दुनियाभर में मौजूद हैं। लेकिन इस कला को जिंदा रखने वाले कारीगरों की बेपनाह मेहनत भी लखनऊ के खुलूस, अदब, तहजीब और अपनेपन की खुशबू में लिपटी है।

लखनऊ की रहने वाली 62 साल की नसीम बानो इसकी जीती जागती मिसाल हैं, वो चिकनकारी इकलौती कारीगर हैं जो अनोखी चिकनकारी करती हैं। इनके कपड़े पर कढ़ाई कहां से शुरू हुई, और कहां खत्म हई ये पकड़ पाना नामुमकिन है। यही वजह है कि इस अनोखी कला और अनोखी चिकनकारी के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।

दैनिक भास्कर की ‘ये मैं हूं’ सीरीज में जानिए नसीब बानो की चिकनकारी के धागों से गुथी उनकी कामयाबी की दास्तान उन्हीं के लफ्जों में…

आदाब दोस्तों…

मैं नसीम बानो लखनऊ से हूं। मुझे चिकनकारी की बारीकी और कढ़ाई में 45 साल का तजुर्बा है। कम उम्र में ही अब्बा जान ने हम बहनों को चिकनकारी का हुनर सिखाया। 13 साल की उम्र तक मैं अच्छी साफ सुथरी कढ़ाई करने में माहिर हो चुकी थी। बचपन में हमारा सिर्फ एक ही काम था, स्कूल से आते ही अम्मी हाथ मुंह धुलाकर नमाज पढा़तीं। उसके बाद खाना खिलातीं, और हम बहनें कढ़ाई करने बैठ जाया करते। जिस तरह बच्चे खेलते-कूदते बचपन गुजारते हैं, लेकिन मैंने नाजुक उंगलियों और सुई-धागों के साथ चिकनकारी के बूटों को कपड़ों पर काढ़ते हुए अपना पूरा बचपन गुजारा। मेरी बड़ी बहन भी खूबसूरत चिकनकारी के फूल बूटे बनाती थीं। उनके हुनर के लिए उन्हें भी नेशनल आवॉर्ड से नवाजा गया था।

मेरे हाथों की चिकनकारी बोलती है। इसी का नाम कला है जो अपना परिचय खुद दे।

मेरे हाथों की चिकनकारी बोलती है। इसी का नाम कला है जो अपना परिचय खुद दे।

अब्बा से सीखा चिकनकारी का हुनर

बहुत छोटी उम्र से ही लखनऊ चिकनकारी की कढ़ाई में मेरी दिलचस्पी पैदा हो गई। मैं बचपन से ही अब्बा को चिकनकारी करते देखती। मेरे अब्बा स्व. हसन मिर्जा ने अनोखी चिकनकारी की शुरुआत की। इस कला के लिए उनको केंद्र सरकार ने साल 1969 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया। इस कला में चिकन के कपड़े के ऊपर काम होता है, कपड़े के नीचे टांके नहीं आते हैं।

इंजीनियर बेटा भी चिकनकारी करता है

मेरा पूरा परिवार इसी काम में लगा है। मेरी कढ़ाई ज्यादा इसलिए भी निखर गई क्योंकि शादी ऐसे घर में हुई जहां जर्दोजी का काम होता था। मेरे शौहर का अच्छा खासा जर्दोजी का काम था। मैंने शादी के बाद भी चिकनकारी का अपना काम जारी रखा और अब मेरे शौहर भी इसी काम में मेरा हाथ बटांते हैं। मैंने अपने बेटों को पढ़ाई के साथ साथ चिकनकारी का हुनर भी सिखाया है। मेरे एक बेटे ने बीटेक किया है। साथ ही वो सफाई के साथ बहुत ही खूबसूरत चिकनकारी करता है।

अनोखी चिकनकारी क्या है?

आनोखी चिकनकारी कढ़ाई अपने नाम की तरह बिल्कुल अनोखी है। इसकी खासियत यह है कि कढ़ाई करने पर कपड़े के दूसरी तरफ टांके नजर नहीं आते। यानी जिस कपड़े पर कढ़ाई की गई है उसके उल्टी तरफ कपड़ा प्लेन नजर आता है। काम इतना बारीक और सफाई से किया जाता है कि एक कुर्ते को बनाने में 2 से 3 महीने लग जाते हैं। अनोखी चिकन की साड़ी लहंगा बनाने में 6 महीना या कभी उससे ज्यादा का वक्त भी लगता है।

जालीदार कढ़ाई सबसे ज्यादा मुश्किल

चिकनकारी की खास कढ़ाइयों में कील, कंगना, घास पत्ती, मुर्री, जंजीरा, टेपचि, बखिया फंदा, पेचनी, बिजली, काथा शामिल है। लेकिन कपड़े पर जालीदार कढ़ाई करना सबसे ज्यादा मुश्किल काम है और ये कढ़ाई सबसे ज्यादा महंगी होती है। इन कढ़ाई को सूती कच्चे धागे से करती हूं, लेकिन रेशमी धागों जाली की कढ़ाई भी बहुत खुबसूरत होती है। फैब्रिक के हिसाब से भी धागा बदल जाता है। जैसे जॉर्जेट, सिल्क के कपड़े पर रेशम के धागे से कढ़ाई होती है लेकिन चिकनकारी के लिए सूती कच्चा धागा ही खास माना जाता है। सबसे पहले कटिंग करती हूं। उसके बाद डिजाइन की छपाई और कढ़ाई। महंगाई लगातार बढ़ रही है। रॉ मटेरियल का दाम 30 फीसदी महंगा हो गया है।

5 हजार से ज्यादा लड़कियों को ट्रेनिंग दे चुंकी हूं

अब तक मैं लखनऊ के आस पास के इलाकों में सरकारी सेंटर में 5000 से ज्यादा लड़कियों को चिकनकारी की ट्रेनिंग दे चुंकी हूं। चिकन की कढ़ाई सिखाने पर लड़कियों को सरकार की तरफ से 3000 रूपए महीना मिलता और सिखाने के ए‌वज में मुझे भी तन्ख्वाह मिलती है।

अमेरिका में मिली नौकरी ठुकराया

सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मैं सरकार की तरफ से ट्रेनिंग के लिए गई हूं। अब तक अमेरिका, कनाडा, चिली, इटली, जर्मन, रूस, थाईलैंड, ओमान और मस्कट के अलावा 9 देशों में अपने हुनर को पहचान दिला चुकी हूं। अमेरिका का एक किस्सा याद आ गया जब मैं वहां चिकनकारी की ट्रेनिंग दे रही थी तो स्कूल की प्रिंसिपल ने मेरे हुनर को देखकर मुझे नौकरी का ऑफर दे डाला। हालांकि ये मौका मेरे लिए किसी जैकपॉट से कम नहीं था लेकिन मैंने सोचा मैं अपनी कला को अपने देश में रहते हुए जिंदा रखूंगी। और मैंने उस नौकरी के लिए मना कर दिया। जर्मनी और फ्रांस के साथ ही तमाम देशों की लड़कियों और महिलाओं को अनोखी चिकनकारी के हुनर से रूबरू करा चुकी हूं।

जी-20 सम्मेलन में किया कला का प्रदर्शन

मुझे पिछले साल हुए जी-20 सम्मेलन में अपनी कला को विदेशियों को दिखाने का मौका मिला जिसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया आदा करती हूं कि मेरी अनोखी चिकनकारी के हुनर को विदेशों से भारत आए मेहमानों ने खूब पसंद किया।

चिकनकारी के कारीगरों की आवाज बनी

चिकनकारी के कारिगरों की हालात दिन ब दिन मुस्किल होते जा रहे हैं। बाजार में चाइनीज चिकनकारी की भरमार है जो हाथ की कढ़ाई कहकर बेचे जा रहे हैं। जबकि हाथ की असली चिकन की कढ़ाई करने में बहुत मेहनत लगती है। लेकिन उन कारीगरों को उनकी मेहनत के एवज में मेहनताना कम कम मिलता है। बिचौलिया पैसे खा लेते हैं। मैंने कई बार कोशिश की है कि सरकार कारीगरों की मदद के लिए आगे आए। आज भी मैं मदद की आस लगाए बैठी हूं। शायद कुछ बेहतर हो जाए। कम से कम कारीगर को उसकी मेहनत के एवज में दाम और इंसाफ दोनों मिले।

मिल चुके हैं इतने अवार्ड

साल 1985 में तत्कालीन सीएम की ओर से राज्य पुरस्कार दिया गया। 1988 में तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने मुझे इस काम के लिए राष्ट्रीय पुरूस्कार से सम्मानित किया। इसी कला और हुनर को देखते हुए साल 2019 में उपराष्ट्रपति की ओर से शिल्पगुरू पुरस्कार मिला। नेशनल क्राफ्ट म्यूजियम एंव हस्तकला एकाडमी में मेरे अब्बा जान, बड़ी बहन और मेरे हाथों की अनोखी चिकनकारी का नमूने मौजूद हैं।

उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी इस हुनर की हिफाजत करेंगी

आज मैं जो कुछ भी हूं, अपने परिवार के सपोर्ट और पिता की सीख की वजह से हूं। उन्होंने बढ़िया चिकनकारी की परंपरा को जिंदा रखने की कोशिश की है और इस परंपरा को नौजवान कारीगरों तक पहुंचाने को भी अपना लक्ष्य बनाया है। मैं अपने अब्बा के सपनों का सफर जारी रखूंगी। मुझे उम्मीद है कि आने वाली पीढ़ी इस परंपरा की हिफाजत करेंगी और इसे आगे बढ़ाएगी।

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