नई दिल्ली18 घंटे पहले
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मैं डॉ. मनोरमा, पटना में एलआईसी में असिस्टेंट डिविजनल मैनेजर हूं। 1985 में नौकरी शुरू की। वो दौर ऑफिस में मोटे-मोटे रजिस्टर, कपड़ों में बंधे डॉक्यूमेंट्स का था।
साल दर साल हर चीज बदलती चली गई, रजिस्टरों की पोटली की जगह कंप्यूटर ने ले ली। ऐसे ही मैंने भी खुद को हमेशा अपग्रेड किया।
नौकरी में बंधी होने के बावजूद खुद को किसी सीमा में नहीं बांधा, हर वो काम किया जिसका मन करता। कार रैली में भाग लिया, स्वीमिंग में नेशनल टूर्नामेंट खेले, एथलेटिक्स में रही।
आज भी स्वीमिंग के नेशनल गेम्स में भाग लेती हूं। दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में आज मेरी कहानी।
मां ने कभी छुआ तक नहीं, बड़ी बहन मुझे खूब पीटती
मेरा पुश्तैनी घर छपरा है। पिता पुलिस ऑफिसर रहे। उनका तबादला होता रहता। इसलिए कोलकाता, चितरंजन, आसनसोल जहां जहां पिता की पोस्टिंग होती वहां वहां मेरी पढ़ाई भी हुई।
पढ़ाई में मैं सामान्य रही। 10वीं में आने के बाद हमलोग स्थायी रूप से पटना के कंकड़बाग में रहने लगे। घर में बड़ी बहन और मेरा छोटा भाई होता।
मां ने कभी मुझे जोर से डांटा भी नहीं लेकिन मेरी बड़ी बहन गलतियों को लेकर मुझे खूब पीटती। लेकिन साथ ही दुलार भी करती। पढ़ाई-लिखाई में मेरी मदद करतीं।
मम्मी-पापा दोनों मुझे पढ़ने के लिए हमेशा मोटिवेट करते। मगध महिला कॉलेज से मैंने ग्रेजुएशन किया।
पीजी के दौरान ही एलआईसी में नौकरी लग गई
पटना यूनिवर्सिटी के दरंभगा हाऊस से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी। तब मेरी सहेली भी साथ में पढ़ाई कर रही थी। उस समय यूपीएससी करने का ही मन था।
पापा भी यही कहते कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करो। लेकिन मेरी सहेली ने कहा कि एलआईसी का फॉर्म निकला है, भर दो। मैं ‘ना’ कहती रही पर बाद में दोनों ने फॉर्म भर दिया।
परीक्षा दी और मेंस क्लियर हो गया, जबकि मेरी सहेली पास नहीं कर सकी। मुझे नौकरी मिल गई।
मनोरमा ने बैडमिंटन में कई नेशनल टूर्नामेंट में भाग लिया है।
1 महीने बाद बताया कि एलआईसी में नौकरी लगी है
कॉलेज के लिए घर से निकलती और दरभंगा हाऊस में क्लासेज करती। वहां दौड़कर ऑफिस पहुंचती। दिनभर काम करती और शाम में घर लौटती।
एलआईसी में नौकरी लगी है ये घर में किसी को बताया नहीं था। डर था कि मम्मी-पापा मना कर देंगे।
खाते-पीते घर से हैं, पिता पुलिस ऑफिसर हैं मुझे इस नौकरी की क्या जरूरत है? नौकरी करनी ही है तो सिविल सर्विसेज ठीक है।
1 महीने तक नौकरी की बात पेरेंट्स से छुपाए रही। मां पूछती कि इतनी सुबह निकलती हो और शाम में लौटती हो, कितनी क्लासेज होती हैं। तब मैं किसी तरह जवाब देकर निकल जाती।
पहली सैलरी से मां के लिए चूड़ी, पिता के लिए घड़ी खरीदी
कॉलेज में पढ़ते हुए नौकरी कर रही थी। पहली सैलरी 1,200 रुपए मिले। उन पैसों से मां के लिए चूड़ी खरीदी और पिता के लिए घड़ी खरीदी। पापा के हाथ में घड़ी पहनाई और कहा कि ये आपकी बेटी ने अपनी कमाई से खरीदी है। उन्हें बताया कि नौकरी लग गई है।
उन्होंने कहा कि अब नौकरी कर रही हो तो करो। लगन और मेहनत से काम करो और आगे बढ़ो। पिता की इस सीख को अपने जीवन में उतारा। मेहनत से प्रमोशन मिलता गया, सैलरी बढ़ती गई।
फिर मैं वो हर शौक पूरी करती रही जो मन में आया। नौकरी के साथ पढ़ाई भी चल रही थी। अपनी सारी दोस्तों के बीच मैं अकेली नौकरीपेशा थी तो उनके लिए तिजोरी भी मैं ही थी।
गोलगप्पे, चाट खिलानी हो या कोई पार्टी, उसका सारा खर्च मैं ही उठाती। दोस्त भी हक से कहते कि नौकरी तुम कर रही है तो खर्च भी तुम ही करोगी।
जो काम करने से मना किया जाता, वह जरूर करती
बचपन से मेरा नेचर ऐसा ही रहा। घर में कोई कहता कि ये काम नहीं करो तो मैं वही काम करती। कुछ बोलते कि ये काम लड़कियों के बस की बात नहीं है तो मुझे ये बात चुभती, चैलेंजिंग लगता कि कौन सा ऐसा काम है जो मैं नहीं कर सकती।
कार रैली में भूटान, नेपाल गई
एडवेंचर का शौक तो शुरू से था। कार चलाते-चलाते मुझे इसमें मजा आने लगा। स्पोर्ट्स कार खरीदी। पटना से भूटान इंटरनेशनल कार रैली में भाग लिया। यह मेरे जीवन का सबसे रोमांचक अनुभव रहा।
10,000 फीट की ऊंचाई पर कार चलाई। जहां एक तरफ खाई और दूसरी तरफ ऊंचे पहाड़, हर कुछ किमी पर मौसम बदल जाता।
कहीं घना कोहरा, सड़क के ऊपर से उड़ते बादल तो कहीं बारिश। ऐसे में कार चलाना बहुत मुश्किल था लेकिन मैंने इसे पूरा किया और ‘डोचुला पास’ पहुंची।
2017 में हुई इस कार रैली में मुझे बेस्ट वुमन ड्राइवर का अवॉर्ड मिला। 2018 में पटना से नेपाल के तानसेन तक कार रैली में भाग लिया।
55 साल की उम्र में बैडमिंटन की नेशनल्स खेली
जब जज्बा हो तो उम्र कोई बाधा नहीं होती। मैं हमेशा खुद को स्पोर्ट्सपर्सन मानती हूं। बचपन से ही कई गेम्स में भाग लेती खासकर बैडमिंटन और एथलेटिक्स।
जब मैं छोटे कपड़े पहनकर खेलती तो मम्मी टोकती कि ये कपड़े पहनकर न खेलो। लेकिन पापा ने हमेशा साथ दिया।
आज मेरी उम्र 55 साल से अधिक है लेकिन गेम्स मुझे अपनी ओर खींच लेते हैं। मैं जिस संस्थान में हूं वहां गेम्स में भाग लेने के लिए मोटिवेट किया जाता है।
मैं बैडमिंटन और स्वीमिंग की प्लेयर रही हूं। 2008 में मैं एलआईसी ईस्ट सेंट्रल जोन में बैडमिंटन की चैंपियन रही।
2018 में भी नेशनल लेवल मास्टर बैंडमिंटन चैंपियनशिप में भाग लिया। इस साल मार्च में ही पंचकुला में योनेक्स सनराइज 46वें इंडियन मास्टर्स नेशनल बैडमिंटन चैंपियनशिप में भी भाग लिया।
2017 में मैंने नेशनल लेवल मास्टर स्वीमिंग कॉम्पिटिशन में भाग लिया। 2019 से 2022 तक एलआईसी स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड की सदस्य रही हूं।
पढ़ना कभी नहीं छोड़ा
मैं जब नौकरी में आई तो सैलरी का बड़ा हिस्सा किताबों पर खर्च हो जाता। अलग-अलग विषयों की किताबें खरीदती, पढ़ती। घर में ही एक बड़ी लाइब्रेरी बन गई।
एमए के बाद पटना यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया। फिर इंटरनेशनल टेररिज्म में पीएचडी की। IGNOU से साइबर लॉ की पढ़ाई की। पत्रकारिता में भी डिग्री ली।
मेरे व्यक्तित्व की ये खासियत है कि इस उम्र में पहुंचकर भी मेरी सीखने की भूख नहीं मिटी। पता नहीं कब क्या अच्छा लग जाए और मैं सीखने का मन बना लूं।