नई दिल्ली4 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
फरवरी में खाद्य महंगाई दर 8.30% से बढ़कर 8.66% पर आ गई है। यानी खाने-पीने की चीजें महंगी हुई है। - Dainik Bhaskar

फरवरी में खाद्य महंगाई दर 8.30% से बढ़कर 8.66% पर आ गई है। यानी खाने-पीने की चीजें महंगी हुई है।

रिटेल महंगाई फरवरी 2024 में मामूली घटकर 5.09 पर आ गई है। इससे पहले जनवरी 2024 में महंगाई 5.10% रही थी। जनवरी में खाने-पीने के सामान की कीमतें बढ़ी है। RBI की महंगाई को लेकर रेंज 2%-6% है। आदर्श स्थिति में RBI चाहेगा कि रिटेल महंगाई 4% पर रहे।

  • खाद्य महंगाई दर 8.30% से बढ़कर 8.66% पर आ गई
  • ग्रामीण महंगाई दर बिना किसी बदलाव के 5.34% रही है
  • शहरी महंगाई दर 4.92% से घटकर 4.78% पर आ गई

महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए यदि महंगाई दर 6% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 94 रुपए होगा। इसलिए महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।

महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वे ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।

इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।

CPI से तय होती है महंगाई
एक ग्राहक के तौर पर आप और हम रिटेल मार्केट से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को दिखाने का काम कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI करता है। हम सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, CPI उसी को मापता है।

कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 300 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।

जनवरी 2024 में IIP ग्रोथ 3.8% दर्ज की गई
वहीं इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन यानी IIP के जनवरी 2024 के आंकड़े भी जारी कर दिए गए हैं। दिसंबर 2023 के IIP ग्रोथ 4.2% के मुकाबले जनवरी 2024 में IIP ग्रोथ 3.8% दर्ज की गई है। महीना दर महीना आधार पर IIP घटी है।

इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) क्या है?
जैसा कि नाम से ही जाहिर है, उद्योगों के उत्पादन के आंकड़े को औद्योगिक उत्पादन कहते हैं। इसमें तीन बड़े सेक्टर शामिल किए जाते हैं। पहला है- मैन्युफैक्चरिंग, यानी उद्योगों में जो बनता है, जैसे गाड़ी, कपड़ा, स्टील, सीमेंट जैसी चीजें।

दूसरा है- खनन, जिससे मिलता है कोयला और खनिज। तीसरा है- यूटिलिटिज यानी जन सामान्य के लिए इस्तेमाल होने वाली चीजें। जैसे- सड़कें, बांध और पुल। ये सब मिलकर जितना भी प्रॉडक्शन करते हैं, उसे औद्योगिक उत्पादन कहते हैं।

इसे नापा कैसे जाता है?
IIP औद्योगिक उत्पादन को नापने की इकाई है- इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन। इसके लिए 2011-12 का आधार वर्ष तय किया गया है। यानी 2011-12 के मुकाबले अभी उद्योगों के उत्पादन में जितनी तेजी या कमी होती है, उसे IIP कहा जाता है।

इस पूरे IIP का 77.63% हिस्सा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आता है। इसके अलावा बिजली, स्टील, रिफाइनरी, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, प्राकृतिक गैस और फर्टिलाइजर- इन आठ बड़े उद्योगों के उत्पादन का सीधा असर IIP पर दिखता है।

खबरें और भी हैं…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here