3 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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हेलो दोस्तों…

मैं ऐनी थियोडोर जयपुर की हूं और अभी मैं दिल्ली में रहती हूं। बचपन से ही लोगों की सेवा करने का भाव मन में था। मैंने कान्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है, इसलिए नन की जिंदगी को बहुत ही करीब से देखा है। उनके अंदर जो सेवाभाव है वो मुझे हमेशा से अपनी ओर खींचता रहा। मैंने मदर टेरेसा को पढ़ा, उनकी जिंदगी से बहुत प्रेरणा ली। जयपुर में मेरे कॉलेज के पास ही एक मदर टेरेसा होम है। मैं कॉलेज के बाद वहां लोगों की मदद करने जाया करती। वहां बीमारों की सेवा करती। धीरे-धीरे मेरा इंट्रेस्ट बढ़ता गया।

मैं एक क्रिश्चन फैमिली से आती हूं। बचपन से ही घर में भी सबको जरूरतमंदों की मदद करते हुए देखा। मुझे हमेशा से ऐसा महसूस होता था कि दुनिया में हम किस लिए आए हैं, जिंदगी का कोई तो मकसद होना चाहिए। मेरी जिंदगी किसी के काम आ जाए इससे अच्छी क्या बात हो सकती है।

मेरे पति ने फैसला किया कि हमें इनके लिए कुछ करना चाहिए।

मेरे पति ने फैसला किया कि हमें इनके लिए कुछ करना चाहिए।

नौकरी छोड़कर दिव्यांगों के लिए काम किया

मैं मीडिया बैक ग्राउंड से हूं लेकिन अब मैं पूरी तरह सोशल वर्क से जुड़ी हूं। दिव्यांगों के लिए काम करने की शुरूआत कुछ यूं हुई कि मेरे पास कई ऐसे लोग मदद के लिए आए जो अपने हाथ, पैर, आंख, कान, जुबान से मजबूर थे। उनका कहना था कि हमारे लिए आप कुछ करें।

मैं सोचने लगी कि मैं इन लोगों के लिए क्या ही कर सकती हूं? लेकिन एक दिन मेरी मुलाकात एक दिव्यांग हसबैंड वाइफ से हुई, उन्होंने मुझसे एक किस्सा शेयर किया। उनकी बातों का ऐसा असर हुआ कि मैंने और मेरे पति ने फैसला किया कि हमें इनके लिए कुछ करना चाहिए। हम दोनों ने अपनी-अपनी नौकरी छोड़कर दिव्यांगों के लिए काम करना शुरू किया।

बहन की विकलांगता भाई शर्मिंदा

जिंदगी बदलने वाला वो किस्सा कुछ यूं था, एक अनाथ लड़की को उनके भाई-भाभी ने सिर्फ इसलिए स्टोर रूम में बंद कर दिया क्योंकि उन्हें कहीं बाहर घूमने जाना था। मजबूरी ये थी कि वो उसे अपने साथ घुमाने नहीं ले जा सकते थे। बहन की विकलांगता भाई को शर्मिंदा करती, तो वो उसे अकेला घर में बंद करके चले गए। एक महीने बाद जब उनके घर से बदबू आने लगी तो पड़ोसियों ने उन्हें फोन करके बताया कि आपके घर से स्मेल आ रही है क्या घर में कोई है नहीं। जब उस दिव्यांग बहन का भाई घर लौटा तो बहन की सड़ी हुई लाश देखने को मिली।

दिव्यांग बच्ची को कीड़े खा गए

चूंकि बच्ची हाथ- पैर से मजबूर थी तो उसके लिए वॉशरूम जाना भी बड़ी चुनौती थी। स्टोर रूम में ही उसने टॉयलेट कर दिया। जिसकी वजह से उसमें कीड़े पनपने लगे और वहीं कीड़े उसके शरीर पर चिपक गए। कीड़ों ने इंसान को अपनी खुराक समझकर दिव्यांग बच्ची के शरीर को जख्मों से छलनी कर दिया जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। ये बात सुनकर मेरे रौंगटे खड़े हो गए। मैं उन रात सो नहीं पाई। उस लड़की के दर्द के अहसास ने मुझे सोने नहीं दिया। मजबूर और अकेलेपन की शिकार व्यक्ति की शिकार की ऐसी मौत, मुझे परेशान करने लगी। मैंने उसी दिन फैसला कर लिया दिव्यांग लोगों की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए मुझे कुछ करना है।

परिवार वाले इन्हें दुनिया के सामने नहीं लाना चाहते

ऐसी हजारों कहानियां हैं जो दिव्यांग लोगों की जिंदगी का हिस्सा है। हम अपने आस पास दिव्यांग लोगों को कम ही देखते हैं। उसकी वजह उनके परिवार वाले हैं क्योंकि वो उन्हें दुनिया के सामने लाने चे हिचकिचाते है। कोई उन्हें बाहर ले जाने में शर्मिंदगी महसूस करता है तो कोई बोझ। किसी के लिए इनकी जिंदगी की कोई अहमियत नहीं और न ही कोई इनके जज्बात को समझने की कोशिश करता है। क्योंकि विकलांगता को लोग श्राप की नजर से देखते हैं।

भगवान उन्हें तेज दिमाग देता है

मेरे पति लोगों को ट्रेनिंग देते हैं। मुझे लगा क्यों न हम ट्रेनिंग से ही शुरुआत करें। पहली बार जब ट्रेनिंग दी तो 45 दिव्यांगों ने उसमें हिस्सा लिया। पहली बार दिव्यांगों से मिलकर लगा कि इनके अंदर सीखने की, आगे बढ़ने की कितनी चाहत और क्षमता है।

आपको यकीन नहीं होगा कि इन लोगों में सोचने समझने की क्षमता नॉर्मल लोगों से बहुत ज्यादा होती है। भगवान ने उन्हें बहुत तेज दिमाग देता है, लेकिन उन्हें परिवार और समाज आगे बढ़ने का मौका नहीं देता।

विकलांगों को कोई नौकरी नहीं देता

मुझे उसके लिए काम करना इतना ज्यादा अच्छा लगने लगा कि हम उनके लिए ट्रेनिंग से आगे के बारे में सोचने लगे। मैं सोचती ट्रेनिंग तो दे दी, लेकिन अब ऐसा क्या किया जाए की ये लोग भी पैसा कमा सके। अपनी जरूरतों को पूरा कर सके। मैंने इन लोगों के लिए जॉब इंटरव्यू कंडक्ट कराए। लेकिन दिव्यांगों को कोई नौकरी नहीं देना चाहता। सबको लगता था कि दिव्यांगों का वर्किंग प्रोसेस स्लो होगा, इसके अलावा इन्हें भी रोजाना ऑफिस जाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। फिर मैंने सोचा क्यों न नौकरी को इन लोगों तक लाया जाए।

दिव्यांगों को कोई पढ़ाने की नहीं सोचता

मैंने अपने कान्टैक्ट का इस्तेमाल किया और इनके लिए काम लेकर आए। काम के हिसाब से इनको ट्रेनिंग दी। जिसमें कंटेंट राइटिंग, ट्रांसलेटर, वीडियो एडिटिंग, वॉयस ओवर शामिल है। विकलांगों के लिए जब कोई काम करने की बात आती है तो उन्हें मोमबत्ती और थैले बनाने की राय दी जाती है। उन्हें कोई पढ़ाने की नहीं सोचता। मां-बाप इसलिए नहीं पढ़ाते की पढ़-लिखने के बाद इन्हें नौकरी कौन देगा। कई पढ़ लिखे विकलांग नौकरी को लेकर निराशा झेलते हैं।

दिव्यांगों की जिंदगी में ठहराव लाना

मैंने उन्हें काम सिखाया। फिर उनके लिए बाहर की कंपनियों से काम लेकर आए। हमने इन लोगों के पेरेंट्स की काउंसलिंग की और उन्हें समझाया कि अपने बच्चों को दुनिया दिखाएं। उनके अंदर बहुत टैलेंट है। हैं। आपको यकीन नहीं होगा कि ऐसे लोग भी हैं जिनके पास व्हीलचेयर भी नहीं है। ये लोग कहीं जाते ही नहीं हैं। ये कभी दुनिया वालों से रू-ब-रू नहीं हुए।

मां-बाप दिव्यांग बेटियों का यूटरस रिमूव कराते

डिसएबिलिटी 21 तरह की होती है। इनमें से कुछ के बारे में ही दुनिया को पता है। मैं अवेयरनेस के लिए भी काम कर रही हूं।

दिव्यांग महिलाओं की हालत तो और भी ज्यादा खराब है। कोई भी महिलाओं को पढ़ाना नहीं चाहता। मैं ऐसे परिवार को भी जानती हूं, जिन्होंने अपनी विकलांग बेटियों का यूटरस तक रिमूव करा दिया। सिर्फ इसलिए अगर इनके साथ कभी कोई गलत हरकत करे ये प्रेग्नेंट न हो सकें। उनका कहना है कि एक बोझ तो हम उठा रहे है अगर बदनामी का दाग लग गया तो हम समाज में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे। दिव्यांग बेटियां जब जवान होती है तो उन्हें पीरियड्स के दिनों में कौन संभालेगा।

विकलांगों को कोई पढ़ाने की नहीं सोचता।

विकलांगों को कोई पढ़ाने की नहीं सोचता।

99% लोग घरेलू हिंसा का शिकार

डिसएबिलिटी में 99 प्रतिशत लोग घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। मैंने इसके बारे में खुद जानने और समझने कोशिश की, बल्कि देखा भी है। लड़के हो चाहे लड़कियां उन्हें सेक्शुअल अब्यूज किया जाता है। वो बोल भी नहीं सकते हैं। क्योंकि कोई फायदा ही नहीं परिवार में जब ऐसा हो रहा है तो पुलिस भी रेस्क्यू करके कहां ले जाएगी। हमारे देश में दिव्यांग लोगों के लिए कोई शेल्टर होम भी नहीं है। मेरा मकसद विकलांग लोगों सामान्य जीवन की तरफ लाना है। जीवन भर प्रयास करती रहूंगी।

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