नई दिल्ली45 मिनट पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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‘जिंदगी का हर दिन एक नए अनुभव के साथ कोई बात सिखाकर जाता है। इंसान को अपने अंदर के स्टूडेंट को हमेशा जिंदा रखना चाहिए। जो बात नई और चैलेंजिंग लगे, उसे तुरंत सीख लीजिए’, आगे बढ़ने और तरक्की करने का यही गुरुमंत्र है। हैदराबाद की नाज अंजुम इसी बात पर अमल करती हैं।

वह जिस माहौल में पली-बड़ी और जहां उनकी शादी हुई, उसमें जमीन-आसमान का अंतर था लेकिन उन्होंने नई चीजों को देखकर मुंह नहीं मोड़ा और उन्होंने वह सब सीखा जो जिंदगी ने उन्हें सिखाया।

हाल ही में उन्होंने हस्बैंड को खोया है और वह अभी इदत पर हैं।

नाज तीन छोटे बच्चों की खातिर पूरी दिलेरी के साथ जिंदगी की हर मुश्किल का सामना कर रही हैं।

‘ये मैं हूं’ में आज मिलिए हैदराबाद की मशहूर होम शेफ नाज अंजुम से:

महाराष्ट्र और हैदराबाद में जमीन आसमान का फर्क

मैं महाराष्ट्र में पली बड़ी हूं। प्रोफेशन से टेक्सटाइल इंजीनियर हूं। मैं वहां टॉम बॉय की तरह रहती थी। मेरे सभी दोस्त दूसरे मजहब से थे लेकिन 2010 में इंजीनियरिंग पूरी करते ही मेरी शादी हैदराबाद में हो गई। यहां का माहौल बिल्कुल अलग था। मैंने यहां की भाषा के साथ-साथ हैदराबादी खाना भी बनाना सीखा क्योंकि मराठी कुकिंग हैदराबादी खाने से बहुत अलग है।

हैदराबाद आने के बाद मैं अपने मजहब के करीब आई।

इससे पहले मैंने कभी हिजाब नहीं पहना था लेकिन यहां आकर मैंने खुद को बिल्कुल बदल दिया। मुझ पर कोई प्रेशर नहीं था, ना ही कभी मेरे ससुरालवालों या हस्बैंड ने हिजाब पहनने के लिए कहा लेकिन जब मैं अपने मजहब से करीब आई तो खुद-ब-खुद मेरे मन में बदलाव लाने की इच्छा जगी।

बिल्डिंग में रहने वाले युवाओं के कहने पर शुरू की टिफिन सर्विस

2013-14 की बात है, तब रमजान चल रहे थे। मेरी बिल्डिंग में ऐसे कई युवा रहते थे जो पढ़ने या नौकरी के सिलसिले में घर से दूर हैदराबाद आए थे। वह कई बार ऑफिस से आने के बाद मेरे बच्चों के साथ भी खेलते। मैं अक्सर उनसे पूछती थी कि खाना खाया और उनका जवाब कभी ‘हां’ या ‘ना’ में होता। ज्यादातर मैंने जवाब में -’नहीं भाभी, मैंने खाना नहीं खाया’ सुना। यह सुनकर मैं उन्हें घर का बना खाना भिजवा देती। इन बच्चों को मेरे हाथ का खाना बहुत टेस्टी लगता।

एक दिन पूरी बिल्डिंग में रहने वाले लगभग 50 के करीब युवा मेरे घर आए और कहा-’भाभी हम रोज बाहर का खाना खाते हैं जिसमें बहुत पैसे खर्च हो जाते हैं। खाना ना तो घर जैसा होता है और ना ही स्वाद मिलता है। आपके हाथ के बने खाने में हमें मां के हाथ के बने घर जैसे खाने का स्वाद आता है। आप हमारे लिए टिफिन बना दिया करें। हम आपको हर महीने या हर हफ्ते पेमेंट करेंगे।

बच्चे इस बात पर जोर दे रहे थे कि मैं उनके लिए टिफिन सर्विस शुरू कर दूं। मैंने उनकी बात सुनते ही इनकार कर दिया लेकिन जैसे-तैसे उन्होंने मुझे मना लिया और यहां से होम शेफ बनने का सफर शुरू हुआ। मैंने पहला टिफिन ऑर्डर 80 रुपए की सब्जी खरीदकर बनाया।

सोशल मीडिया को बनाया अपनी ताकत

शुरुआत में मेरे हस्बैंड टिफिन सर्विस को तैयार नहीं हुए लेकिन जब उन्होंने मेरी लगन देखी तो वह मुझे सपोर्ट करने लगे। मेरी बिल्डिंग के जिन युवाओं ने मुझे इस काम के लिए राजी किया, उन्होंने ही मुझे फेसबुक के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि ‘भाभी, आप फेसबुक पर अपना पेज बनाएं और खाने की तस्वीरें शेयर करें। जैसे ही मैंने पेज बनाया तो कई फूड ग्रुप्स ने मुझे प्रमोट किया।’

मैं सुबह 4 बजे उठकर नमाज अदा करती और बच्चों के स्कूल जाने के बाद सुबह 9 बजे से टिफिन बनाना शुरू कर देती। दोपहर 12:30 तक टिफिन तैयार कर ऑर्डर के मुताबिक भिजवा देती थी जिसके बाद मेरे पास खुद के लिए समय ही समय होता। धीरे-धीरे मैं पॉपुलर होने लगी। मुझे फेसबुक पेज से ही ऑर्डर मिलने लगे।

मुझे याद है फेसबुक पर पहला ऑर्डर एक महिला से बिरयानी का मिला था। मैंने उन्हें बिरयानी पकाकर भेजी तो उन्हें मेरी बनाई बिरयानी इतनी पसंद आई कि उनके जरिए मुझे कई ऑर्डर मिले। उन्होंने मेरी बिरयानी की तारीफ फोटो समेत फेसबुक पर की तो बहुत लोगों के फोन आने शुरू हो गए।

साथ ही मैं हैदराबाद में अपने देवर के रेस्टोरेंट के लिए मीठा भी बनाने लगी। लोगों ने मेरे बने मीठे को भी खूब पसंद किया।

‘वन मैन आर्मी’ की तरह संभालती हूं किचन

जब मुझे खाने के ऑर्डर मिलने लगे तो मेरी हेल्प ने काम छोड़ दिया। लेकिन उसने पहले ही मुझे किराने और सब्जी वाले का नंबर दे दिया था। मैं हर समान घर पर ही मंगवाती। मैं तब भी और आज भी अकेले ही किचन संभालती हूं।

शुरुआत में मुझे दिनभर में 10 से ज्यादा ऑर्डर मिल जाते थे और मेरा पूरा दिन किचन में गुजरता।

कुछ साल मेरे लिए बहुत मुश्किल थे। मैं 10 साल तक अपने मायके नहीं गई, भाइयों से नहीं मिली। अगले दिन के टिफिन के लिए शाम को बच्चों को पढ़ाते हुए सब्जी काटती। मुझे देखकर आसपास की कई महिला प्रेरित हुईं। सबका कहना था कि अकेली औरत कितना कुछ कर रही है और अच्छा कर रही है। लोगों से बहुत तारीफें और प्यार मिला।

खुद से बनाई नई डिशेज

मैंने 5 साल तक 99% डबल वाला मीठा, दावत वाला रेड चिकन और बिरयानी ही बनाई क्योंकि लोग सबसे ज्यादा इन्हीं डिशेज को ऑर्डर करते। इसके बाद मैंने रिसर्च की कि मुझे कौन सी नई रेसिपी बनानी चाहिए जिनकी मार्केट में डिमांड है। मैंने ज्यादा से ज्यादा डिशेज का मेन्यू तैयार किया और नई-नई डिशेज पर लगातार रिसर्च करती रही। मैंने वेजिटेरियन के लिए वेज प्लैटर भी तैयार किए।

लॉकडाउन में ‘जश्न-ए-दावत’ लॉन्च किया। इस प्लैटर में शादियों में बनने वाला पूरा खाना आ गया।

मैं हमेशा सोचती हूं कि मुझे कहीं रुकना नहीं है। मैं बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए खाना दिल से बनाती हूं।

निजाम परिवार से जुड़े एक बुजुर्ग ने दी दुआएं

मैं किस्मत वाली हूं कि लोगों ने मेरे खाने की हमेशा तारीफ की है। कई बुजुर्गों ने मेरा खाना चखकर मुझे नेग के तौर पर पैसे भिजवाए।

मेरे क्लाइंट अब मेरी फैमिली हैं। 2016 की बात है, मेरे घर एक 80 साल के बुजुर्ग व्हीलचेयर पर आए। मैं उन्हें नहीं जानती थी। उन्होंने घर आकर कहा कि मुझे अंजुम से मिलना है। मैंने कहा-मैं ही हूं तो उन्होंने कहा कि तुम्हारे हाथ कहां हैं? मैं इन हाथों को खूब सारी दुआ देना चाहता हूं। उन्होंने मेरे हाथ का दावत वाला रेड चिकन खाया था और वह निजामों के किचन में बनने वाले पकवानों से वाकिफ थे क्योंकि वह कभी उनके वहां काम करते थे। मेरा हाथ का बना खाना उन्हें भावुक कर गया।

असल हैदराबादी खाने का यह स्वाद उन्होंने कई बरस पहले निजामों की रसोई और अपनी मम्मी के हाथों के खाने में ही खाया था, उन्हें वहीं स्वाद मेरे खाने में मिला। यह मेरे लिए बहुत बड़ा अचीवमेंट था।

बच्चों को सिखाऊंगी हैदराबादी कुकिंग

मेरी सबसे छोटी बेटी 6 साल की है, बेटा छठी में और बड़ी बेटी 8वीं में है। मैं अपने तीनों बच्चों को हैदराबादी कुकिंग सिखाऊंगी ताकि वह हैदराबादी कुकिंग की कला को आगे बढ़ा सकें।

अमेरिका से स्टूडेंट हैदराबादी खाना बनाना सीखने आए

इंटरनेट से अमेरिका में पढ़ रहे होटल मैनेजमेंट के स्टूडेंट्स को मेरे बारे में पता चला। वह मेरे पास खासकर हैदराबादी खाना सीखने आए।

आज मेरी सिखाई बिरयानी को वह अपने इंस्टीट्यूट में मेरे ‘नाज अंजुम बिरयानी’ के नाम से खिलाते हैं।

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