9 मिनट पहलेलेखक: कमला बडोनी
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42 साल पहले 6 साल की उम्र में झांसी के एक परिवार की इस नन्हीं सी लड़की की ख्वाहिश थी कि जब उसकी मृत्यु हो तो उसकी तस्वीर अखबार में छपे। छोटी उम्र और ये ख्वाहिश अजीब बात लगती। इस उम्र में भला किसी को मरने का ख्याल कैसे आ सकता है और इतनी बड़ी चाहत कैसे हो सकती है। तब वो लड़की नहीं जानती थी कि एक दिन वो इतनी मशहूर हो जाएगी कि सारे अखबारों में उसकी तस्वीरें और उस पर खबरें छपेंगी।
मां उसे किरण बेदी की तरह आईपीएस अफसर बनाना चाहतीं। वो आईपीएस ऑफिसर तो नहीं बनी, लेकिन उसने कई आईपीएस ऑफिसर्स की कामयाबी की कहानी लोगों तक पहुंचाई। कई लोगों को आईपीएस ऑफिसर बनने के लिए प्रोत्साहित किया।
झांसी की लड़की ऋचा आज ग्लोबल वुमन बन चुकी है। ‘ये मैं हूं’ में आज जानिए पत्रकार, रेडियो जॉकी, इन्फ्लुएंसर, सोशल एक्टिविस्ट और संगीत प्रेमी ऋचा अनिरुद्ध की कहानी…
मैं मेनिफेस्टेशन में विश्वास करती हूं
मैं इस बात में पूरा यकीन रखती हूं कि जब आप शिद्दत से किसी चीज की ख्वाहिश करते हैं, तो पूरी कायनात आप तक वो चीज पहुंचाने में जुट जाती है और वह चीज आपकी सोच से कहीं ज्यादा बड़े रूप में आपको मिलती है।
मेरी मां छोटे से शहर झांसी में रहने वाली एक साधारण गृहणी हैं, लेकिन उन्होंने मेरे लिए सपने बहुत बड़े देखे। इसके लिए मां को ताने तक सुनने पड़े। नानी अक्सर मां से कहतीं कि इसे खाना बनाना सिखाओ, कल को ससुराल जाएगी तो क्या करेगी। मां बेधड़क नानी से कहतीं, ‘जब सिर पर पड़ती है तो खाना बनाना हर कोई सीख लेता है। मेरी बेटी इतना बड़ा काम करेगी जो अब तक किसी ने न किया हो।’
शादी के बाद मां ने सपोर्ट किया
मैं आज जो कुछ भी हूं वो मेरी मां की दुआओं और मेरे प्रति उनकी पॉजिटिव सोच का नतीजा है। एक बेटी की जिंदगी में जो रोल उसकी मां निभाती है वो कोई और नहीं निभा सकता। शादी के बाद मैं घर पर ही सिमट कर रह गई थी। तब मां ने मुझसे कहा, ‘मैंने तुम्हें घर बैठने के लिए नहीं बड़ा किया। तुम्हें कुछ बड़ा करना है।’ शादी से पहले मां कहतीं कि जब तब तुम अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती, तब तक हम तुम्हें इस घर से विदा नहीं करेंगे।
पापा डॉक्टर थे, लेकिन मेरे पेरेंट्स नहीं चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं। वो चाहते थे कि मैं यूपीएससी क्लियर करूं, कमिशनर बनूं। लेकिन मैंने यूपीएससी की परीक्षा कभी दी ही नहीं। मेरे नाना जी कवि थे, मंचों पर कविता पढ़ते थे इसलिए मैं ये कह सकती हूं कि लेखन और मंच पर बोलने का गुण शायद मुझे विरासत में मिला।
ऋचा अनिरुद्ध की बेटी ने कनाडा में पढ़ाई की, लेकिन वहां बसने का फैसला नहीं किया, वो अपने देश में रहकर करियर बनाना चाहती है
दिल्ली में स्ट्रगल करना पड़ा
शादी के बाद जब मैं मां के साथ दिल्ली आई, तो यहां एक लंबा संघर्ष मेरा इंतजार कर रहा था। तब तक मेरी बेटी हो चुकी थी। मां, मैं और बेटी एक कमरे के किराए के घर में रहते थे। मैं एक एनजीओ के लिए काम करती थी, लेकिन मां को तब भी लगता था कि मैं कुछ बड़ा काम करूंगी। और कुछ ही समय बाद मां के सपने रंग लाए। मुझे बड़े-बड़े मीडिया हाउस में बतौर प्राइम टाइम एंकर काम करने का मौका मिला।
मेरा तलाक घोषित कर दिया गया
जब मैं मां के साथ बेटी को लेकर दिल्ली आई तो ससुराल में रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया कि इसका तलाक हो चुका है इसीलिए पति से अलग रहती है। मुझे उस समय रिश्तेदारों ने उनके घर की शादियों में नहीं बुलाया।
लेकिन जब मैं टीवी पर दिखने लगी, लोग मुझे जानने लगे, तो जो रिश्तेदार अपने घर की शादियों में नहीं बुलाते थे, उनके सुर बदल गए। पति करियर बनाने के लिए शहर छोड़े तो उसकी तारीफ होती है, लेकिन महिला अगर कुछ बड़ा करने के लिए घर की दहलीज लांघती है, तो हजारों सवाल किए जाते हैं। पति का सपोर्ट रहा इसलिए मैं बेफिक्री से पाने करियर पर फोकस कर पाई।
मीडिया की नौकरी छोड़कर ज्यादा मशहूर हुई
मीडिया ने मुझे पहचान दी, लेकिन मीडिया की नौकरी छोड़ने के बाद मुझे एक नई पहचान मिली। मीडिया में खबरें पढ़ने का तरीका बदल रहा था। टीवी स्क्रीन पर खबरें कम, बातों का शोर ज्यादा सुनाई देता। मेरे लिए ऐसे माहौल में काम करना मुश्किल था। मैं चाहती थी कि मुझे भले ही कम लोग सुनें, लेकिन सुनने के बाद उन्हें लगे कि कुछ काम की बात साथ ले जा रहे हैं।
युवा मोटिवेट हो रहे हैं
मुझे तब बहुत अच्छा लगता है जब युवा मुझसे कहते हैं कि आपका आईएएस ऑफिसर, बिजनेसमैन, गायक, कैंसर सर्वाइवर, एसिड अटैक विक्टिम… का इंटरव्यू देखकर प्रेरणा मिलती है। महिलाएं कहती हैं कि आप जिन महिलाओं के इंटरव्यू लेती हैं उन्हें देखकर हम भी अपनी बेटी को कामयाब बनाने की कोशिश में जुट जाते हैं।
अमिताभ बच्चन ने ट्वीट कर ऋचा अनिरुद्ध के यूट्यूब चैनल ‘जिंदगी विद ऋचा’ की तारीफ की
अमिताभ बच्चन से भीड़ में नहीं मिली
उस वक्त मैं एक एनजीओ में काम कर रही थी। तब मेरे पास रिक्शा के लिए भी पैसे नहीं होते थे। मैं ऑफिस से बस पकड़ने के लिए पैदल चल रही थी। रास्ते में मैंने भीड़ देखी। पूछने पर पता चला कि अमिताभ बच्चन आए हुए हैं। मेरा चेहरा तुरंत खिल गया, क्योंकि मैं बिग बी की बहुत बड़ी फैन हूं। लेकिन मैं भीड़ में उन्हें देखने नहीं गई।
मैंने खुद से कहा कि मैं अमिताभ बच्चन से ऐसे नहीं मिलूंगी। तब मिलूंगी जब मैं उनके साथ बैठकर उन्हें अपना नाम बता सकूं। फिर जब मैंने मीडिया में काम किया तो बिग बी के साथ बैठकर उनका इंटरव्यू किया। ये मेरा सपना और अपने आप को प्रोत्साहित करने का ढंग था जो जल्दी ही पूरा हुआ।
बॉडी शेमिंग से फर्क नहीं पड़ता
कहने वाले बहुत कुछ कहते हैं। सोशल मीडिया पर ट्रोल भी करते हैं। कोई मुझे ‘आंटी’ कहता है। बढ़ते वजने पर कमेंट किए जाते हैं। 48 की हूं तो 24 की लगने से रही। ८४ की अभी हुई नहीं, जब होउंगी तब अनाउंस कर दूंगी। तब भी मैं लोगों से इसी तरह मिलूंगी, अपना मनपसंद संगीत सुनूंगी, जमघट के बच्चों के बीच बैठी इसी तरह खिलखिलाती नजर आऊंगी।
जमघट को बड़ा बनते देखना चाहती हूं
मैं सड़क पर रहने वाले 100 बच्चों को सड़क पर बैठकर ही पढ़ाती हूं। इसे मैंने ‘जमघट पाठशाला’ नाम दिया है। जमघट में जो बच्चे पढ़ने आते हैं वो उन घरों के हैं जिन्हें उनके माता-पिता पढ़ा नहीं सकते। इस काम से मुझे सच्ची खुशी मिलती है। कई बच्चे जब स्कूल में आते हैं तो गाली देते हैं, लेकिन बाकी बच्चों के साथ बैठने और पढ़ने पर उनमें बहुत बदलाव आ जाता है।
कई बच्चे घर में पिता को शराब पीकर मां को पीटते देखते हैं। ऐसे बच्चों के मन में डर, गुस्सा, नफरत की भावना होती है। उन्हें इस मानसिक स्थिति से बाहर निकाल कर जो खुशी मिलती है उसे शब्दों में बयां करना नामुमकिन है।
उन्हें निडर होकर खिलखिलाता और चहकता देखकर मुझे राहत की सांस आती है।
बेटे को स्कूल और बेटी को हमारे पास भेजा
एक दिन एक लड़की मेरे पास आकर रोने लगी। उसने बताया कि माता-पिता ने भाई को स्कूल में भेजा और उसे यहां हमारे पास भेज दिया, ताकि बेटी पर कोई खर्च न करना पड़े। मैंने उससे कहा कि यदि तुम स्कूल जाना चाहती हो तो हम तुम्हें स्कूल भेजेंगे। हमने उसके स्कूल की फीस जुटाई और उसका स्कूल में एडमिशन करा दिया।
एक लड़की अपने भाई को लेकर हमारे पास पढ़ने आती है। यदि वो भाई को नहीं देखेगी तो उसे स्कूल नहीं भेजा जाएगा। बेटा और बेटी में आज भी बहुत भेदभाव किया जाता है। ‘जमघट पाठशाला’ में हम इन बच्चों के माता-पिता की सोच बदलने की भी कोशिश करते हैं।
अपने यूट्यूब चैनल ‘जिंदगी विद ऋचा’ और ‘जमघट’ के माध्यम से मैं लोगों की सोच बदलने की कोशिश में जुटी हूं। मैं यदि कुछ ही लोगों की जिंदगी बदलने का जरिया भी बन सकूं तो मेरी मेहनत सार्थक होगी।
आमीन!