12 घंटे पहले

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पश्चिम बंगाल के बर्धमान शहर से करीब 95 किमी दूर लाबपुर, कटवा क्षेत्र में 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ स्थापित है। लाबपुर रेल मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। आज चैत्र नवरात्रि का पांचवां दिन है और इस अवसर पर जानिए अट्टहास शक्तिपीठ से जुड़ी खास बातें…

ये है शक्तिपीठ स्थापना की पौराणिक कथा

  • देवी मां के 51 शक्तिपीठ देवी सती से जुड़े हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक देवी सती ने दक्ष प्रजापति के यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह त्याग दी थी। इसके बाद शिव जी देवी सती की देह को लेकर सृष्टि में भटक रहे थे।
  • उस समय विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र से देवी सती के 51 टूकड़े कर दिए थे, ताकि शिव जी का सती के लिए मोह भंग हो सके। जहां-जहां देवी सती के शरीर के टुकड़े और आभूषण गिरे थे, वहां-वहां शक्तिपीठ स्थापित हो गए।
  • पश्चिम बंगाल के लाबपुर, कटवा क्षेत्र में देवी सती का होंठ गिरा था। इस वजह से यहां शक्तिपीठ हुआ। यहां की शक्ति फुल्लरा और भैरव विश्वेश हैं।

लाल सिंदूर से होता है देवी का श्रृंगार

  • अट्टहास मंदिर में एक विशाल शिला को देवी रूप में पूजा जाता है। ये देवी की स्वयंभू प्रतिमा मानी जाती है। स्वयंभू यानी स्वयं प्रकट हुई है। यहां देवी का श्रृंगार लाल सिंदूर से किया जाता है।
  • देवी को खास तौर पर लाल फूल, चुनरी और बिल्व पत्र चढ़ाए जाते हैं। माना जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की देवी मां सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
  • आम दिनों की अपेक्षा नवरात्रि में यहां आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ जाती हैं। महाशिवरात्रि पर भी यहां विशेष पूजा-पाठ की जाती है।
  • मंदिर में देवी मां के साथ ही शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

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