पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “मैं भाग्यशाली हूं कि मैं ऐसी जगह पर आया हूं, जहां लोग मुझसे कह रहे हैं ‘आप को हम यहां से जाने नहीं देंगे’.” यूसुफ पठान ने कहा, “यहां के लोगों ने पहले ही मुझे अपने बेटे, भाई या दोस्त के रूप में स्वीकार कर लिया है. चुनाव का परिणाम चाहे जो भी हो, मैं उनके साथ रहूंगा. बेहतर भविष्य के लिए मैं उनके साथ रहूंगा, जिसके वे हकदार हैं. ये लोग मेरी ताकत हैं और,’ इंशाल्लाह’, मैं जीतूंगा. जिस तरह की सकारात्मक मानसिकता में मैं इस समय हूं, मैं हार की संभावना के बारे में भी नहीं सोच रहा हूं.”

वह पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले की प्रतिष्ठित बहरामपुर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं, और अपने गृह क्षेत्र में कांग्रेस के दिग्गज नेता और मौजूदा अधीर रंजन चौधरी के लिए प्रमुख चुनौती बनकर उभरे हैं. उन्होंने कहा, ”मैं अधीर चौधरी का बहुत सम्मान करता हूं, जो एक वरिष्ठ नेता हैं.”

उन्होंने कहा, “लेकिन जब मैं लोगों को सुनता हूं, तो मुझे कोविड के वर्षों के दौरान जमीनी स्तर से उनकी अनुपस्थिति पर असंतोष सुनाई देता है. यहां लोगों का आरोप है कि चौधरी बुनियादी ढांचे और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए आवश्यक केंद्रीय अनुदान लाने में विफल रहे. लोगों और सांसद के लिए पर्याप्त काम नहीं है 25 साल से एमपी रहे अधीर चौधरी को लोगों को जवाब देना चाहिए कि वह असफल क्यों रहे.”

अगर बहरामपुर के मतदाता उन्हें अपने उम्मीदवार के रूप में चुनते हैं तो पठान ने प्रवासी श्रमिकों को रोकने के लिए नौकरी के अवसर पैदा करना, एक विश्व स्तरीय खेल परिसर का निर्माण करना, स्थानीय रेशम, थर्माकोल और जूट उद्योग के श्रमिकों के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करना और किसानों के लिए एक सहायता प्रणाली बनाना प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के रूप में सूचीबद्ध किया है. उन्होंने कहा, “मुझे यहां बहुत काम करना है. मैंने इस क्षेत्र में अपनी संक्षिप्त उपस्थिति, अपने चुनाव अभियानों और लोगों के साथ बातचीत के दौरान इसका पता लगा लिया है.”

हालांकि, लोकसभा चुनाव मैदान में शामिल होना शायद डेढ़ महीने पहले ही पठान के दिमाग में आखिरी बात थी, जब तक कि ममता बनर्जी (सीएम और टीएमसी सुप्रीमो) और उनके भतीजे अभिषेक ने उनसे संपर्क नहीं किया था. उन्होंने कहा, “यह उस दिन से एक हफ्ते से भी कम समय पहले हुआ जब पार्टी ने 10 मार्च को अपने उम्मीदवारों की सूची घोषित की थी.” मेरी पहली प्रतिक्रिया नकारात्मक थी. मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार करने या न करने को लेकर दुविधा में था. आखिरकार, मैंने पहले कभी राजनीति के बारे में गंभीरता से नहीं सोचा था, न ही मैं इस कला का कोई विशेष प्रशंसक था.”

जब पूछा गया कि आखिर उन्होंने राजनीति और टीएमसी को क्यों चुना तो उन्होंने हंसते हुए कहा, “क्रिकेट तो खत्म हो गया, कुछ तो करना था… सच कहूं तो मैंने अपने परिवार से खासकर अपने भाई इरफान और पत्नी आफरीन से बात की. मैंने अपने सीनियर और दोस्तों से भी बात की और मुझे जल्द एहसास हो गया कि यह एक तोहफा और एक मौका है, जिसकी मदद से मैं लोगों की सेवा कर सकता हूं और सोसाइटी के काम आ सकता हूं, जहां मैंने इतने सालों में प्यार और इज्जत कमाई है.”

हालांकि, पठान ने कहा कि वह एक दशक से अधिक समय से ममता बनर्जी की राजनीति से परिचित हैं, खासकर 2011 से जब उन्होंने आईपीएल में कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए खेलना शुरू किया. उन्होंने बताया, “मैं यहां आता था और महीनों तक रहता था और उनके द्वारा कोलकाता में लाए गए नागरिक बुनियादी ढांचे के विकास को देखता था. लोग मुझे महिलाओं की शिक्षा और गरीबों के लिए उनके काम के बारे में भी बताते थे. 2014 में केकेआर के जीतने के बाद मैं उनसे मिला भी था. इसलिए उनके प्रस्ताव पर हां करना आसान था.” 

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