नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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जिंदगी में उन्हीं लोगों को मुकाम हासिल होता है जो लगातार मेहनत करते हैं। लखनऊ की रहने वालीं विपुल वार्शने पिछले 33 साल से आर्किटेक्ट की दुनिया से जुड़ी हैं। जिस जमाने में उन्होंने काम शुरू किया, तब महिलाएं इस फील्ड में दूर दूर तक नजर नहीं आती थीं।

पुरुषों के दबदबे वाले इस करियर में विपुल ने अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप के बाद पूरे शहर की बिल्डिंग्स को दोबारा डिजाइन किया। नई दिल्ली के मशहूर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के री-डेवलपमेंट पर भी काम किया।

गर्व की बात है कि उन्होंने लेह और अयोध्या का एयरपोर्ट भी डिजाइन किया।

हाल ही में विपुल की किताब ‘Ayodhya: A Stroll By way of the Dwelling Heritage’ भी पब्लिश हुई है।

‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए जानी-मानी आर्किटेक्ट और लेखिका विपुल वार्शने से।

पापा ने अखबार में भेजा स्कैच

मैं लखनऊ में पली-बढ़ी। बचपन से मुझे पेंटिंग और स्कैच बनाने का बहुत शौक है। स्कूल में जब भी फ्री टाइम मिलता, मैं टीचर और क्लासमेट्स का स्कैच बना देती थी।

यही नहीं, टीवी देखते हुए मैंने कई एंकर और आर्टिस्ट का पोट्रेट तक बनाया। जब मैं तीसरी क्लास में थी, तब पापा ने मुझे एक कार्टून बनाते हुए देखा जो उन्हें इतना पसंद आया कि उसे अंग्रेजी के अखबार में भेज दिया। अखबार ने उस कार्टून को तुरंत छाप भी दिया।

आर्किटेक्चर साइंस और आर्ट का मिश्रण

घरवाले मुझे मेडिकल पढ़ाना चाहते थे लेकिन मेरी क्रिएटिविटी देख पापा ने मुझे आर्किटेक्चर की पढ़ाई करने की सलाह दी क्योंकि यह साइंस और क्रिएटिविटी का कॉम्बिनेशन है।

दरअसल, मेरे पापा के कुछ दोस्त इसी फील्ड से हैं। उन्होंने पापा से कहा कि लड़कियों के लिए यह प्रोफेशन अच्छा है, क्योंकि इसमें क्रिएटिविटी दिखाने के बहुत मौके मिलते हैं। पापा के दिमाग में था कि यह सरकारी नौकरी की तरह है। ऑफिस में बैठकर जॉब करनी है जो मेरे लिए ठीक रहेगी।

उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि यह बहुत मेहनत वाला प्रोफेशन है। तब कंप्यूटर नहीं होते थे तो ड्राइंग बोर्ड पर रातभर काम करना पड़ता था। पापा को यह भी नहीं पता था कि इस प्रोफेशन में फील्ड में भी जाना पड़ सकता है।

शुरुआत में लोगों ने मुझे गंभीरता से नहीं लिया

जब मैं आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रही थी तो मेरे बैच में 80% लड़के थे। लड़कियां 3 ही थीं। तभी अंदाजा हो गया था कि इस प्रोफेशन में लड़कों का बोलबाला है।

पढ़ाई करने के दौरान मेरी शादी हो गई। शादी के अगले दिन वाइवा था।

हसबैंड सिविल इंजीनियर हैं तो मैंने शादी के बाद उनके साथ ही अपना करियर शुरू किया। जब मैं फील्ड पर जाती तो वर्कर मुझसे बात करने में झिझकते थे। मजदूर मेरी बात को अनसुना कर देते ।

झांसी में एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी तो वर्कर्स को एक दीवार पर जाली नहीं बनानी आ रही थी। मैं उनके पास गई और ईट रखकर बताया तो प्रोजेक्ट मैनेजर को बहुत बुरा लगा और उसने कहा कि ’मैडम आप क्यों टीपिकल डिजाइन बनाती हैं?’

कोई महिला को बॉस बनते हुए देखना पसंद नहीं करता। उस जमाने में एक महिला आर्किटेक्ट को कोई जल्दी स्वीकार नहीं कर पाता। लेकिन मैंने उन्हें नरमी से बताया और जताया भी कि काम तो मेरे डिजाइन के हिसाब से ही करना पड़ेगा।

क्लाइंट्स बात करने में हिचकिचाते

ऑफिस में मेरा और मेरे हसबैंड का केबिन अलग-अलग था, तो जो भी क्लाइंट आते थे, वो अक्सर कहते थे कि हमें मिस्टर वार्शने से मिलना है।

यहीं नहीं चूंकि मेरा नाम लड़कों जैसा है तो अक्सर लोगों को लगता था कि विपुल कोई पुरुष है। अक्सर ऐसा हुआ कि मैंने पूरा प्रोजक्ट पूरा कर दिया। सारी बातें हो गईं और क्लांइट ने पूछा कि मिस्टर विपुल वार्शने कब आएंगे? जब मैं उन्हें बताती कि मैं ही विपुल हूं तो उनका रिएक्शन अजीब होता। कुछ को ये जानकर ताज्जुब होता कि मैं आर्किटेक्ट हूं।

लेह में एयरपोर्ट बनाना सबसे चैलेंजिंग रहा

मैंने अभी तक 2 एयरपोर्ट डिजाइन किए हैं। पहला लेह एयरपोर्ट और दूसरा अयोध्या एयरपोर्ट। 2018 में मुझे लेह एयरपोर्ट को डिजाइन करने का मौका मिला। यह प्रोजेक्ट मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था क्योंकि वहां की हाइट, जमीन और वातावरण बहुत अलग है। पहाड़ों की वजह से लैंड एरिया बहुत ऊपर नीचे है।

एयरपोर्ट के अराइवल और डिपार्चर लॉन्ज में 3 मंजिल का फर्क है। वहां लगेज बेल्टी उल्टी चलानी पड़ी। तापमान इतना कम था कि एयर कंडीशनर में इस्तेमाल होने वाला फ्लूइड फ्रीजिंग पॉइंट से भी कम था। ऐसे में मैंने स्पेशल केमिकल का इंतजाम किया ताकि फ्लूइड जमे नहीं।

लेह एयरपोर्ट के लिए मेरा स्पेशल डिजाइनिंग पर फोकस था। मैंने वहां के लोकल कल्चर और आर्ट एंड क्राफ्ट को ध्यान में रखते हुए एंट्रेंस पर 30 फुट ऊंचा बुद्ध का स्टैचू रखवाया क्योंकि लेह में बौद्ध मोनेस्ट्री बहुत हैं। कलरफुल जालियां और प्रेयर व्हील लगवाए।

लखनऊ की इमारतों ने बना दिया राइटर

मैं बचपन से क्रिएटिव तो हूं लेकिन मुझे हैरिटेज और कल्चर से भी बहुत लगाव है। मैं INTACH यानी इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हैरिटेज में कंवीनर हूं। मैं लखनऊ चैप्टर देखती हूं।

मैं इंडियन हैरिटेज को लेकर अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाती हूं।

मैंने लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों पर एक प्रोजेक्ट किया जिनके संरक्षण पर काम नहीं किया गया था। मैंने ऐसी 200 बिल्डिंग्स की लिस्ट बनाई। उन इमारतों को नापा और उनकी खासियतों पर एक पूरा लेखा-जोखा तैयार किया।

इस तरह 500 पन्नों का दस्तावेज तैयार हुआ। मुझे सलाह दी गई कि इन डॉक्युमेंट्स को किताब की शक्ल में तैयार कीजिए। मैंने किताब तैयार की और मेरी किताब पब्लिश भी हुई जो पाठकों को बहुत पसंद आई। इस तरह मैंने लेखन की दुनिया में कदम रखा।

अब तक 5 किताबें छप चुकी हैं

मेरी अब तक 5 किताबें छप चुकी हैं। ‘LUCKNOW: Town of tradition and heritage – A Stroll By way of the Historical past’, ‘MUSINGS IN BENARES: A Kaleidoscope of the Coronary heart’, ‘Lucknow – A Treasure’,

‘Shaam-e-Awadh: A Visible Journey By way of Lucknow। हाल ही में मेरी ‘Ayodhya: A Stroll By way of the Dwelling Heritage’ नाम की किताब पब्लिश हुई है। जब अयोध्या के एयरपोर्ट पर काम शुरू हुआ तो मैंने वहां के महंत और साधुओं से मिलना शुरू हुआ क्योंकि मैं वहां का आर्किटेचर समझना चाहती थी। इसके लिए मैंने कई किताबें पढ़ीं और अलग-अलग लोगों से बातचीत की। इससे आयोध्या के बारे में मेरी रूचि बढ़ी और फिर मैंने किताब भी लिख दी।

किताब ‘शाम-ए-अवध’ में मैंने लखनऊ के कल्चर पर स्कैच बनाए। इस किताब में मैंने लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई, इस शहर गली कूचों और बाजारों का जिक्र किया यहां तक कि लखनऊ मशहूर कबाब और लखनवी जायकों के बारे में भी लिखा।

जब कोरोना लॉकडाउन लगा तो मैंने अपनी सारी पुरानी डायरियां निकालीं जिनमें मैंने कविताएं लिखी थीं। मैंने इन कविताओं को 2021 में कम्पाइल कर पब्लिश किया।

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