नई दिल्ली6 मिनट पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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मेरे नाम से सेविंग्स अकाउंट है, यूपीआई या दूसरे मोड से पेमेंट कर लेती हूं। लेकिन फिक्स डिपोजिट या किसी दूसरी स्कीम में अपने नाम से पैसे इन्वेस्ट नहीं किए हैं। म्युचुअल फंड या एसआईपी के बारे में सुना जरूर है लेकिन कभी इसमें पैसे निवेश नहीं किए।

दिल्ली के लक्ष्मीनगर की रहने वाली बबली मिश्रा होम मेकर हैं। दो-तीन बार पति के साथ ही बैंक गई हैं खाते खोलने और केवाईसी कराने। कभी खुद से पैसे विदड्रॉल करने बैंक नहीं गईं।

एटीएम से पैसे निकाल लेती हैं लेकिन खुद से पासवर्ड जेनरेट नहीं किया। ये सब उनके पति ही करते हैं।

बबली की ही तरह करोड़ों ऐसी महिलाएं हैं जो ‘फाइनेंशियली लिटरेट’ नहीं हैं। फाइनेंशियली लिटरेट होने का मतलब क्या है? क्या बैंक आना-जाना, बैंक में खाता खोलवाना या थोड़ा बहुत पैसों का लेन-देन करना फाइनेंशियली लिटरेट होना है?

‘इंडियन वुमन एंड फाइनेंशियल फिटनेस’ के लेखक सुनील गांधी बताते हैं कि शॉपिंग करने या मोबाइल एप पर कैब बुक करने में अधिकतर महिलाओं को कोई परेशानी नहीं होती लेकिन खुद से बैंक खाता ऑपरेट करना या ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में वो असहज होती हैं।

बैंकिंग सिस्टम से वो दूर रहना चाहती हैं। पैसों के लेन-देन, ब्याज, चक्रवृद्धि ब्याज के चक्कर में नहीं पड़ना चाहती। किसी स्कीम में निवेश करने, ईएमआई कैलकुलेट करने, प्रोपर्टी में निवेश करने में भी वो रुचि नहीं दिखातीं।

ऐसा इसलिए है क्योंकि वो फाइनेंशियली साक्षर नहीं हैं।

सुनील गांधी बताते हैं कि पर्सनल फाइनेंस को लेकर जिनके पास नॉलेज है, स्किल है, जानकारी है और जो अपने पैसों को लेकर खुद से डिसीजन लेने में सक्षम हैं वही फाइनेंशियल लिटरेट है यानी ‘वित्तीय रूप से साक्षर’।

जो महिलाएं फाइनेंशियल लिटरेट हैं उन्हें पता होगा कि पैसा कहां से आता है, कहां जाता है, किन स्कीम में पैसा रखना फायदेमंद है, बाजार में क्या हलचल है।

देश की 65% आबादी वित्तीय समझ में फिसड्‌डी

ग्लोबल फाइनेंशियल लिटरेसी बैरोमीटर के 28 देशों में किए गए सर्वे के अनुसार, भारत 23वें स्थान पर है जहां केवल 35% आबादी ही फाइनेंशियली लिटरेट है। यानी 65% आबादी की वित्तीय समझ नहीं के बराबर है। इसमें भी महिलाएं पिछड़ी हुई हैं।

ग्लोबल सर्वे स्टैंडर्ड एंड पुअर्स फाइनेंशियल सर्विसेज (SandP) के अनुसार, 25% एडल्ट ही फाइनेंशियली लिटरेट हैं। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, पूरी दुनिया में आज भी एक अरब से अधिक महिलाएं हैं जिनका अपना बैंक अकाउंट तक नहीं है।

‘फाइनेंस बेसिक्स फॉर वुमन’ की लेखिका गितिका चंद्रा बताती हैं कि जानबूझकर महिलाओं को ‘फाइनेंशियल फ्रीडम’ नहीं दी गई या उन्हें इससे रोका गया।

कई देशों में फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस के लिए लड़ाई लड़ी गई है। अमेरिका में 1974 तक महिलाएं खुद से क्रेडिट कार्ड के लिए अप्लाई नहीं कर सकती थीं।

1964 तक कनाडा में बिना पति के सिग्नेचर के कोई महिला अपना बैंक अकाउंट नहीं खोल सकती थी। कुछ देशों में आज भी ऐसे कानून हैं जो महिलाओं को बैंक खाता खोलने, क्रेडिट कार्ड लेने, प्रोपर्टी खरीदने से रोकते हैं।

पति पैसों की बदौलत पत्नी पर धौंस जमाता

भारतीय महिलाओं के फाइनेंशियली लिटरेट नहीं होने का बड़ा कारण पितृसत्ता है। मर्द कमाते हैं और औरतें घर संभालती हैं, इस सोच ने ही महिलाओं को फाइनेंशियल फ्रीडम और एजुकेशन से दूर रखा है।

पारंपरिक रूप से ही उन्हें पिछड़ा बना दिया गया है। यही उ‌नके ‘इकोनॉमिक एब्यूज’ का कारण है।

मुंबई स्थित एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च (SPJIMR) के प्रोफेसर राजीव अग्रवाल कहते हैं हाथ में पैसा, उसे खर्च करने का अधिकार पुरुषों को महिलाओं को कंट्रोल करने का हथियार देता है।

‘मैं कमा रहा हूं, मेरी कमाई से घर चल रहा है, मैं न कमाऊं तो परिवार दाने दाने को मोहताज हो जाएगा, मैं कमाता हूं इसलिए मेरी मर्जी चलेगी, पति यह धौंस इसलिए जमा पाता है क्योंकि उसके हाथ में पैसा है।

इसी वजह से महिलाएं एब्यूज झेलती हैं।

घरेलू हिंसा के 95% केस में पैसे का रोल

जिन घरों में महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, उनके साथ गाली-गलौच होती है उसके पीछे पैसा ही होता है।

विशेषज्ञ इसे ‘इकोनॉमिक एब्यूज’ कहते हैं जो कि डोमेस्टिक वॉयलेंस ही है। महिलाएं घर संभालती हैं लेकिन एक-एक पैसे के लिए पुरुषों पर निर्भर रहती हैं।

पति जब चाहे पत्नी को पैसे देने से मना कर देता है या बिना पत्नी के जानकारी के ही वो प्रोपर्टी खरीदता है निवेश करता है। पैसों के दम पर ही वह पत्नी को धमकाता भी है कि अगर वो पैसे नहीं दे तो फूटी कौड़ी भी कहीं से नहीं मिलेगा।

साइकोलॉजिस्ट सीमा विनायक कहती हैं कि जिन महिलाओं के साथ मारपीट, गाली-गलौच नहीं होती उनके साथ भी इकोनॉमिक एब्यूज होता है।

औरत को हर तरह की संपत्ति से दूर रखा जाता है, उन्हें रोजगार और निवेश करने से रोका जाता है।

अक्सर पति पत्नी से कहते हैं कि मैं कमा रहा हूं तो तुम्हें कमाने की जरूरत क्या है? ऐसे इमोशनल स्ट्रैटेजी से महिलाओं को ट्रैप किया जाता है। महिलाएं धीरे-धीरे अलग-थलग पड़ जाती हैं, असहाय हो जाती हैं।

दुर्भाग्य की बात यह होती है कि वे फाइनेंशियल और इकोनॉमिक एब्यूज को पहचान ही नहीं पाती।

वित्तीय सुरक्षा नहीं मिलने से खराब रिश्ते में रहने को महिलाएं मजबूर

‘राइट्स ऑफ इक्वेलिटी’ संस्था की रिपोर्ट ‘ द इकोनॉमिक एब्यूज एंड द इंपोर्टेंस ऑफ फाइनेंशियल लिटरेसी ऑफ वुमन’ में बताया गया है कि महिलाओं की वित्तीय भागीदारी बढ़ाकर घरेलू हिंसा को कम किया जा सकता है।

वित्तीय सुरक्षा नहीं मिलने की वजह से कई महिलाएं खराब रिश्ते में रहने को मजबूर होती हैं। वो पैसे बचाने, निवेश करने की जगह परिवार पर खुद को कुर्बान कर देती हैं। बाद में वही बच्चे उन्हें दर-दर की ठोंकरे खाने को मजबूर करते हैं।

फैमिली फाइनेंस का स्ट्रक्चर क्या है, इसे समझें

राजीव अग्रवाल कहते हैं कि महिलाओं को आमतौर पर फैमिली के फाइनेंशियल डिसीजन लेने में शामिल नहीं किया जाता। जबकि घर में राशन से लेकर, साग-सब्जी, बच्चों की फीस, कपड़े सब महिलाएं ही देखती-संभालती हैं।

अब फाइनेंशियल लिटरेसी इसलिए भी जरूरी हो चला है क्योंकि उन्हें यह समझना होगा कि फैमिली फाइनेंस का स्ट्रक्चर क्या है।

हमें महिलाओं को इंडिपेंडेंट बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वो फाइनेंशियली साक्षर और सक्षम हों ताकि वो पैसों के लेन-देन को खुद हैंडल कर सकें।

दो पैसे बचाकर उन्हें इन्वेस्ट करना सीखें। फाइनेंशियल लिटरेसी का मतलब है कि वो अपने खर्चों को खुद हैंडल करें। कहां और कितना खर्च करना है इसकी आजादी उसे मिलनी चाहिए। ऐसा करने से महिला अपने पैरों पर खड़ा हो पाएगी।

जो महिलाएं फाइनेंशियली लिटरेट हैं वो आर्थिक रूप से मजबूत हैं और अपने भविष्य को संवारने में ज्यादा बेहतर पोजिशन में होती हैं।

वो खराब रिश्ते से बाहर निकल पाती हैं।

जो महिलाएं नौकरीपेशा या रोजगार में नहीं हैं उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी झेलनी पड़ती है।

सशक्त होने का मतलब है पैसों के लेन-देन में दखल

मशहूर एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा ने हाल में कहा था कि यदि कोई महिला फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट है तो वह अपनी शर्तों पर जीवन जी सकती है।

फाइनेंशियली लिटरेट होने का मतलब खुद को पॉवरफुल बनाना है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाओं की औसत आयु 70.3 वर्ष है जबकि पुरुषों की आयु 67 वर्ष है।

पुरुषों से अधिक लंबे समय तक जीने का मतलब है कि आपके पास सेविंग्स भी अधिक होने चाहिए।

ऐसे में महिलाओं को फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट, क्रेडिट सीखना होगा। उनकी वित्तीय समझ और फैसले उन्हें मजबूत करेंगे। उ‌नके जीवन पर उनका कंट्रोल होगा न कि मर्दों का।

महिलाओं को क्या-क्या करना चाहिए?

फाइनेंशियल फ्रीडम और लिटरेसी के लिए महिलाओं को उन पारंपरिक सोच से बाहर निकलने की जरूरत है जिसे वो सदियों से मानती चली आ रही हैं।

बिजनेस और पर्सनल फाइनेंस एडवाइजर, लेखक सुनील गांधी बताते हैं कि महिलाओं को पता होना चाहिए कि प्रोपर्टी के एग्रीमेंट पेपर कहां है, इनकम टैक्स के पेपर्स कहां हैं।

उनके पास इन्वेस्टमेंट डिटेल्स, डिमैट और बैंक अकाउंट की डिटेल्स होनी चाहिए।

फिक्स्ड डिपोजिट, नॉन डिमैट इन्वेस्टमेंट, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी, व्हीकल आरसी बुक, ओरिजिनल पैन और आधार कार्ड, पासपोर्ट, मैरिज सर्टिफिकेट अपने पास रखना चाहिए।

अगर इनकी मूल कॉपी नहीं भी है तो इसकी फोटोकॉपी अपने पास जरूर रखनी चाहिए।

महिलाओं को पता होना चाहिए कि पति ने कहां-कहां निवेश किया है।

आपको पता होना चाहिए कि कौन से लोन लिए गए हैं, उनका टेन्योर क्या है, इंटरेस्ट रेट क्या है।

पति के हर यूजर आईडी और पासवर्ड की जानकारी रखें

आजकल अधिकतर ट्रांजैक्शन ऑनलाइन किए जाते हैं। ऐसे में ऑनलाइन ट्रांजैक्शन की सारी प्रक्रिया महिलाओं को जानना चाहिए।

महिलाओं को पता होना चाहिए कि पति के किन एकाउंट के यूजर आईडी और पासवर्ड क्या हैं। बैंक अकाउंट, डिमैट अकाउंट, क्रेडिट कार्ड, यूपीआई और उससे जुड़े एप के बारे में आपको जानकारी होना चाहिए।

यदि पति अमेजॉन, फ्लिपकार्ट या किसी भी दूसरे ई-कॉमर्स साइट पर सामान खरीदते हैं तो आपको पूरा बिजनेस प्रोसेस पता होना चाहिए, साथ ही लॉगइन आइडी और पासवर्ड भी पता होना चाहिए।

यदि आपके पति का किसी पार्टनरशिप फर्म में शेयर है, प्राइवेट कंपनियों के शेयर हैं तो उसके सारे डॉक्यूमेंट की जानकारी होनी चाहिए। इसके डॉक्यूमेंट्स की कॉपी अपने पास जरूर रखें।

फाइनेंस से जुड़े लोगों के संपर्क में रहें

महिलाएं आमतौर पर सीए, इन्वेस्टमेंट एडवाइजर, वकील, इंश्योरेंस एडवाइजर के संपर्क में नहीं रहतीं। सुनील गांधी कहते हैं कि महिलाओं के कॉन्टैक्ट लिस्ट में इनका नाम होना चाहिए।

वो जब भी इन्वेस्ट के बारे में सोचें तो इन्वेस्टमेंट एडवाइजर से बात करें। कहीं कोई विवाद है तो वकील से मिलें। इनकम टैक्स देने की बात हो तो सीए से पूरी बात समझें। इन सब चीजों को पति पर ही न छोड़ें।

पैसों के लेन-देने, प्रोपर्टी खरीदने से लेकर निवेश तक सभी चीजों की जानकारी रखिए। पति के साथ इस पर चर्चा करिए।

KYC वाले इन्वेस्टमेंट रखें। म्युचुअल फंड, शेयर, बैंक, फिक्स्ड डिपोजिट, पोस्ट ऑफिस, लाइफ इंश्योरेंस में निवेश है तो हमेशा जॉइंट नाम रखें।

चेक करें कि नॉमिनी में आपका नाम है या नहीं। अगर आप खुद अपना खाता ऑपरेट कर रही हैं तो बैंक डिटेल्स को हमेशा अपडेट रखें।

खाता अपडेट करने, नया चेक लेने, एटीएम कार्ड बनवाने, क्रेडिट कार्ड लेने या म्युचुअल पंड में निवेश करने के लिए महिलाओं को खुद आगे बढ़ना चाहिए।

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