2 घंटे पहले

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अक्सर अर्जुन उसे ‘बूढ़ी लड़की’ कह कर चिढ़ाते हैं। अर्जुन–दर्शना के पति…। उम्र बढ़ने के साथ ही साथ पति-पत्नी का लगाव भी बढ़ता जाता है। दर्शना-जिसके चेहरे पर उम्र बढ़ने के साथ साथ जैसे यौवन ठहर सा गया है। आज दर्शना की उम्र पचास बावन के करीब है। दुबली पतली, सुन्दर, गौरवर्णा। बेहद नफ़ासत से साड़ी बांधती है। केश अभी भी लम्बे हैं। कानों में मोती के टॉप्स, नाक में हीरे की लौंग और गले में मंगलसूत्र। इस उम्र में भी कितनी मासूमियत, कितनी निष्कपटता ठहरी हुई है उसके चेहरे पर। इन दिनों बेटे के ब्याह के बारे में सोचते सोचते उसे अपना बीता बिसरा हुआ कुछ याद आने लगता है तो एक हूक सी उठती है उसके मन में। उदासी की एक लहर मन के एक कोने से उठकर दूसरे कोने में समा जाती है। सब कुछ पिछले जन्म की सी बात लगती है। उन दिनों दर्शना ग्रेजुएशन कर रही थी जब उसका मन देवांग से जुड़ गया था।

हालांकि अर्जुन उसे बहुत प्यार करते हैं लेकिन न जाने क्यों आजकल शाम के धुंधलके में अक्सर उसे वे दिन याद आ जाते हैं जब पन्त आंटी ने अपने फौजी बेटे के लिए दर्शना को पसंद कर लिया था। कैशोर्य की अंतिम और यौवन की प्रथम सीढ़ी पर ठिठकी दर्शना अपनी उम्र से अधिक गम्भीर और समझदार थी। वो किसी शहर की एक सरकारी कॉलोनी थी जहां वे लोग रहा करते थे। लोगों के तबादले भी हुआ करते थे। नए लोग आते थे और कुछ सालों बाद उनके तबादलों के कारण शहर और मित्र दोनों ही छूट जाते थे। पन्त आंटी का परिवार कुछ समय पहले ही उस कॉलोनी में रहने आया था। दर्शना ने पन्त आंटी के बेटे देवांग को उस समय पहली बार देखा था जब वो रानीखेत से उनके शहर आया था। फ़ौजी वर्दी पहने देवांग को दर्शना खिड़की के परदे के कोने से चुपचाप तब तक देखती रही थी जब तक वो घर के भीतर नहीं चला गया। उसका दिल ज़ोर से धड़क कर रह गया। वर्दी में कितना सुदर्शन दिख रहा था देवांग। वो तीन दिनों तक ऐसे ही चुपचाप देवांग को देखती रही कि चौथे दिन देवांग खुद उनके घर चला आया पन्त आंटी के साथ।

“दर्शना, मैं ऊन लेकर आई हूं। तू नाप ले ले मेरे देवांग का। एकदम गर्म ऊन का स्वेटर बिन देना इसके लिए। लद्दाख में बहुत ठंड पड़ती है। देवांग की अगली पोस्टिंग उधर की ही है।’’

हंसती हुई पन्त आंटी ने शर्मीली दर्शना को खींच कर देवांग के सामने ला कर खड़ा कर दिया। दर्शना को देवांग के स्वेटर का नाप लेना ही पड़ा। वो स्वेटर बिनती गई और हर फंदे के साथ देवांग से उसका मोह बढ़ता गया। जिस दिन स्वेटर पूरा हुआ उसके अगले ही दिन देवांग को नई पोस्टिंग पर जाना था। बहुत जल्द लौट आने का वादा करके वो रोती हुई दर्शना को छोड़ कर चला गया। पन्त आंटी का चहकता महकता घर उदास था और उससे भी अधिक उदास थी दर्शना। चिठ्ठियों की लम्बी लम्बी प्रतीक्षा और विकल व्याकुल होते दिन रात। क्या प्रेम ऐसा ही होता है– दर्शना सोचती।

इस बीच पन्त आंटी और उसकी मां के बीच जो भी बात हुई हो, दर्शना नहीं जानती। हां, पन्त आंटी ख़ुशी ख़ुशी एक सुन्दर रत्नजटित सोने की अंगूठी दर्शना की अनामिका में पहना गई। कुछ दिनों तक दर्शना फूली इतराई फिरती रही लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंज़ूर था। किसी दूसरे गांव शहर से अचानक ही आ धमकी पन्त आंटी की सास ने पता नहीं क्या हंगामा किया कि एक दिन उतरे हुए चेहरे के साथ आ कर आंटी दर्शना की कुंडली मांग कर ले गईं, फिर भीतर ही भीतर उनके घर में जो भी मंत्रणा महाभारत हुई हो, कौन जाने। फ़िलहाल आंटी ने उनके घर आना लगभग बंद ही कर दिया। वे अक्सर उदास सी अपने घर के लॉन में दिखतीं फिर चटपट ही भीतर चली जातीं।

एक दिन दर्शना ने देखा, उनके घर का सारा सामान ट्रक पर लोड हो रहा था। जाने से पहले आंटी मिलने आई थीं उसकी मां से। दोनों सखियां गले मिल कर सुबक सुबक कर रोई थीं। पन्त आंटी बेहद शर्मिंदा थीं कि वो अपना दिया वचन पूरा नहीं कर सकीं। वो दुखी थी कि दर्शना उनकी बहू नहीं बन सकी। किसी ने खुल कर तो नहीं कहा लेकिन स्पष्ट था कि ये रिश्ता अब टूट चुका है। आंटी की पहनाई अंगूठी दर्शना की उंगलियों में सजी रही और वो उसके माथे पर एक तप्त चुम्बन दे कर हमेशा के लिए चली गईं। अंगूठी लेने, मांगने, उतारने का ख्याल किसी के मन में नहीं आया। देवांग के पत्र भी धीरे धीरे आने बंद हो गए। दर्शना अंधेरे में आंसुओं से डूबा अपना चेहरा टटोलती, हिचकियों को दबा लेती। भोगती रहती अपना अकेलापन और उसका जी करता इस दुःख से पलायन करने का कोई तो उपाय मिले।

जीवन तो आगे बढ़ता ही है। कुछ समय बाद एक सही रिश्ता देख कर उसका ब्याह हुआ। पति के प्यार में उमगती दर्शना दो प्यारे प्यारे बच्चों की मां बनी। धीरे धीरे बत्तीस बरस बीत गए। कुछ साल पहले उसने बेटी का ब्याह किया। छः महीने पहले वो नानी भी बन गई। उम्र का उतार उसके चेहरे पर झुर्रियां बन कर पसरा। बालों में सफेदी आ गई। आज भी कभी कभी उसकी कल्पना में फौजी वर्दी पहने एक मासूम सा चेहरा हंसता है लेकिन जल्द ही वो अपने घर परिवार और दुनियादारी में व्यस्त हो जाती है। कुछ समय से उसने बेटे के लिए रिश्ता देखना शुरू किया है। एक रिश्ता घर भर में सभी को पसंद आ चुका है। होने वाले वर वधू जब कई बार मिल चुके तब अर्जुन और दर्शना ने चाहा कि लड़की और उसके परिवार वालों से मिल कर बात पक्की कर ली जाये।

नियत समय पर वे लोग लड़की वालों के घर पहुंचे। सुरुचिपूर्ण तरीके से सजा हुआ सामान्य सा घर। अकेली बेटी और सहज सौम्य से दीखते माता पिता। बातचीत के दौरान दर्शना उनके घर के भीतर चली आई। भीतर कमरे में पैर रखते ही वो बुरी तरह चौंक पड़ी। दीवार पर बत्तीस बरस पहले के देवांग की तस्वीर टंगी थी जिस पर माला चढ़ी हुई थी। उस तस्वीर में देवांग ने वही स्वेटर पहना हुआ था जिसे दर्शना ने रातोंरात जाग कर बुना था।

“ये कौन…?,’’ वो पूछ बैठी।

“ये मेरी दर्शना के पिता…,’’दर्शना की मां मधु उदास थीं, ‘’मैं आपको बताने ही वाली थी कि दर्शना मेरे पहले पति की सन्तान है जो इंडियन आर्मी में कैप्टन थे। हमारे विवाह के तीन साल बाद ही वो एक आतंकवादी मुठभेड़ में शहीद हो गए। दर्शना तब बहुत छोटी सी थी और मेरे सामने पूरा जीवन पड़ा हुआ था। मेरे सास ससुर ने ही मेरा विवाह सुदीप के साथ करवाया,’’ मधु कहती जा रही थी– “क्षमा कीजियेगा, मुझे आप लोगों को ये बात पहले ही बता देनी चाहिए थी। लेकिन जो भी हुआ उसमें मेरी बेटी का क्या दोष ?’’ उसकी प्रश्नसूचक आंखें सामने खड़ी प्रौढ़ा दर्शना पर टिकी थीं।

“क्या आपको पता है कि मेरा नाम भी दर्शना है,’’ कहते हुए दर्शना हल्के से हंसी, “हमारा सौभाग्य होगा अगर आपकी बेटी हमारे घर बहू बन कर आती है।’’ वातावरण हल्का हो गया था।

“कैसा संयोग है कि मेरे पूर्व पति और आपके बेटे का नाम भी एक ही है ‘देवांग’।’’ मधु अब सहज थी। …और दर्शना सोच रही थी कि क्या ये सचमुच मात्र एक संयोग ही है? एक युग पहले दर्शना और देवांग जब बिछड़े थे तब बिछड़े थे लेकिन इस बार दर्शना और देवांग को नहीं बिछड़ने देगी वो। उन दोनों का मिलन ज़रूर होगा। पहाड़ों के एक छोटे से शहर में, बरसों पहले बिछड़े छूटे मकान में पता नहीं अब कौन रहता होगा? उसके थके दरवाज़े पर बरसों पहले एक लड़की ने अपने फ़ौजी का इन्तजार किया था। रूढ़ियों, नियति और परिस्थिति ने उन दोनों को अलग कर दिया था। लेकिन उनको तो मिलना ही था–तब नहीं तो अब। किसी दूसरे ही रूप में।

दर्शना ने अपनी होने वाली बहू को अपने कंगन उतार कर पहना दिए। साथ ही अपने पर्स में रखी एक मखमली डिब्बी में से बहुत पहले की संजोई हुई एक अंगूठी निकाली जिसके नग आज भी चमक रहे थे, दमक रहे थे। वो अंगूठी अपने हाथों से उसने अपनी बहू को पहना दी जैसे बरसों पहले पन्त आंटी ने उसे पहनाई थी। शायद ये उसी की अमानत थी।

हमारी श्वेतकेशी दर्शना कभी किसी को नहीं बताएगी कि उसका और मधु के पूर्व पति देवांग का क्या रिश्ता था। ये राज़ बस उसी के मन के किसी कोने में दबा रहेगा, हमेशा हमेशा ही। शादी पक्की हो चुकी थी। कुछ समय बाद ही दोनों घरों में शहनाइयां बजीं। विवाह के कार्ड पर लिखा था– देवांग वेड्स दर्शना। देवांग की मां आज सच में बहुत खुश थी।

-आभा श्रीवास्तव

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