21 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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आजकल कई पेरेंट्स ये मानते हैं कि बच्चों के साथ फ्रेंडशिप करनी चाहिए, दोस्ताना व्यवहार होना चाहिए। लेकिन माता-पिता की बच्चों से दोस्ती किस हद तक सही है?

मां और बेटी हमेशा से एक दूसरे से अपना सुख-दुख बांटती रही हैं। उनका रिश्ता सहेलियों जैसा हो सकता है, पर वो सहेली नहीं हो सकतीं। कम से कम मां सहेली बनकर बेटी की हर बात पर ‘हां में हां’ नहीं मिला सकती और बेटी मां को सहेली मानकर पूरी सच्चाई के साथ दिल खोलकर नहीं रख सकती।

इस केयरिंग और शेयरिंग रिश्ते के बीच मां बेटी एक दूसरे से सहेलियों जैसा व्यहवहार कर सकती हैं, लेकिन सहेली नहीं हो सकतीं। क्योंकि मां सहेली बनते ही बेटी को गलत बात पर टोकने का हक खो देगी।

मुंबई के वॉकहार्ट हॉस्पिटल की साइकेट्रिस्ट डॉ. सोनल आनंद ने एक ऐसी मां-बेटी के बारे में बताया जो एक दूसरे को सहेलियां कहती हैं। लेकिन जब बेटी हाथ से निकलने लगी तो मां ने खुद को बदला। रवैया तो दोस्ताना रखा, लेकिन बेटी के भले के लिए मां के रूप और जिम्मेदारी को अहमियत देनी पड़ी।

मां को बेझिझक बताई प्रेग्नेंसी की बात

पहले बेटी के साथ मां फ्रेंड की तरह व्यवहार करती थी। लेकिन जैसे जैसे बेटी बड़ी होती गई, मां को महसूस होने लगा कि बेटी मिलने वाली आजादी का गलत फायदा उठाने लगी है।

एक दिन बेटी ने मां को बताया कि उसकी कॉलेज फ्रेंड प्रेग्नेंट है। बेटी चाहती थी कि उसकी फ्रेंड के अबॉर्शन का खर्च मां उठाए ताकि फ्रेंड के पेरेंट्स को इस बारे में कुछ पता न चले।

बेटी के व्यवहार से मां हैरान रह गईं। इतनी बड़ी बात बेटी इतनी आसानी से उसे कैसे कह गई। मां ने बेटी को डांटा भी और समझाया भी। साथ ही धीरे-धीरे अपने व्यवहार में बदलाव करना शुरू कर दिया। अब वह बेटी की फ्रेंड नहीं बनना चाहतीं।

मां ने बदला फैसला

मां ने बेटी की बात मनाने से साफ इनकार कर दिया। लेकिन सख्ती से नहीं, समझाकर। मां ने बेटी को समझाया कि इतनी छोटी उम्र में अबॉर्शन के कई खतरे हो सकते हैं। कई बार ये जानलेवा भी हो सकता है। इतना बड़ा रिस्क लेना और लड़की के पेरेंट्स को अंधेरे में रखना सही नहीं है।

मां के समझाने पर बेटी को बात समझ में आ गई, लेकिन उसके बाद मां सतर्क हो गईं। उन्हें समझ आ गया कि बेटी से दोस्ती नहीं मां-बेटी का रिश्ता रखना ही सही है। दोस्त बनने पर कई बार बच्चे मर्यादा की सीमा रेखा पार कर लेते हैं, जिससे पेरेंट्स से उनके रिश्ते में खटास आ सकती है।

माता-पिता दोस्त नहीं हो सकते

डॉ. सोनल आनंद कहती हैं कि बच्चों के दोस्त कई हो सकते हैं, लेकिन पेरेंट्स एक ही होते हैं, फिर माता-पिता बच्चों के दोस्त कैसे हो सकते हैं। दोस्तों से हमें किसी चीज की इजाजत नहीं लेनी पड़ती। पेरेंट्स से बिना पूछे अगर बच्चे अपने फैसले करने लगेंगे तो घर का अनुशासन बिगड़ जाएगा। बच्चों को गाइड करने की जिम्मेदारी माता-पिता की है। बच्चों के मन में पेरेंट्स को लेकर डर नहीं होना चाहिए, लेकिन ये भरोसा होना चाहिए कि वो जहां पर भी अटकेंगे तो माता-पिता उन्हें संभाल लेंगे। साथ ही इस बात को लेकर मन के किसी कोने में ये डर भी होना चाहिए कि आजादी का गलत फायदा उठाने पर माता-पिता का विश्वास खो देंगे।

मां सही-गलत का फर्क सिखाती है

रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. माधवी सेठ के अनुसार, इस दुनिया में मां का अपनी संतान से सबसे गहरा रिश्ता होता है। जन्म से 9 महीने पहले से ही मां और बच्चे का रिश्ता जुड़ जाता है। जहां तक मां-बेटी के रिश्ते की बात है, तो बेटी को जितना मां समझती है उतना और कोई नहीं समझ सकता। इसके बावजूद वह बेटी की सहेली जैसी हो सकती, लेकिन मां सहेली कभी नहीं हो सकती।

मां सहेली बन जाएगी तो मां का कर्तव्य कौन निभाएगा। सहेली गलत बात के लिए आपकी हां में हां मिला सकती है, लेकिन मां हमेशा सही-गलत में फर्क करना सिखाती है।

फ्रेंड हम अपनी मर्जी से चुन सकते हैं, मां को नहीं चुन सकते। मां-बेटी में सहेली जैसी अंडरस्टैंडिंग हो सकती है, इतना खुलापन हो सकता है कि दोनों हर विषय पर खुल कर बात कर सकें। लेकिन मां की सहेली से तुलना नहीं की जा सकती।

बेटी को फ्रेंड नहीं मानतीं टिस्का चोपड़ा

हाल ही में बॉलीवुड अभिनेत्री टिस्‍का चोपड़ा का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने एक मंच पर बेटी के साथ अपने रिश्ते की बात की। टिस्‍का का कहना है कि बच्चे माता-पिता का आईना होते हैं। बेटी में उन्हें अपना अक्स नजर आता है।

टिस्का ये मानती हैं कि एक्‍टर, डायरेक्‍टर बनने से भी ज्यादा मुश्किल काम मां बनना है। मां की भूमिका में कोई संडे नहीं होता, बल्कि संडे के दिन मां को ज्यादा काम करने होते हैं। टिस्का ने बताया कि वह चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों न हों, अपनी बेटी के लिए समय जरूर निकाल लेती हैं।

टिस्‍का का कहना है कि वो कूल मॉम जरूर हैं, बेटी के साथ फ्रेंड की तरह व्यवहार करती हैं, लेकिन वो बेटी की फ्रेंड नहीं बनना चाहतीं। टिस्का की ये कोशिश रहती है कि उनकी बेटी ज्‍यादा देर तक फोन पर बात न करे या टीवी के सामने न रहे। उन्हें खुशी है कि बेटी अपनी लिमिट जानती है और ज्यादा स्क्रीन टाइम से बचती है।

बेटी के साथ मां अलग-अलग रोल निभा सकती है। वो उसकी सहेली जैसी हो सकती है, लेकिन सहेली नहीं हो सकती। मां की भूमिका केयर टेकर और राजदार की है, जिसमें सारी जिम्मेदारियां जरूरी हैं। बेटी को सही-गलत का फर्क मां ही सिखाती है। मां की बात बेटी जल्दी समझ पाती है। इसके बाद ही पिता के समझाने की बारी आती है।

बॉलीवुड की मां-बेटियां

बॉलीवुड में मां-बेटी की ऐसी कई जोड़ियां हैं तो अपने रिश्ते को बहुत समझदारी से निभा रही हैं। ग्लैमर इंडस्ट्री में काम करने के बावजूद ये मां और परिवार की जिम्मेदारियां बखूबी निभा रही हैं।

फ्रेंड नासमझी कर सकते हैं

आपकी बेटी की फ्रेंड उसे कॉलज बंक करके फिल्म देखने की सलाह दे सकती है। वह खुद भी उसके साथ फिल्म देखने चली जाएगी, लेकिन मां ऐसा कभी नहीं करेगी। फ्रेंड सिगरेट-शराब पीने के लिए उकसा सकती है, लेकिन मां कभी इसकी सलाह नहीं देगी। मां बेटी के साथ फिल्म देखने जा सकती है, ओटीटी अपर बोल्ड सीरियल साथ बैठकर देख सकती है, लेकिन पढ़ाई छोड़कर ऐसा कुछ करने की सलाह कभी नहीं देगी। रिश्ते में लिहाज और सीमा रेखा जरूर होनी चाहिए। यही मां बेटी के रिश्ते की खूबसूरती है।

बच्चों से जिम्मेदारियां बांटें

बच्चों की सुविधाएं देने के बजाय उनके साथ समय बिताएं। कई लोग घर की बातें बच्चों के साथ शेयर नहीं करते, जिससे बच्चे घर के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। बच्चों को इतनी छूट देना सही नहीं कि वो घर की कोई भी जिम्मेदारी लेने से बचें। उन्हें उनकी उम्र के अनुसार जिम्मेदारीयां सौंपें। इससे बच्चे जिम्मेदार बनते हैं। अपने बढ़ते बच्चों से सलाह मांगें ताकि उन्हें इस बात की खुशी हो कि उनकी राय आपके लिए मायने रखती है। इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है।

बेटा-बेटी दोनों को उनकी जिम्मेदारियां समझाएं

बेटा हो या बेटी दोनों को घर के काम सिखाएं। बेटे को लड़कियों की इज्जत करना सिखाएं। बेटी को सिखाएं कि लड़कों की बराबरी से बात नहीं बनती। पुरुष और महिला के शरीर की तरह उनका व्यवहार और जिम्मेदारियां भी अलग होती हैं। बराबरी करने के बजाय उनके साथ कंधे के साथ कंधा मिलाकर चलना सीखें।

डॉ. सोनल आनंद कहती हैं कि बेटी को टेक्नोलोजी से खेलने की छूट देने के साथ साथ टेक्नोलोजी से मिलने वाले झटके के बारे में लगातार आगाह करें। कहीं वो अपना कोई नुकसान न कर ले।

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