5 घंटे पहले

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सभी कहते हैं कि समय के साथ स्मृतियां धुल-पुछ जाती हैं। गलत है यह। कुछ भी नहीं भूलने देता हमारा मन, धड़कता दिल और दिमाग की नसें, सब एक साथ मिलकर निरंतर साजिश करती रहती हैं बीते कल को याद दिलाए रखने के लिए। तभी तो जैसे ही वह आंखें बंद करती है, वे स्मृतियां उसकी पलकों पर बैठ आंखों को नम कर देती हैं। जब वह एकांत में बैठी होती है, वे यादें उसकी बगल में बैठ उससे बतियाने की कोशिश करती हैं।

वह उठकर दूसरे कमरे में चली जाती है। किचन में जाकर बर्तनों की उठा-पटक करने लगती है, लेकिन उसके पीछे-पीछे सधे कदम रखती यूं चली आती हैं, मानो उसकी सहचारी हों। मजबूर होकर उसे लौटना ही पड़ता है बीते पलों में जिसमें किसलय के सिवाय और कोई नहीं होता। हो भी नहीं सकता, क्योंकि उसके लिए ही तो उसने सारे रिश्तों की पूर्णाहुति दे दी थी।

किसलय, जिससे उसने पागलपन की हद तक प्यार किया था। प्यार नहीं कहना अपने को धोखा देना होगा। किसी को अगर इतना चाहो तो वह आपके भीतर बस जाता है। दूरियां आ जाएं, पर उसके लिए एहसास नहीं मरते, उसके लिए कुछ भी करने की चाहत खत्म नहीं होती। अगर वह कहे कि अब वह किसलय से प्यार नहीं करती तो यह तो अपने ही दिल की धड़कनों को अनसुना करना होगा।

खैर, कभी जिसे उसने पागलपन की हद तक चाहा था, जो उसका हमेशा आइडियल बना रहा और जिसके साथ उसने मंदिर में जाकर खूब हंसते-खिलखिलाते, खूब साज-श्रृंगार कर फेरे लिए थे, उसे कैसे छोड़कर आ सकती है?

वह ऑफिस में होती है तो लैपटॉप में आंखें गड़ाए, या कुलीग्स से बातें करते या आने-जाने वाले क्लाइंट से मिलने की वजह से स्मृतियां दस्तक नहीं देती हैं। या देती भी होंगी तो उसे उनकी खट-खट व्यस्तता के बीच सुनाई नहीं देती होगी। लेकिन छुट्टी के दिन यूट्यूब पर चलते गानों के बावजूद उसे पिछली यादों की खटखट साफ सुनाई देती है।

“कभी-कभी मैं तुम्हारे प्यार से डर जाता हूं सुकन्या,” किसलय कहता था। वह तब उसे अपनी बांहों में और मजबूती से जकड़ लेती। “कमाल करते हो? लोग तो ऐसे प्यार करने वालों को ढूंढते हैं जो शिद्दत से उन पर प्रेम लुटाएं और यहां जनाब मेरे प्यार की बारिश में भीगते हुए ऐसे घबराते हैं कि बचने के लिए किसी शेड की तलाश करने लगते हैं।”

“जितना तुम्हारा प्यार क्रेजी है, उतनी ही तुम्हारी बातें भी। नॉर्मल नहीं रह सकतीं क्या तुम?” किसलय उससे कहता तो तब वह हंसते हुए उसके गालों पर चुंबनों की झड़ी लगा देती। “तुम हो ही इतने अच्छे और स्वीट कि नार्मल रहा ही नहीं जा सकता।”

“किसलय में कोई कमी नहीं थी। न रंग-रूप में, न योग्यता में और न ही धन-संपदा में। अच्छा खासा बिजनेस था ज्वेलरी का, फिर भी किसलय को जब उसने पापा से मिलवाया तो उन्होंने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया।

सुगम्या भड़क उठी थी और किसलय भी हैरान रह गया था। उसने हाथ जोड़ बहुत धैर्य से शांत स्वर में कहा था, “अंकल, यकीन मानिए आपकी बेटी को हमेशा खुश रखूंगा। कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा आपको।”

“मैं जानता हूं तुम इसे खुश रखोगे, पर फिर भी मैं इस रिश्ते से इनकार करता हूं।”

किसलय चला गया था और उसने घर में तूफान मचा दिया था। “आखिर क्यों मेरी खुशी नहीं चाहते या इकलौती हूं, इसलिए हमेशा घर में ही रखना चाहते हैं ताकि बुढ़ापे में आपका सहारा बनूं? तभी हमेशा बेटा मानते रहे मुझे। फिक्र न करें, शादी के बाद भी आपका और मां का पूरा ख्याल रखूंगी। किसलय भी ऐसा नहीं है कि आपका बेटा न बनकर दामाद की तरह नखरे करे।”

पापा चुपचाप अंदर अपने कमरे में चले गए। पीछे-पीछे मां भी। वह भी गई थी, पर उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया था। कान लगाकर सुना उसने। मां के सवाल करने पर पापा कह रहे थे, किसलय एक शांत और गंभीर किस्म का लड़का है। उसे देख लगा जैसे बुद्ध जैसी ध्यान चेतना है उसमें और हमारी बेटी अल्हड़ स्वभाव की है। तेज बहती नदी की तरह चंचल और चपल। उसकी धारा को संभाले रखना मुश्किल होगा किसलय के लिए।”

“उसमें धैर्य है तो आसानी से संभाल पाएगा सुगम्या को। फिर क्या दिक्कत है?”

“कब तक? ऐसे रिश्तों के क्या परिणाम होते हैं समझ सकती हो।” यह सुन सुगम्य के क्रोध की ज्वाला और भड़क गई थी। पिता हैं या दुश्मन? अपनी ही बेटी के लिए अच्छा नहीं सोचते।

रात किसी तरह काटी थी उसने और सुबह ही किसलय के घर पहुंच गई थी। “मुझे आज ही तुमसे शादी करनी है?”

“यह क्या कह रही हो?” किसलय अचंभित था। सामने उसके मम्मी-पापा खड़े थे, छोटी बहन खड़ी थी।

“आंटी, अंकल सॉरी। मैं ऐसे आपके घर आ गई, पर अगर आप लोग इजाजत दें तो क्या हम विवाह कर सकते हैं? मेरे पापा तो नहीं मान रहे हैं। मैं घर छोड़कर आई हूं।”

किसलय की मम्मी-पापा क्या कहते। बेटे की ओर देखने लगे।

“सुगम्य मैं मना लूंगा तुम्हारे पापा को। तुम वापस जाओ। चलो तुम्हें घर छोड़ने चलता हूं।”

“नहीं जा सकती वापस। चिट्ठी लिखकर आई हूं कि अब कभी नहीं लौटूंगी। मेरा सामान बाहर रखा है। बाकी तुम्हारी मर्जी।”

वह वापस जाने के लिए मुड़ी तो किसलय ने उसका हाथ थाम लिया। उसे डर था कि वह कुछ कर न बैठे। जानता था वह सुगम्या को और समझता भी था। गुस्सा नाक पर बैठा रहता था, लेकिन दिल की साफ थी। किसलय भी उससे प्यार करता है, बेशक उसकी जैसी दीवानगी नहीं है। वह उसे तकलीफ में नहीं देख सकता था। उसके मम्मी-पापा धूमधाम से अपने इकलौते बेटे की शादी करना चाहते थे, लेकिन वह अड़ गई थी कि तभी शादी करनी है।

ले लिए उन्होंने फेरे। किसलय के घरवालों ने उसे दिल से अपनाया और वह खो गई अपने नए संसार में। सब तो अच्छा चल रहा था, फिर न जाने क्यों सुगम्या को लगा वह खुश नहीं है। क्यों? उसे नहीं पता था। किसलय ने पूछा कोई कमी अखर रही है क्या? कोई बात अखर रही है क्या? कोई जवाब नहीं था उसके पास। सब तो परफेक्ट था।

किसलय का साथ था, सहयोग था और हर तरह की सुख-सुविधा थी। घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं डाली गई थी, यह सोचकर कि वह नौकरी करती है। हालांकि पैसे कि लिए उसे नौकरी करने की जरूरत नहीं थी, लेकिन किसलय जानता था कि सुगम्या को काम करना अच्छा लगता है, लोगों से मिलना-जुलना पसंद है। वह हमेशा ही कहती थी कि शादी के बाद नौकरी नहीं छोड़ेगी। किसलय की आदत ही नहीं थी किसी पर दबाव डालने की। कोई बात बुरी भी लगती तो चुप ही रहता। लेकिन सुगम्या जरा-जरा सी बात पर या तो गुस्सा हो जाती या रूठ जाती। और हर बार किसलय उसे मनाता, हालांकि उसके मम्मी-पापा को बेटे का इस तरह झुक जाना बर्दाश्त नहीं होता।

“इतना भी सिर पर चढ़ाना ठीक नहीं बीवी को। और यह तो पहले, ही सरचढ़ी और बददिमाग है। तू इतना शांत स्वभाव का है। कैसे सहन करता है उसकी मनमानी?” किसलय की मम्मी ने कह ही दिया था एक दिन। मां थीं, दर्द तो होगा ही! सुगम्या ने सुना, एक बार नहीं, कई बार। हर बार किसलय चुप रहा। सुगम्या का पक्ष नहीं लिया, उसे डिफेंड नहीं किया।

वह रूठ गई। किसलय ने मनाया, खूब प्यार किया।

सुगम्या को जैसे इस रूठने-मनाने के खेल में मजा आने लगा। एक दिन किसलय की बहन से कहा,“ क्या बच्चों की तरह रूठती रहती है? बिजनेस हेड हो, ऑफिस में कैसे काम करती होंगी? वहां भी कोई है क्या मनाने वाला?”

भड़क गई सुगम्या। “तुम कौन होती हो हम पति-पत्नी के बीच बोलने वाली? किसलय चाहे मुझे मनाए, मुझे प्यार करे या जो भी करे, तुम्हें क्या?”

किसलय की बहन नाराज हो गई, मम्मी नाराज हो गईं और पापा भी! “एक तो तुम्हें अपने घर की बहू बनाया, ऊपर से तुम्हारा व्यवहार के साथ अच्छा नहीं। मेरी बेटी से तुम इस तरह बात नहीं कर सकतीं। और किसलय सुन ले अगर तुझे हमारे साथ रहना पसंद नहीं तो अलग हो जा।”

“गलती आपकी बेटी की है।” वह रूठ गई। किसलय ने नहीं मनाया। मां और बहन की वजह से वह कुछ कह भी नहीं पाया। वह चली गई अपनी दोस्त के घर। किसलय नहीं आया तो वह कंपनी के गेस्ट हाउस में शिफ्ट हो गई। वह फिर भी नहीं आया तो किराए का घर ले लिया। अकेले रहते हुए उसे आठ महीने हो गए हैं। हर समय किसलय का ख्याल मन पर हावी रहता है, पर ईगो आड़े आ जाता है और वह उसे फोन नहीं करती, उसका फोन नहीं उठाती। तो क्या जो पापा ने कहा था, वह सही कहा था! वह चंचल है, चपल है…पर किसलय तुम तो मुझे संभाल सकते हो!

दरवाजे पर बेल लगातार बज रही थी। टूटे मन और उदासी के साथ उसने दरवाजा खोला।

किसलय सामने खड़ा मुस्करा रह था। “बहुत हो गई तुम्हारी मनमानी और रूठना। अब मान जाओ।”

सुगम्या उसके सीने से लग गई। “पहले क्यों नहीं आए मनाने?”

-सुमन बाजपेयी

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