2 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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एक आम लड़की की तरह ये लड़की भी बेफिक्री से कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी। पेरेंट्स और बड़े भाई का भरपूर प्यार मिल रहा था। वो उम्र के उस दौर में थी जहां कॉलेज के दोस्तों के साथ हंसते-खिलखिलाते हुए भविष्य के सपने देखे जाते हैं। लड़की की मां एक्टर हैं, उनका अपना थिएटर ग्रुप है, लेकिन लड़की ने कभी एक्टिंग में करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा। उसने स्कूल या कॉलेज में भी कभी किसी प्ले या डांस में हिस्सा नहीं लिया।

अभी उसने ये भी तय नहीं किया था कि उसे भविष्य में क्या बनना है कि तभी दिल्ली में हुए निर्भया कांड से ये हंसती-खिलखिलाती लड़की बुरी तरह सहम गई। तब उसने तय किया कि वो अपनी भावनाओं को एक्टिंग के माध्यम से लोगों तक पहुंचाएगी, क्योंकि एक्टिंग उसके खून में थी। ‘ये मैं हूं’ में जानिए यंग एक्टर-डायरेक्टर प्रज्ञा सिंह रावत की कहानी…

सोचा नहीं था एक्टिंग करूंगी

मैं प्रज्ञा सिंह रावत, उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली हूं। मैंने बचपन से एक्टिंग का माहौल देखा। मेरी मां लक्ष्मी रावत टीवी सीरियल और थिएटर में एक्टिंग करती रही हैं। मां का थियटर ग्रुप है जहां वो एक्टिंग सिखाती भी हैं। इसके बावजूद मुझे और मेरे बड़े भाई को कभी एक्टिंग में रुचि नहीं रही और न ही मां ने कभी हमें इसके लिए जोर दिया। मेरे बड़े भाई का हिमाचल में बिजनेस है।

एक्टर-डायरेक्टर प्रज्ञा सिंह रावत उत्तराखंड के गांवों में जाकर वहां के बच्चों को एक्टिंग सिखाती हैं

एक्टर-डायरेक्टर प्रज्ञा सिंह रावत उत्तराखंड के गांवों में जाकर वहां के बच्चों को एक्टिंग सिखाती हैं

निर्भया कांड ने जिंदगी बदल दी

मेरे एक्टिंग करियर की शुरुआत निर्भया कांड से हुई। मैं दिल्ली में पली बढ़ी हूं। अपने शहर में हुई इतनी दर्दनाक घटना ने मुझे बुरी तरह सहमा दिया। मैं जिस शहर में रहती हूं, उस शहर में मेरे जैसी लड़की के साथ इतनी भयानक घटना हो सकती है, मैं सोचकर सहम गई। चाहकर भी उस घटना को भूल नहीं पा रही थी…

निर्भया कांड जब हुआ तब मैं उस उम्र में थी जहां हर लड़की को इतनी समझ आ जाती है कि लड़कियों के लिए घर से बाहर सुरक्षित रह पाना कितना मुश्किल है। हर बड़ी होती लड़की की तरह मैंने भी कई बार अजनबी पुरुषों की घूरती निगाहों को झेला है, किसी अधेड़ उम्र के पुरुष की भद्दी नजर मुझ पर से भी होकर गुजरी है। लड़कियों के बीच इन मुश्किलों पर बात होती है लेकिन सुनवाई कहीं नहीं होती।

‘कि मैं औरत हूं’ सोलो प्ले है, जिसमें निर्भया दर्शकों से पूछती है कि कैंडल मार्च करने, धरना देने से क्या लड़कियां सुरक्षित हो जाएंगी? क्या आगे किसी लड़की के साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं होगा? निर्भया कांड से जुड़े सवाल सबको सोचने पर मजबूर करते हैं। निर्भया के दर्द को मार्मिक ढंग से लोगों तक पहुंचाने के लिए उतने ही मार्मिक बैकग्राउंड म्यूजिक की जरूरत थी। मैंने ‘कि मैं औरत हूं’ नाटक का बैकग्राउंड म्यूजिक तैयार किया। यह काम करने से मुझे बहुत सुकून मिला। तब पहली बार मुझे महसूस हुआ कि कला के माध्यम से हम अपनी बात कितनी आसानी से लोगों तक पहुंचा सकते हैं।

मां ने नाटक ‘कि मैं औरत हूं’ तैयार किया। 17 साल की उम्र में पहली बार मैंने इसी नाटक में बैकग्राउंड म्यूजिक दिया। दर्शकों को नाटक बहुत पसंद आया। हम अपनी बात दर्शकों तक पहुंचाने में सफल हुए। तब मैं अपना ग्रेजुएशन कम्प्लीट कर रही थी। यही वह समय था जब मेरी एक्टिंग में रुचि बढ़ने लगी।

मेरा पहला नाटक ‘जायज हत्यारे’ दर्शकों को बहुत पसंद आया। इसमें मैंने देविका की भूमिका निभाई। तब तक मैंने एक्टिंग की प्रोफेशनल ट्रेनिंग नहीं ली थी। इसके बाद मैंने थिएटर में मास्टर्स किया।

हमारे थिएटर ग्रुप के नाटक ‘पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ’, ‘शांति विहार गली नंबर 6’, ‘जीतू बगड़वाल’ बहुत मशहूर हुए।

मैं अपनी अलग पहचाना बनाना चाहती हूं

दर्शकों का प्यार पाकर मेरा कॉन्फिडेंस बढ़ा और मैंने एक्टिंग में करियर बनाने की ठान ली। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनका ये कहना था कि तुम्हें चिंता करने की क्या जरूरत है, तुम्हारी मां का अपना थिएटर ग्रुप है। ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी। मैं अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थी। फिर मैंने मां के थिएटर ग्रुप के अलावा बाहर भी काम करना शुरू किया।

मैंने ‘लिटिल थिएटर ग्रुप’ में ऑडिशन दिया और मेरा सिलेक्शन हो गया। यहां एक साल का कॉन्ट्रैक्ट होता है जिसमें कलाकर को उसके किए काम के पैसे भी मिलते हैं। एक साल में तीन प्ले हुए और तीनों में मुझे मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला।

अमृता प्रीतम के नाटक ‘पिंजर’ में मेरी एक्टिंग को बहुत पसंद किया गया। इस नाटक का मंचन कई जगहों पर हुआ और मैं अपनी एक्टिंग की वजह लोगों के बीच पॉपुलर हुई।

थिएटर की हर विधा को समझने की कोशिश

मैंने थिएटर में एमए हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी, श्रीनगर से किया। थिएटर में एमए बहुत कम कॉलेजों में पढ़ाया जाता है। थियटर में सुविधाएं कुछ ही कॉलेजों में ठीक हैं।

थिएटर में मास्टर्स करने के बाद मुझे एक साल तक श्री राम सेंटर (एसआरसी) में काम करने का अवसर मिला। ये लॉकडाउन का समय था इसलिए सालभर में एक ही नाटक हो सका। उसमें भी मुझे लीड रोल करने का अवसर मिला। फिर मैं दो साल तक बेंगलुरु में रही। बेंगलुरु में मैंने एक स्टार्टअप कंपनी ‘किड्स चौपाल’ के लिए साउथ इंडिया की थिएटर हेड के रूप में काम किया। इस दौरान में बेंगलुरु में ही मैंने 15-20 इंग्लिश प्ले करवाए।

एक्टिंग में धार और गहराई लाने की कोशिश

मुझे काम तो बहुत मिल रहा था, मैंने थिएटर की हर विधा को समझने की पूरी कोशिश भी की, लेकिन मैं खुद पर काम नहीं कर पा रही थी। ये मेरे एक्टिंग करियर के लिए सही नहीं था। मैं दिल्ली आ गई और अपनी एक्टिंग को और गहराई देने के लिए मेहनत करनी शुरू की।

कुछ समय पहले हमने अपने ऐतिहासिक नाटक ‘तीलू रैतेली’ का मंचन किया, जिसमें मैं मुख्य भूमिका में रही। इस नाटक में मार्शल आर्ट को खूबसूरती से शामिल किया गया जिसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया। एक्टिंग के साथ साथ मैंने डायरेक्शन का काम भी शुरू किया और तीन नाटकों-सुल्तान, होली और गिद्ध का निर्देशन किया। अपने थियटर करियर की तरक्की में ये मेरा एक नया कदम था। अब मेरे कदम पॉडकास्ट, ओटीटी प्लेटफॉर्म की तरफ भी बढ़ रहे हैं।

बच्चों को एक्टिंग सिखाना चाहती हूं

उत्तराखंड के आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए मैं एक्टिंग स्कूल खोलना चाहती हूं। एनएसडी की तरह जहां सिर्फ एक्टिंग पर फोकस किया जाए। अच्छा टैलेंट आगे आएगा तो और अच्छा क्रिएटिव काम सबको देखने को मिलेगा। फिलहाल हमारी टीम उत्तराखंड के बच्चों को 21 दिन की फ्री एक्टिंग वर्कशॉप कराती है। लेकिन यह काफी नहीं है। इन बच्चों को एक्टिंग की सही ट्रेनिंग की जरूरत है और मैं इसी दिशा में काम करना चाहती हूं।

प्रज्ञा सिंह रावत ये मानती हैं कि कामयाब होने के लिए मुंबई जाना जरूरी नहीं, अगर आप अच्छे कलाकार हैं तो सफलता आपको ढूंढ ही लेती है

प्रज्ञा सिंह रावत ये मानती हैं कि कामयाब होने के लिए मुंबई जाना जरूरी नहीं, अगर आप अच्छे कलाकार हैं तो सफलता आपको ढूंढ ही लेती है

मैं मुंबई से दूर रहना चाहती हूं

एक्टिंग फील्ड के जुड़े लगभग सभी लोगों को अपनी मंजिल मुंबई में ही नजर आती है। लेकिन मैं मुंबई से दूर रहकर अपना करियर बनाना चाहती हूं। मैं जिस प्रदेश से ताल्लुक रखती हूं वहीं रहकर, वहीं के लोगों के साथ मिलकर काम करना चाहती हूं। मैं यह मानती हूं कि अगर आपका काम सुंदर और सही है तो आप दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहें, आपका काम दूर से नजर आता है और आपको पहचान बनाने में कोई मुश्किल नहीं होती।

कलाकार क्या कुछ कर सकता है

कला एक ऐसा जरिया है जो समाज की बुराइयों और अच्छाइयों दोनों को दिखाता हुआ चलता है। साहित्य की तरह ललित कलाएं भी समाज को आईना दिखाती हैं। जो कलाकार अपनी कला के जरिए उन बुराइयों से लड़ने, जूझने और उनको दूर करने में कामयाब होता है वही एक सच्चा कलाकार होता है।

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