10 घंटे पहले

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तुहिना का दिमाग झनझना रहा था। उंगलियां बार-बार मोबाइल की पे-डेटिंग ऐप में येस की जगह पर जा रहीं थीं और बार-बार वापस लौट आ रही थीं।

रात में पे-डेटिंग? वो भी उसके साथ जिसके लिए उसके मन में इतना आक्रोश है? क्या समझता है वो? कि वो उससे प्यार करती है? क्यों उसी के साथ उसे ये पे-डेटिंग करनी है? नहीं, अगर उसने कुछ गलत किया तो किसी से भी कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं होगी वो! और फिर कच्ची उम्र में हुआ वो हादसा कभी भूल सकती है?

फिर वो इतना सोच क्यों रही है? ज़रूरत जैसी तो कोई चीज़ नहीं बची है अब! और लालच? क्या इतने बड़े अमाउंट को देखकर लालच आ गया है उसे? या वो सचमुच उससे प्यार… नहीं..कतई नहीं..

हालांकि उसे पे-डेटिंग करते हुए लगभग एक साल हो गया है। पहली बार दिन के समय में जाते हुए भी वो यों ही हिचकिचा रही थी पर उस समय की बात और थी। उस समय उसके पास और कोई चारा नहीं बचा था।

पापा की असमय मृत्यु के बाद भूखों मरने की नौबत आ गई थी। मम्मी, भैया और वो, किसी के पास भी कोई काम नहीं था। तब भी उसे ये काम सबसे छिपाकर ही करना पड़ा था। आखिर मम्मी और भैया भी इसी समाज का अंश थे।

कोई भी कैसे सोच सकता है कि ऐसे समाज में जहां लड़कियों पर होने वाले अत्याचारों की इतनी खबरें रोज़ सामने आती हैं और लड़की के किसी लड़के के साथ दिख जाने पर लोग खा जाने वाली नज़रों से देखने लगते है।

वहां एक ऐसा समानांतर समाज भी चल रहा है, जहां लड़के सिर्फ अपना दुख-दर्द बांटने और दिल का हाल बयां करने के लिए एक लड़की को हायर करेंगे। और फिर ऐप के सुरक्षा का विश्वास दिलाने से क्या? साइबर क्राइम्स की कमी दिखती है क्या आसपास?

लेकिन वो मनोविज्ञान की छात्रा थी। इसमें उसे एक फायदा भी दिख रहा था। लोगों के मन की ज़रूरतों, उनकी समस्याओं को समझने का मौका मिलना था उसे।

तब उसने भैया को विश्वास में लिया था और तय हुआ था कि वो जहां भी जाएगी, वहां कुछ दूरी पर भैया भी रहेगा। अगर कुछ गलत होते देखेगा तो..

जगह तय हुई थी और तुहिना का चेहरे का डर पढ़कर कस्टमर ने ही दिखाया था उसे सीसीटीवी कैमरा। धीरे-धीरे उसे समझ आ गया कि मिलने की जगह ऐप तय करता था और उसके सुरक्षा के इंतज़ाम पुख्ता होते थे।

फिर तो भैया ने भी ये काम ले लिया था और मम्मी को भी विश्वास में ले लिया गया था। पहली बार तो ये जानकर कि भैया को भी बराबर से काम मिल रहा है। मतलब लड़कियां भी पेड प्यार हायर करती हैं, मम्मी की आंखें ऐसे आश्चर्य से खुली रह गईं थीं कि वो और भैया हंसते-हंसते लोटपोट हो गए थे।

पर आज की स्थिति अलग थी। पापा की ग्रेचुटी, पीएफ वगैरह मिल चुके थे। मम्मी ने बुनाई मशीन ले ली थी। उनका बिज़नेस चल निकला था और वो बच्चों पर ऐसा रिस्की काम छोड़ने के लिए लगातार दबाव बना रहीं थीं। और अब वो मम्मी या भैया से छिपाकर भी कुछ नहीं करना चाहती।

पर आशंका के विपरीत मम्मी ने उसे एक बार में अनुमति दे दी। वो उसे बहुत कुछ समझा रहीं थीं कि ये उसके लिए भी ज़रूरी है और तुहिना की आंखें भावो और श्रद्धा की गहराई से फैलती जा रही थीं।

“मम्मी, तुम वो सब बिन पढ़े कैसे जानती हो जो मैं मनोविज्ञान के कोर्स में पढ़ती हूं?” वो मम्मी के गले लग गई।

जैसी कि उम्मीद थी ही, वो पीकर धुत था। तुहिना सारे सीसीटीवी कैमरे चेक कर चुकी थी।

“कहो अपना झूठ कि तुम मुझे बेहद प्यार करती हो।” उसके स्वर में भर्त्सना थी।

“इतनी जल्दी क्या है? प्यार एकदम से नहीं होता। तो एकदम से कह देने से तो वो अननेचुरल ही लगेगा। आपने दस गुने रुपए दिए हैं तो मुझे भी तो अपना काम ईमानदारी से करने दीजिए। पहले मुझे ये तो कहने दो कि तुम मुझे अच्छे लगते हो।” तुहिना के स्वर में व्यंग्य था।

“ग्रेट! आई लाइक दैट! तो फिर वो ही बोलो जल्दी से।”

अब उसकी हालत देखकर तुहिना को उस पर थोड़ी सी दया आ गई थी तो आवाज़ में भी व्यंग्य के साथ दया घुल गई, “ऐसे कैसे बोल दूं? ऐसे तो वो भी अननेचुरल लगेगा। पहले ऐसा कोई काम तो करो जिससे तुम अच्छे लगने लायक लगो।”

तुहिना ने उसकी नब्ज़ पर हाथ रख दिया। जानती थी कि या तो अपनी हीन भावना छिपाने के लिए वो बेतरह भड़क पड़ेगा या फूटकर रोएगा। कठिन था पर अपने अनुभव से मिला दर्द छिपाकर मुस्कुराना ही था तुहिना को। उसके भीतर के मन के डॉक्टर को उसके मन के आक्रोश पर विजय पानी ही थी।

मां, भाई और टीचर्स का नैतिक संबल उसके साथ था और जहां वो अप्रेंटिसशिप कर रही थी, वहां के पेशेंट्स के सकारात्मक फीडबैक भी उसका आत्मविश्वास बढ़ा रहे थे।

वो मुस्कुराते हुए उसके नजदीक आ गई और सीधे उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली, “कोई ऐसा काम करो जिससे मुझे तुम्हारे अच्छे इंसान होने का यकीन हो जाए।”

उसकी मुस्कान निश्छल थी और आंखों में दया। असर उम्मीद जैसा ही हुआ।

“क्या करूं? तुम ही बताओ। मैं बिल्कुल भी अच्छा इंसान नहीं हूं। लोग ऐसा कहते हैं। मैं ऐसा क्या कर सकता हूं जिससे किसी को अच्छा लगूं।”

“क्या लोग सही कहते हैं? मुझे तो ऐसा नहीं लगता। आप इतनी देर से यहां आकर सभ्यता से बैठे हैं। आपने तो ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मैं आपको बुरा इंसान समझूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप अच्छे इंसान ही थे और लोगों के बुरा कहने के कारण आपने खुद ही खुद को बुरा साबित करने की कोशिश शुरू कर दी?” आखिर तुहिना ने उसकी नब्ज़ दबा ही दी।

आगे बढ़कर उसने आत्मविश्वास के साथ उसका हाथ थाम लिया, बिल्कुल सर्जरी करके ज़ख्म ठीक करने वाले डॉक्टर की तरह उसके स्पर्श में सहानुभूति थी। “आप अपने दिल की बात मुझसे कह सकते हैं। एक दोस्त की तरह।”

फिर तो वही हुआ जो तुहिना चाहती थी। उसके अंदर का सुलगता ज्वालामुखी फट पड़ा। “मेरे पिता ने दूसरी शादी मुझे मां देने के नाम पर की थी। पर वो औरत… वो दिन में अपने प्रेमी से मिलती थी मेरी उपस्थिति में। पिता से कहती थी कि वो दोस्त है। मुझे बहुत बुरा लगता था। जितना मैं समझ पाता था वो मेरे पिता से सेटिस्फाइड नहीं थी। दोनो की उम्र में अंतर बहुत था।

कुछ समय में पिता को सच्चाई पता चल गई। लेकिन वो पिता की दौलत के लालच में और पिता जमाने के लांछनो के डर से एक दूसरे से अलग न हो पाए। पर उनके झगड़े… वो औरत हमेशा अपनी चोरियां छिपाने के लिए मुझे झूठा और… और… साबित करती रहती।

मैं बड़ा हुआ तो मेरी जिंदगी में रूही आई। उसने मेरे पैसों पर ऐश किया। फिर जब उसे मुझसे अमीर लड़का मिल गया तो पूरे स्कूल के सामने मुझे ही… सिर्फ मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए…” उसकी सिसकियां बंध गईं और वो रोता ही गया…रोता ही गया…

तुहिना ने उसे रो लेने दिया। सिर्फ उसके सिर पर हाथ फेरती रही। वो रो चुका तो उसके आंसू पोछते हुए बोली, “जाओ, मुंह धो आओ।”

उसने आज्ञाकारी बच्चे की तरह आज्ञा का पालन किया।

“आप कॉफी लेंगी और स्नैक्स में क्या मंगाऊं? क्या पसंद करेंगी आप?” उसने वॉशरूम से लौटकर आदर से पूछा।

“आप मुझे अच्छे लगे। इस सभ्य व्यवहार के कारण,” तुहिना मुस्कुराई।

“चलिए आगे बढ़ते हैं,” कॉफी का मग हाथ में लेकर वो बोली “उसके बाद तुमने धारणा बना ली कि लड़कियां बेवफा होती हैं। तुम्हारे साथ गलत हुआ है, इसलिए तुम्हें उनसे बदला लेने का लाइसेंस मिल गया। इसीलिए तुम वैलेंटाइंस डे पर किसी पार्टी में लड़की से प्यार का झूठा इजहार करते, उसे भोगते और फिर मन भर जाने पर उसे छोड़ देते। आज तसल्ली से सोचकर बताओ, क्या तुम सही करते थे?”

“सही तो नहीं था, पर ये सब करके मुझे खुशी मिलती थी। मेरे चकनाचूर स्वाभिमान को संतोष मिलता था। लगता था मेरा कोई ज़ख्म ठीक हो रहा है।”

“तो अब तक तो ज़ख्म पूरी तरह ठीक हो जाने चाहिए थे। पर तुम्हें देखकर ऐसा लगता तो नहीं। क्योंकि तुम इतने अकेले न होते तो तुम्हें पेड-प्यार की जरूरत क्यों पड़ती?”

“तो फिर तुम्हीं बताओ, कैसे ठीक होंगे ये ज़ख्म?”

“बड़ी सिंपिल सी बात है। ज़ख्म मरहम लगाने से ठीक होते हैं, दूसरों को ज़ख्म देने से नहीं। दूसरो के ज़ख्मो पर मरहम लागाओ तो अपना भी ज़ख्म ठीक हो जाता है।”

“सच?”

“मेरा अनुभव ही सुबूत है। तुम्हें छह साल पहले की एक वैलेंटाइन पार्टी याद है, जब तुमने अपने स्कूल की एक लड़की को प्रपोज किया था। उससे झूठे प्यार का इजहार करते रहे और जब उसने तुम्हारे साथ होटल के कमरे में जाने से इनकार कर दिया तो उसे ही सबके सामने ये बताते हुए बेइज्जत किया था कि तुमने तो कभी उससे प्यार नहीं किया। वो ही तुम्हारी दौलत के लालच में…”

उसकी आंखें कुछ याद आते हुए आश्चर्य से चौड़ी होती जा रही थीं। “तुहिना? तुम तुहिना हो न! मुझे माफ कर दो प्लीज… मुझे माफ कर दो… अब तो तुम्हें पता चल गया है कि मैं ऐसा क्यों…”

“किसी का गुनाह उसके कभी पीड़ित होने का एक्स्क्यूज नहीं हो सकता।” तुहिना की आवाज किसी टीचर की तरह सख्त हो गई।

वो भी किसी बच्चे की तरह डर गया। दीन आवाज में बोला, “मैं तुम्हारी अभी-अभी मिली दोस्ती खोना नहीं चाहता। मेरा कोई दोस्त नहीं जो मुझे समझ सके। उस समय भी मैं तुम्हारी ओर आकर्षित हो गया था जब मुझे तुम्हारे इनकार से पता चला था कि तुम सबसे अलग हो…

मैं शर्मिंदा था, पर अपने अहं में कह नहीं पाया… और तुम भी तो प्यार करती थीं मुझसे। क्या तुम मुझसे अब भी प्यार करती हो? या नफरत करती हो और बदला लेने आई हो? अगर बदला लेने आई हो तब भी तुम गलत नहीं हो।

उस दिन मैंने कहा था कि तुम मेरे लेवल की नहीं हो। मैंने पैसों के अहंकार में कहा था और आज तुमने कह दिया कि मैं तुम्हारे लेवल का नहीं हूं। अपनी समझदारी, आत्मविश्वास और विकसित व्यक्तित्व के स्वाभिमान में।”

“नहीं, मेरा विश्वास करो कि मैं बदला लेने नहीं, बल्कि हो सके तो तुम्हें बदलने आई हूं। हां, मैं प्यार करती थी तुमसे। तुम मेरा पहला प्यार हो। दिल की गहराइयों से प्यार किया था तुम्हें।

मैं अक्सर सोचती थी कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया। और तुम्हें एहसास दिलाना चाहती थी कि तुमने गलत किया। मैं तुम्हें पछतावे का दर्द देना चाहती थी।

हां, पर आज मेरे मन में तुम्हें दर्द देने की इच्छा नहीं है। इसलिए इतना जरूर कह सकती हूं कि अब मैं तुमसे नफरत भी नहीं करती।

जैसा मम्मी और नैतिक शिक्षाओं की कहानियां कहा करती हैं, कि जख्म दूसरों को जख्म देने से नहीं मरहम लगाने से ठीक होते हैं, उसकी सत्यता परखने आई थी। और उसके सच साबित होने के बाद ही मैंने तुम्हें ऐसा करने की सलाह दी।

चलती हूं, तुमसे ये नहीं कह सकी कि तुम्हें प्यार करती हूं, इसलिए तुम्हारे पैसे वापस कर दिए हैं।” तुहिना मुस्कुराकर बोली और आत्मविश्वास के साथ कदम बढ़ाती वहां से चली गई।

– भावना प्रकाश

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