2 घंटे पहले
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वह इतना क्यों सोच रही है? आखिर वह क्यों नहीं लांघ सकती लक्ष्मण रेखा? सतयुग में सीता ने भी तो लांघी थी वह रेखा! हालांकि ऐसा रावण के छल की वजह से उन्हें करना पड़ा था। यह तो कलयुग है। इसमें तो बहुत कुछ करने की छूट है। अपने मन के हिसाब से करने की स्वतंत्रता है और मनमानी करने से रोकने वाले थोड़े उसके मन को समझ सकते हैं।
उसका मन है और उसका मन चाहता है कि वह इस रेखा को लांघ ले। उसके साथ तो कोई छल नहीं कर रहा। वह तो जानते-बूझते पार करना चाहती है लक्ष्मण रेखा।
जिंदगी उसकी है, वह जो चाहे कर सकती है, जैसा चाहे कर सकती है। जीने का हक उसे भी है। सच कहे तो वह ऐसा भी नहीं कह सकती कि कोई छल नहीं कर रहा, लेकिन हां लक्ष्मण रेखा पार करने के लिए रावण की तरह कोई बाध्य भी नहीं कर रहा है।
विडंबना तो देखो उसके लिए लक्ष्मण रेखा उसके अपने मां-बाप ने खींची है। और वह भी किसके लिए… हिमेश के लिए! वह तो उनकी बेटी है फिर भी उनके मन में उससे ज्यादा हिमेश के लिए प्यार है या समाज के डर की वजह से वह हिमेश का साथ देते आए हों। वह जो गलत करता है दिखाई नहीं देता उन्हें क्या? अपनी ही बेटी के दुश्मन बन बैठे हैं उसके जन्मदाता।
जानती है कि हिमेश इतनी सफाई से पासे फेंकता है कि उसकी कुटिलता छुप जाती है और कूटनीति पर मासूमियत का आवरण इस तरह चिपक जाता है कि वही उसका असली चेहरा लगता है। यह भी तो हिमेश का एक गुण है जिसके कारण वह सबकी प्रशंसा का पात्र भी बनता है और इसी की आड़ में विक्टिम कार्ड भी खेलता है। और वह हर बार बुरी बन जाती है…पुरुष को सताने वाली स्त्री के रूप में उसे लोग देखते हैं।
हिमेश उसका पति है। उसके मां-बाप का चहेता दामाद और समाज का एक प्रतिष्ठित व्यक्ति। वह उस पर हाथ नहीं उठाता, अपशब्द नहीं बोलता। किसी चीज की कमी नहीं रखता और उसकी हर सुख-सुविधा का ख्याल रखता है।
मां हमेशा उससे कहती हैं, “पता नहीं क्या चाहती है तू। इतना अच्छा पति मिला है। अपने भाग्य को सराहने के बजाय हर समय कुढ़ती रहती है। कितना तो ख्याल रखता है हिमेश तेरा। और तेरा ही क्यों हमारा भी ख्याल रखता है, इतना आदर-सम्मान करता है। मैं तो कहती हूं कि ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद है कि हमें ऐसा दामाद मिला। तेरा भाई तो कुछ करता नहीं और आगे भी उम्मीद नहीं है कि वह हमारा सहारा बनेगा। हिमेश ने हमें संभाला हुआ है वरना रिटायरमेंट के बाद जिंदगी जीना आसान नहीं होता। और एक तू है हमेशा उसका साथ छोड़ने की बात करती है।”
“खबरदार कभी ऐसा सोचना भी मत,” किचन में पापा आकर खड़े हो गए थे। “यह समझ ले कि हमारे द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को कभी पार नहीं करना है तुझे। हमारी रेखा के आगे हिमेश ने भी रेखा खींची हुई है। जैसे ही तू उसके बाहर कदम रखेगी अनर्थ हो जाएगा। वैसे भी हिमेश जैसे प्रभावशाली व्यक्ति के लिए तुझे ढूंढ लेना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। नेताओं से लेकर बड़े-बड़े लोगों से उसकी पहचान है और खुद भी कोई टूटपुंजिया थोड़े है।
सारिका की मां अपनी बेटी को समझा दो कि वह हिमेश का ध्यान रखा करे। जब देखो तब मायके दौड़ी आती है। माना कि घर में नौकर-चाकर हैं, पर पत्नी की जगह तो कोई नहीं ले सकता।” गुस्सा आता है उसे यह सब बातें सुनकर। आखिर क्यों नहीं दिखाई देता किसी को हिमेश का सच?
सात महीने हो गए हैं उसके विवाह को। कहने को हिमेश जैसा सुदर्शन, धनाढ्य पति मिला है और इसके लिए पापा खुद की ही हमेशा पीठ थपथपाते रहते हैं कि देखो कितना बढ़िया लड़का ढूंढा है मैंने तेरे लिए।
लेकिन क्या पति ऐसे ही होते हैं? पत्नी को प्यार नहीं चाहिए क्या? पत्नी को सम्मान नहीं चाहिए क्या? और क्या पत्नी को दैहिक सुख भी नहीं चाहिए? किससे कहे वह यह सब बातें? कौन यकीन करेगा उसका?
दूसरों के सामने हिमेश ऐसे उसका हाथ थाम लेता है मानो उसके बिना तो एक कदम भी चलना मुश्किल है। फिर बेशर्मों की तरह होठों पर मुस्कान और आंखों में शरारत लाते हुए अपने बालों को हल्का सा झटकते हुए कहता है, “माय वाइफ इस माय लाइफ।” “झूठा, रिश्तों से बेमानी करने वाला,” सारिका के मुंह से निकला तो मेड हैरानी से उसे देखने लगी।
“शाही पनीर में लौंग, इलाइची, तेजपत्ता और दालचीनी डालना मत भूलना किसनी दीदी,” सारिका ने मेड से कहा। वह नहीं चाहती कि उसके और हिमेश के चांदी के वर्क से ढके संबंधों के बारे में किसी को पता चले। हिमेश चेतावनी भी देता रहता है कि कमरे से बाहर हवा तक को हमारे रिश्ते की सच्चाई नहीं पता चलनी चाहिए। “खाओ,पियो, शॉपिंग करो, ऐश करो। तुम्हारे मां-पापा का सारा खर्च मैं ही उठा रहा हूं और अपने निकम्मे साले का भविष्य भी सुधार ही दूंगा।” खीझ होती है सारिका को उसकी बातों से। घिन ही आती है।
शादी की रात ही उसने कह दिया था, “घर में जैसे सजावट की अन्य चीजें हैं वैसे ही तुम मेरे लिए एक सजावटी सामान हो। खूबसूरत बीवी साथ लेकर चलने में अच्छी लगती है और कुछ को ललचाने के लिए भी। इससे ज्यादा मेरा तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं होगा। मेरे आलीशान घर में ठाट से जिंदगी गुजारो। प्यार, बच्चों की चाह, तुम्हारी खूबसूरती के कसीदे पढ़ना, ऐसी उम्मीद मुझसे मत रखना।
मेरी बहुत सारी दोस्त हैं जिनके साथ मैं अपनी रातें गुजारना पसंद करता हूं।” वह तो अगले दिन उस बंधन को तोड़ चली जाना चाहती थी। पर सोचा शायद हिमेश ने मजाक किया होगा। मजाक नहीं भी होगा तो भी वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा। लेकिन हिमेश ने उसके मां-पापा को अपनी कूटनीति में उलझा लिया। उन्हें अपने ऊपर निर्भर बना लिया। वह उनसे कहती भी तो वह उसे ही डांटते।
“बहुत पछताओगी अगर घर की देहरी लांघने की कोशिश की। बर्बाद कर दूंगा,” हिमेश जब-तब धमकाता और लक्ष्मण रेखा जो एक नहीं दो-दो खिंची हुई थी। वह पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। लेकिन अब नहीं। मां-पापा अपने स्वार्थ की वजह से उसके दर्द को नहीं समझ रहे हैं तो ठीक है। क्या उसे जीने का हक नहीं है? क्या उसे खुशियां पाने का अधिकार नहीं है?
विवाह के दो महीने बाद मुलाकात हुई थी उसकी निलय से। “सॉरी सारिका नहीं आ सका तुम्हारे विवाह में। शिकागो में था एक कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में। तुम खुश तो हो न?”
“क्या फर्क पड़ता है इस बात से। डेढ़ साल से तुमने कभी कोई संपर्क नहीं किया। पता ही नहीं था कि कहां हो।”
“फर्क क्यों नहीं पड़ता? तुम मेरी दोस्त हो।” “सिर्फ दोस्त?”
सारिका ने उसकी आंखों में देखते हुए पूछा था।”हां मतलब…” निलय के शब्द लड़खड़ा गए थे।
“अच्छा बताओ तो क्या तुम्हें मेरी आंखों में कभी अपने लिए प्यार नहीं दिखा?”
“यह सब क्यों पूछ रही हो?” सारिका ने सब बता दिया था उसे।
“चलोगी मेरे साथ शिकागो? मुझे वहीं नौकरी मिल गई है। लांघ पाओगी लक्ष्मण रेखा?”
“इंतजार कर सकोगे?” निलय ने उसकी हथेली को चूमते हुए सहमति जताई थी।
हिमेश शहर से बाहर गया था। अपने घर की चाबी मां को थमाते हुए वह बोली, “हिमेश आए तो उसे दे देना। वैसे डुप्लीकेट चाबी रहती है उसके पास। लौटूंगी नहीं। रोकने की कोशिश भी मत करना, क्योंकि लक्ष्मण रेखा लांघने की ताकत मेरे अंदर आ गई है। मैं अपनी मर्जी से उसे लांघ रही हूं, इसलिए ढूंढने मत भेजना किसी को।”
मां चाबी थाम उसे जाते देखती रहीं। खूब समझती हैं उसका दर्द। अपने स्वार्थ के लिए कब तक उसे रोके रख सकती हैं? जीने का हक उसे भी तो मिलना चाहिए!-सुमन बाजपेयी