नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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मैं साधना कोल ग्वालियर की रहने वाली हूं। महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करती हूं। गांव-गांव जाती हूं और उनकी सेहत के बारे में बात करती हूं। पीरियड्स को लेकर महिलाओं में बैठे दकियानूसी विचारों को दूर करने की कोशिश करती हूं।

मैं खुद एक दलित परिवार से हूं और इसकी पीड़ा भी समझती हूं। मुश्किलों में रहकर पढ़ाई की, इसलिए आज दलित समुदाय के बच्चों को पढ़ाती हूं। दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में आज मेरी कहानी…।

7-8 साल की उम्र में पापा गुजर गए

मेरा जन्म इलाहाबाद में हुआ। 7-8 साल की थी तभी पिता गुजर गए। मम्मी अकेले हो गईं। परिवार में हमलोग तीन भाई-बहन थे।

घर-परिवार के लोग कितने दिन तक हमें संभालते। पति नहीं रहता तो सुसराल वाले भी नहीं पूछते। मम्मी ग्वालियर अपने मायके आ गईं। यहां नाना-नानी के साथ मां रहने लगीं।

लेकिन कुछ ही समय मां को अहसास हुआ कि बच्चों को पढ़ना लिखना है तो उनका काम करना जरूरी है। जबकि मां को किसी तरह का काम नहीं आता था। उन्होंने बाहर की दुनिया कभी देखी ही नहीं थी।

मां पत्थर खदान में काम करती, मैं घर पर छोटे भाई-बहन को देखती

मां को जब कोई काम नहीं मिला तो पत्थर के खदान में काम करने लगी। पत्थरों के चिप्स को ट्रॉली में भरती। कड़ी मेहनत के बाद महीने के 1,500 रुपए कमा पातीं।

सुबह 4 बजे उठतीं, घर की साफ-सफाई करतीं, खाना बनातीं और काम पर चली जातीं। मैं दोनों भाई-बहन को संभालती।

मम्मी दोपहर 12 बजे लौटतीं तो मैं स्कूल जाती। जब शाम 4 बजे स्कूल से आती तो मम्मी फिर से काम पर चली जाती और वापस 7 बजे आती। कई बार मामा के परिवार के लोग हमारी मदद करते।

मां की शादी चाचा से हो गई, नए पिता शराब पीकर घर में लड़ाई करते

मेरी दादी को लगता कि मां तीन बच्चों को कैसे पालेगी। इसलिए मां की शादी चाचा से करा दी गई।

मम्मी तब भी काम करती रही। लेकिन मेरे दूसरे पिता भी पहले पिता की तरह शराब के आदी थे। खूब शराब पीने से ही पापा की जान गई थी। नए पिता भी रोज घर पर शराब पीकर आते।

मम्मी को मारते-पीटते। मम्मी भी ये सोचकर बर्दाश्त करती कि पति है, मारपीट ही दिया तो क्या हुआ? लेकिन मेरे अंदर डर बैठ गया।

मैं सहमी रहती कि आज चाचा पीकर आएंगे तो लड़ाई करेंगे। मैं डर के मारे में कुछ बोल नहीं पाती। लगता कि कहीं हमें ही न मार दें। ये सिलसिला भी बंद हुआ जब चाचा बने पिता भी गुजर गए।

स्कूल में लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में बताती साधना।

स्कूल में लड़कियों को उनके अधिकारों के बारे में बताती साधना।

स्कूल में टीचर बोलती कि आदिवासी हो, किनारे बैठो

दलित होने का दंश हमेशा झेलना पड़ा। चेहरा-मोहरा देखकर मोहल्ले में लोग बोलते कि आदिवासी हैं। तब बहुत बुरा लगता था कि हमें ऐसा क्यों कहा जाता है।

सरकारी स्कूल में पढ़ती। स्कूल में टीचर कहती कि तुम आदिवासी हो, एक तरफ बैठा करो। क्लास में मेरा कोई दोस्त नहीं था। मैं सबसे अलग-थलग रहती।

मैं डरती कि कुछ बोलूंगी तो ये छुआछूत करने लगेंगे। हमेशा डर और झिझक बनी रहती।

अपने पैरों पर खड़ी हुई, मम्मी का बाजू बनी

मां ने पत्थर तोड़कर मुझे पढ़ाया। मैंने बीए तक पढ़ाई पूरी की। इसके बाद ‘नींव’ संस्था से जुड़ी। इसकी मदद से मैं ग्वालियर में दलित और वंचित समुदाय के बच्चों को पढ़ाने जाती।

मेरा आत्मविश्वास पढ़ने लगा। इससे पहले मैं गुमशुम रहने वाली लड़की थी। मुझे पता नहीं चलता था कि कहां क्या बोलना है।

मन में डर बैठा रहता। किस विषय पर क्या बोलना है घबराहट होती। मंच पर अपना नाम बताने पर भी कांपती।

लेकिन कम्यूनिटी के बीच जाने पर झिझक खत्म हो गई। मुझे मोटिवेट करने में सबसे बड़ी भूमिका रीना शाक्य की रही। वो हमेशा मौका देतीं और कहती कि तुम ये काम कर सकती हो।

आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं। महीने में इतने पैसे कमा लेती हूं कि मम्मी की मदद कर सकूं। मम्मी अब प्लास्टिक की फैक्ट्री में मशीन चलाती हैं।

दोनों मिलकर हम अपने घर को संवार रहे हैं।

बाल खोलकर चलेगी, जींस-टॉप पहनेगी तो रेप नहीं होगा क्या?

मैं जिस रास्ते से आती-जाती हूं उस रास्ते में कुछ लड़के कमेंट करते हैं। कहते हैं कि बाल खोलकर जींस टॉप पहनकर और मेकअप करके चलेगी तो रेप नहीं तो होगा ही।

मैंने पलट कर जवाब दिया कि तेरी बहन भी इसी रास्ते से रोज आती-जाती है तो क्या उसे भी ऐसा ही कहते हो क्या। तुम लोगों ने हिम्मत है तो मेरा रेप करके दिखाओ। मुझे इस तरह बोलता देख लड़के भाग गए।

कई बार फील्ड से लौटते वक्त देरी हो जाती है तो मन में घबराहट नहीं होती। बस ये सोचती हूं कि एक-दो लड़कों को तो देख ही लूंगी। डर के बजाय मन में ये विचार आता है कि कैसे और कहां मारना है।

तुरंत जवाब देंगे तो बड़े अपराध नहीं होंगे

लड़कियों को डरना नहीं चाहिए। आप डरेंगी तो लड़के और डरा देंगे। बदमाश लड़कों ने कमेंट किया और आप चुप रह गईं तो इसका मतलब है कि वो कल भी बोलेंगे। कल चुप रही तो फिर परसों भी बोलेंगे। आपकी चुप्पी, आपका डर उनकी हिम्मत बढ़ा देता है।

इसी की बदौलत वे रेप जैसी घटनाओं को अंजाम देने की हिम्मत रखते हैं।

लड़कियों को पहले कमेंट पर ही बोलना चाहिए। पलटकर जवाब दें, बर्दाश्त नहीं करें।

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