1 घंटे पहले

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“मिहिका, मैं तुम्हारे कदमों में दुनिया की हर खुशी लाकर रख देना चाहता हूं। तुम्हें आलीशान लक्ज़री विला में रखना चाहता हूं और देखो हम कर क्या रहे हैं, धूल-मिट्टी में सने गड़े मुर्दे उखाड़ रहे हैं।”

“ओह मानव, कम ऑन। हिस्ट्री, माइथोलोजी और आर्कियोलॉजी मेरा पैशन है। मुझे ऐसा लगता है मैं टाइम मशीन से पीछे लौट गई हूं। वही समय दुबारा जी रही हूं। मैं तो जिंदगी भर ये सब कर सकती हूं। और मत भूलो, लक्ज़री सारी इसी तरह धूल में मिल जाती है। अभी जहां हम हैं, यह भी राजमहल ही था उस जमाने में।”

“पता है मिहिका, मैं मानता हूं, हर कहानी में कुछ सच्चाई तो होती है। यह काम मैंने इसीलिए चुना, क्या पता कोई गड़ा खजाना या प्राचीन गुप्त विद्या, कोई सिद्धि ही मिल जाए, कोई जिन्न, कोई यक्षिणी ही…”

“मानव, इन सब चक्करों में मत पड़ो, तुम्हारा दिमाग खराब हो जाएगा। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती किसी कीमत।”

“अरे यार, तुम तो इतनी सेंटी हो रही हो जैसे सचमुच ही… खैर छोड़ो, देखो राधा दीदी ने चाय बना ली या नहीं। अब इस वीराने में कैफे तो मिलने से रहा।”

दोनों धूल झाड़कर उठ खड़े हुए। साथ लाया टिफिन खाया और चाय पी। दूर-दराज की साइट्स पर काम करते अक्सर अपने खाने-पीने की व्यवस्था साथ रखनी होती थी।

वापस लौटकर मानव ने जल्दी से बैग खोला और एक दुर्लभ प्राचीन ग्रन्थ निकाला, जिसमें यक्षिणी साधना की विधि थी।

“अगर यह मुझे मिल जाए तो चुटकियों में मैं अमीर बन जाऊँगा। वह सब होगा, जो मुझे चाहिए। बस इतने समय मिहिका को अपने से दूर रखना होगा। एक बार मैं सब कुछ पा लूं, फिर हम दोनों हमेशा खुश रहेंगे।”

आखिर को बड़ी मुश्किलों से उसने मिहिका को आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाने को तैयार कर लिया।

पूर्णिमा की रात श्मशान में वह भोजपत्र पर लाल चंदन से अनार की कलम द्वारा किसी यक्षिणी का नाम लिखकर उसका आह्वान कर रहा था। पिछले कई दिनों से वह व्रत और एक लाख बार मंत्रजाप कर रहा था।

तभी चांद बादलों में ढंक गया। मौसम खराब हो गया, तेज बिजलियां चमकने लगीं और मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। मानव ने आंखें खोलीं और जो देखा, उसको मानो लकवा मार गया। जमीन तक लुथते लंबे-घने काले बाल, लाल-लाल बड़ी आंखें, दोनों कानों तक फैली भयानक मुस्कान के साथ बड़े-बड़े दांत और जला हुआ चेहरा। उसके सामने एक भयंकर दैत्याकार आकृति खड़ी थी।

“तू मेरा वरण करना चाहता है न। ठीक है, मैं सदा सर्वदा तेरे साथ रहूंगी अब।”

उसने अट्टहास किया। उसकी आवाज से मानव की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। वह अपनी जगह जड़ होकर रह गया।

“क्या हुआ, कुछ बोलेगा नहीं?” वह फिर दहाड़ी।

लेकिन मानव की जुबान तालू से चिपक गई थी।

“हाहाहा, दुर्बल पुरुष।” भयानक हंसी हंसकर वह गायब हो गई। सब कुछ पहले जैसा हो गया।

“ओह नहीं! मेरी साधना विफल हो गई। लेकिन मैं प्रयास नहीं छोड़ूंगा। अगली पूर्णमासी फिर आऊँगा।”

इस बार उसका निश्चय और पक्का हो गया था। सारी विधियां करके उसने 108 बार आहुति देकर हवन पूरा किया।

इस बार जो उसके सामने प्रकट हुई थी, उसे देखकर मानव के होश ही उड़ गए। यह कोई भयानक पिशाचिनी नहीं, बल्कि अनिंद्य सुंदरी थी। इतनी सुंदरता उसने सपनों में भी कभी नहीं देखी थी।

“तो तेरा संकल्प पक्का निकला। मेरे भयानक रूप से एक बार विचलित होकर भी तू पुनः आ गया। पर तू जानता है न कि मेरा वरण बस प्रेमिका के रूप में ही किया जा सकता है। मेरे अलावा तू किसी और स्त्री के बारे में सोच भी नहीं सकता और मुझे हर रात्रि संतुष्ट करना पड़ेगा। मेरे साथ कच्चा मांस और मदिरा का सेवन करना होगा।”

उस समय मानव उसके रूप और अलौकिक आभा के मोहजाल में ऐसा फंसा कि उसकी हर बात पर बस ‘हां’ ही किये जा रहा था।

और कुछ ही दिनों में उसके पास सब कुछ था। करोड़ों का बैंक बैलेंस, अलग-अलग देशों में बंगले, फैक्ट्रियां और संसार की सबसे सुंदर स्त्री। वह बाकी सब-कुछ भूल चुका था।

पांच साल कैसे निकल गए, उसे पता ही नहीं चला, पर अब वह बेचैन सा रहने लगा था।

“मुझे अपना परिवार चाहिए। एक बीवी चाहिए जो बस बिस्तर में मेरे साथ न हो, बल्कि जिसके साथ मैं अपनी सारी बातें शेयर कर सकूं। सुबह वॉक करने जाऊं, शाम को चाट-गोलगप्पे खाने, जो मेरी पसंद का खाना बनाए और मैं उसकी पसंद का। मैं ऊब गया हूं कच्चा मांस खा खाकर। मैं चाहता हूं मेरे प्यारे-प्यारे बच्चे हों, और…”

“तुच्छ मनुष्य, तू हमेशा तुच्छ ही रहेगा। तुझे संसार का हर दैवीय ऐश्वर्य मिल जाए तब भी तेरी तुच्छता तुझे वापस पाताल में ही घसीटेगी। चिर यौवना सुंदरी को छोड़कर तू ऐसी स्त्री की इच्छा करता है जो शीघ्र ही बूढ़ी होकर मर जाएगी। तू कृतघ्न ही रहेगा। कौन है वह स्त्री…”

यक्षिणी ने उसके माथे पर हाथ रखा।

“ओह,मिहिका है वह। अब जीवित नहीं बचेगी।”

“नहीं… तुम मिहिका को कुछ नहीं करोगी। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ति करता आया हूं हमेशा से, उसे छोड़ दो बस।”

“संभव ही नहीं है। मेरी केवल एक ही शर्त थी, मेरे सिवा किसी स्त्री के बारे में सोचना भी मत। अब तो उसे मरना ही होगा, नहीं तो मैं तुझे मार दूंगी।” यक्षिणी बहुत क्रोध में थी।

“ठीक है, मार दो मुझे, नहीं चाहिए यह धन-दौलत भी तुम्हारी। मिहिका की जान मत लो बस।”

उसके इतना कहते ही उसका बंगला एक राख के ढेर में बदल गया, यक्षिणी भी गायब हो चुकी थी। तभी उसका फोन बजा और खबर मिली कि अमेरिका में एक रोड एक्सीडेंट में मिहिका की मौत हो गई है।

मानव वहीं ढह गया और फूट फूटकर रोने लगा।

“मैं दौलत के नशे में इतना अंधा हो चुका था कि असली सुख ठुकरा बैठा, मुझे मरना चाहिए था, पर मेरे कर्मों की सजा तुम्हें मिली। मिहिका, काश! मैं सब-कुछ ठीक कर सकता, बस एक मौका मिलता अगर मुझे…”

“मानव, मानव उठो! क्या हो गया है तुम्हें? बुरा सपना देख रहे हो कोई?” मिहिका की आवाज पर वह हड़बड़ाकर उठा और घूर घूरकर आसपास देखने लगा।

“मैं… मैं कहां हूं… और तुम… तुम ठीक हो? हे ईश्वर, मैं कितना खुश हूं।” उसने मिहिका को गले लगा लिया।

“अरे क्या हुआ है तुम्हें? किताबों में सिर दिए सो गए थे, मैंने जगाना ठीक नहीं समझा। तुम्हारे पास बैठकर ही तुम्हारे जागने का इंतजार कर रही थी, कि अचानक तुम नींद में रोने-बड़बड़ाने लगे, मेरा नाम पुकारने लगे।” मिहिका ने उसे पानी पिलाया।

“विश्वास ही नहीं हो रहा, वह सब सपना था। वह पांच साल… वह यक्षिणी…” मानव समझ नहीं पा रहा था, वह सपना था या वह अब सपने में है।

“यह पूरा संसार ही भगवान विष्णु का देखा स्वप्न है, ऐसा कहते हैं। खैर, मायने यह रखता है कि हम असल में क्या चाहते हैं। वह क्या है जो जिंदगी में सच में जरूरी है…” मिहिका मुस्कुराई।

“तुम… तुम ही मेरी जिंदगी हो बस। और कुछ मायने नहीं रखता। मेरे पास जो भी, जितना भी है, तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करूंगा।”

उसने दुबारा मिहिका को गले लगाया तो मिहिका ने कृतज्ञता से उस ड्रीमकेचर को देखा, जो एक रहस्यमयी महिला ने उसे दिया था और कहा था कि अगर मानव को खोना नहीं चाहती तो इसे उसके बिस्तर के सिरहाने रख देना। उसे खुशी थी कि उसने उसकी बात पर विश्वास किया।

इधर मानव ने उस तंत्र साधना की किताब को बहुत ढूंढा, वह उसे नष्ट कर देना चाहता था ताकि कोई और इस मायाजाल में न फंसे। पर वह न जाने कैसे गायब हो चुकी थी।

– नाज़िया खान

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