नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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शिक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखारने के साथ ही उन्हें कामयाब भी बनाती है। गुजरात के भावनगर डिस्ट्रिक्ट के तलगाजरड़ा गांव में रहने वाली वैदेही ने कभी नहीं सोचा था कि उनकी पढ़ाई ही उन्हें आम से खास बना देगी।

वह अपने घर की पहली लड़की हैं जिन्होंने पीएचडी की। उन्होंने इस दौरान एक ऐसी रिसर्च की जिसने उन्हें मशहूर कर दिया। यह रिसर्च रामायण के नेगेटिव किरदारों की महिलाओं पर आधारित थी जिन्हें वैदेही ने तर्क के साथ पॉजिटिव बताया।

‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए गुजरात की भावनगर यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वालीं अस्टिटेंट प्रोफेसर डॉ. वैदेही हरियानी से।

परिवार ने हमेशा पढ़ाई को अहमियत दी

मैं एक ऐसे परिवार से हूं जहां ना मेरी दादी और ना मेरी मां शिक्षित हैं। लेकिन मेरे पापा टीचर रहे। मेरे परिवार ने हमेशा पढ़ाई को अहमियत दी और मुझे खूब पढ़ने-लिखने को कहा। पीएचडी करने का केवल मेरा ही नहीं बल्कि परिवार का भी सपना था।

मैं जिस सोसाइटी से आती हूं, वहां लड़कियों की जल्दी शादी कर दी जाती है लेकिन मेरे घर वाले खुल्ले विचारों के हैं।

उनके सहयोग से ही मैं अपने परिवार की पहली लड़की हूं जिसने पीएचडी की।

जब पीएचडी कर रही थी तब चढ़ीं भौंहें

मेरे पढ़ने से ना मेरी फैमिली को दिक्कत थी और ना मेरे रिश्तेदारों को लेकिन जहां मैं रिसर्च कर रही थी, वहां कुछ लोग दबी आवाज में यह जरूर कहते थे कि यह देखो इस उम्र में भी सिंगल है। पता नहीं कितना पढ़ेगी।

दरअसल मेरे साथ और आसपास की लड़कियां मैरिड हैं इसलिए उन लोगों को मुझे देखकर हैरानी और परेशानी होती लेकिन मैंने इन सब बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी रिसर्च पर फोकस किया।

रामायण पर की रिसर्च

मशहूर कथावाचक मोरारी बापू मेरे ताऊजी हैं। वह मेरे गुरु भी हैं। मैं रामायण सुनते-सुनते बड़ी हुई हूं और उनके प्रोत्साहन से ही मैंने रामायण में मौजूद नेगेटिव महिला किरदारों पर रिसर्च की।

मैंने इंग्लिश में पीएचडी की है जिसमें मेरी रिसर्च का टॉपिक था-

कंटेंपरेरी टेलिंग ऑफ रामायण: इन सर्च ऑफ न्यू कल्चरल मीनिंग। मेरा फोकस रामायण के फीमेल कैरेक्टर्स पर रहा।

मेरे नाम पर कई लोगों ने जताया एतराज

मेरा नाम ‘वैदेही’ रामायण से निकला है। जब मेरा नाम रखा जा रहा था तो कई लोगों ने एतराज जताया क्योंकि मेरे नाम का मतलब है सीता। लोग कहते थे कि यह नाम किसी लड़की का नहीं होना चाहिए, नहीं तो उन लड़कियों को मां सीता की तरह ही कष्ट झेलना पड़ता है। मैं अपनी जिंदगी में और अपने नाम से बहुत खुश हूं।

लोगों की बचपन से सुन रही बातों से मैं इतनी उत्साहित थी कि मैं जानना चाहती थी कि मेरे नाम का मतलब क्या है और सीताजी की जिंदगी कैसे रही है। जब दिमाग में यह बातें चल रही थीं तो मैंने यह भी सोचा कि मैं केवल सीता पर ही नहीं, बल्कि रामायण के बाकी फीमेल कैरेक्टर्स पर भी फोकस करूं।

बेचारी नहीं, बहुत मजबूत थीं सीता

रामायण में माता सीता का पॉजिटिव कैरेक्टर है लेकिन उन्हें बेचारी बना दिया गया। मैंने अपनी रिसर्च में पाया कि सीता बहुत मजबूत और सशक्त महिला रहीं। वह भले ही वनवास गईं, लंका में कैद रही हों या अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ा हो। उन्होंने हर परिस्थिति में हर फैसला खुद से लिया।

उन पर किसी ने अपना फैसला मानने का दबाव नहीं बनाया। जो इंसान अपनी जिंदगी का खुद फैसला लेता है, वह कभी बेचारा नहीं हो सकता।

सुरपखा बुरी नहीं थी

मशहूर कवि व लेखक ए. के. रामनुजम के अनुसार रामायण के 300 से ज्यादा वर्जन लिखे जा चुके हैं। कौन सही है, कौन गलत, मैं ये नहीं कह सकती लेकिन रामायण पर जितनी किताबें लिखी गईं, मैंने उस पर अकैडमिक रिसर्च की।

भक्ति काल में लिखी गई किताबें और कंटेंपरेरी वर्ल्ड में लिखी गई रामायण में बहुत अंतर है। वाल्मीकि रामायण और अभी तक रामायण पर बने प्रोग्राम में सुरपखा की बॉडी शेमिंग हुई। वाल्मीकि रामायण में सुरपखा के पति का जिक्र नहीं है।

लेकिन जब मैंने कविता काने की किताब ‘लंका प्रिसेस’ पढ़ी तो उसमें सुरपखा के पति का जिक्र मिला।

उसमें लिखा है कि सुरपखा का नाम मीनाक्षी था। उसका पति जंगल में शिकार करने गया था। जंगल में बड़ी-बड़ी घासों का मैदान था जिसमें कोई एक दूसरे को नहीं देख सकता था।

इत्तेफाक से भगवान राम भी उस समय शिकार पर गए हुए थे। उन्हें हलचल सुनाई दी तो उन्हें लगा कि जानवर है और उन्होंने तीर चला दिया जो सुरपखा के पति को लग गया। इस घटना के बाद ही मीनाक्षी सुरपखा बनी। इंसान हालातों के हिसाब से नेगेटिव या पॉजिटिव बनता है।

ठीक इसी तरह कैकेयी की बात करें तो हर मां की तरह वह अपने बेटे भरत के भविष्य को सुरक्षित करना चाहती थी। उन्होंने अपने बच्चे के लिए अच्छा सोचा। उनके नजरिए से सोचा जाए तो वह बुरी नहीं थीं।

मैंने कई किताबों के रेफ्रेस देकर तर्क के साथ अपनी रिसर्च में इन विलेन महिलाओं को पॉजिटिव बताया।

इस रिसर्च में रिस्क बहुत था

जिन किरदारों को लोग कई साल से नेगेटिव मानते आए हैं, उन्हें पॉजिटिव बताना, बहुत रिस्की था। मेरे खुद के लिए भी यह रिसर्च मुश्किल थी क्योंकि मैं हमेशा से उसी रामायण को सुनती पढ़ती आई हूं जिसे सबने सुना है। मेरा रामायण पर विश्वास भी अटूट है। मुझे अपने विश्वास को साइड करते हुए निष्पक्ष होकर अकैडमिक रिसर्च करनी थी तो मुझे डर था कि मैं इन दोनों बातों को मिक्स ना कर दूं और मेरी भावना इस रिसर्च में झलके।

इसलिए मैंने कई बुक्स की स्टडी की और उनके रेफरेंस दिए क्योंकि मैं किसी के विश्वास को ठेस नहीं पहुंचा चाहती थी।

मैं रामायण पर रिसर्च को आगे बढ़ाना चाहती हूं। इसके जरिए मैं अपने हिंदू कल्चर को प्रमोट करना चाहती हूं और इंग्लिश इसके लिए सबसे बेहतर भाषा है।

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