2 घंटे पहले

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एयरपोर्ट से सीधे अर्जुन के घर की टैक्सी ले ली। हालांकि दिमाग अब भी बार-बार चेता रहा था कि पहले होटल चलो। सामान रखकर ही..पर गुस्ताख दिल को कौन समझाए। वो बार-बार ख्वाब दोहरा रहा था। जूली किसी ट्वाय का नाम होगा..अर्जुन अब भी उससे…बिन मतलब ख्वाब सजाए है अब तक! पर फिर भी निगाहें सिलिकॉन वैली जैसे खूबसूरत शहर की खूबसूरत सड़कों के पार चार साल पहले के अतीत में खोई थीं।

वही भीड़ भरी सड़कें, वही ट्रैफिक जाम, वही ऑफिस पहुंचने की जल्दी। काश! पांच मिनट और पहले उठी होती तो कॉफी पीने का टाइम मिल गया होता तो उस खड़ूस बॉस की शक्ल देखना इतना न खलता। सच, कितनी अच्छी होती है कॉफी जो एक सखी की तरह दिन भर खड़ूस बॉस को झेलने की हिम्मत देती है और मीरा है कि उसके लिए ही टाइम नहीं निकाल पाती है। हफ्ते में एक आध दिन तो ऐसा हो ही जाता है जब…

ये क्या? उफ! भयानक सी आवाज़ सुनकर नीचे देखा तो स्कूटी का फटा हुआ टायर देखकर सिर पीट लिया। हे भगवान! आज, इतने क्रूशियल दिन पर ही, जब प्रमोशन के लिए ज़रूरी प्रज़ेंटेशन देना है, सारे ऐडवेंचर देने हैं मुझे?

पर तभी मीरा को स्ट्रेस मैनेजमेंट की वर्कशॉप याद आई और उसने गहरी सांस लेते हुए मन को शांत किया। इधर-उधर देखा तो देखती क्या है। बाईं ओर कुछ दूरी पर टू-व्हीलर मैकेनिक की शॉप है और दाईं ओर कैफे। मीरा के प्रैक्टिकल मन में गुस्से की लहर दौड़ी ‘ठीक ही कहा गया था उस अवेयरनेस ऑर्टिकिल में। ये मैकेनिक शॉप वाले अपनी दुकान के आसपास कीले बिखेर देते हैं’ पर तुरंत पॉज़िटिव मन ने इस विचार को काटा। क्या पता ये भाग्य द्वारा तेरी कॉफी की तलब पूरी करने के लिए दिया गया अवसर हो। आखिर तेरी नियति को भी पता है कि बिना सुबह की कॉफी के तुम शांत मन से प्रेज़ेंटेशन नहीं दे पाती।

पंचर ठीक होने के लिए देकर मीरा कैफे में आ गई। कुछ मूड कैफे के ऐस्थेटिक सेंस ने और वहां बजते मधुर और धीमे संगीत ने ठीक कर दिया। और रहा सहा कॉफी के प्रेज़ेंटेशन की सुंदरता और स्वाद ने। उसने इस टाइम को यूटिलाइज़ करने के लिए मोबाइल निकाल लिया। एक बार अपना बनाया प्रज़ेंटेशन देख और दोहरा लेने से अच्छा टाइम यूटिलाइज़ेशन तो हो ही नहीं सकता।

पर आज मूड का ठीक होना शायद मीरा के भाग्य में नहीं था। तभी उसकी मेज के पास से गुज़रता एक लड़का जाने कैसे लड़खड़ाया कि ठीक उसकी कॉफी पर गिर पड़ा। मीरा अचकचाकर फुर्ती से उठी पर तब तक मग टूट चुका था और कॉफी बिखर चुकी थी।

मीरा के गुस्से की इंतेहा नहीं थी। उसके गाल लाल हो गए। भंगिमा ऐसी बन गई जैसे उस लड़के को मार ही डालेगी पर उसकी सूरत देखकर एक पल को मन ठहर गया। बस उसी पल में कमान उस लड़के ने अपने हाथ में ले ली। “सॉरी, सॉरी, सॉरी, सॉरी, सॉरी, सॉरी..आई ऐम एक्स्ट्रिमली सॉरी..रियली सॉरी..” मीरा को हंसी आ गई। उसका अंदाज़ ही ऐसा था। “अब बस भी कीजिए इट्स ऑल राइट्स..ब क्या सॉरी पर उपन्यास लिखेंगे?” मीरा के चेहरे पर नकली गुस्सा था। उसे तो जैसे बात शुरू करने की लिफ्ट मिल गई। “मैं इसका तो पेमेंट करूंगा ही, आपके लिए दूसरी कॉफी भी मंगा देता हूं।” पर मीरा ने घड़ी देखी। पंचर बनने के लिए दिया समय पूरा होने को थी। जब तक वहां पहुंचेगी.. “जी, आप अपनी गिराई कॉफी का पेमेंट कर दें इतना ही बहुत है। मेरे पास समय नहीं है।” थोड़े गुस्से में ये बोलते हुए मीरा कैफे से निकल आई।

शाम को ऑफिस से निकली तो उस लड़के को सामने खड़ा पाया। फिर एक बार उसने चेहरे पर आए गुस्से को टिकने नहीं दिया – “जी, वो आपको कॉफी पिलाए बिना मेरी सॉरी अधूरी है। क्या आप मेरे साथ कॉफी पीने चलेंगी प्लीज़?” आज ऑफिस में मूड इतना ऑफ हो गया था कि मीरा को लग ही रहा था कि काश! एक अच्छा सा कैफे हो, सुपर-डुपर कॉफी और स्नैक्स हों और कोई हो जिसके साथ अपनी भड़ास शेयर कर सके। लड़के की आंखों में सच्चाई दिखी। लगा नहीं कि फ्लर्ट करने का बहाना ढूंढ़ रहा है। उसने हां में सिर हिला दिया।

“जी, मेरा नाम अर्जुन है और आपका?” कॉफी ऑर्डर करने के बाद उस लड़के ने सभ्य प्रश्न किया। पर मीरा का मन आज न जाने क्यों केवल भड़ास निकालने का हो रहा था – “क्यों? कॉफी पिलाकर आप अपनी सॉरी पूरी कीजिए। नाम जानने की क्या ज़रूरत है?” वो इतराती हुई बोली। “ज़रूरत कैसे नहीं है? अब देखिए मेरी वजह से ऑफ हुआ आपका मूड अभी तक ठीक नहीं हुआ है। आप नाम नहीं बताएंगी तो बात आगे कैसे बढ़ेगी और बात आगे नहीं बढ़ेगी तो आपका मूड ठीक कैसे होगा?” मीरा को उसका अंदाज़ भा गया और बात शुरू हो गई। “मूड आपकी वजह से नहीं ऑफ है। ऐसे सुबह की घटना पर शाम तक मूड ऑफ रखूंगी तो जी चुकी इस शहर में..ऐसी बॉस के साथ..” मीरा शुरू हुई तो बोलती गई।

घर लौटकर फिर वही रुटीन। अगले दिन की तैयारी, लैंड-लेडी के उबाऊ चुटकुले और रूम पार्टनर की बकवास किटकिट सुनने की मजबूरी।

बिस्तर में लेटकर आंखें मूंदी तो उसका चेहरा पलकों में तैर गया। क्या नाम बताया था? हां अर्जुन! सुनने को आतुर सा..समझने को उत्सुक सा..शांत और गंभीर..मीरा ने करवट बदली। उससे नंबर भी नहीं लिया। क्यों इतनी इंट्रोवर्ड होती जा रही है वो! नहीं इंट्रोवर्द नहीं सतर्क। हां, उसे अपने करियर को अपने सपनों की ऊंचाई तक ले जाना है तो अब प्यार के चक्कर में नहीं पड़ना..बिल्कुल नहीं। पर ये शब्द क्यों आया मन में? क्यों लग रहा है कि वो फ्लर्ट कर रहा था और लिफ्ट देने पर आगे बढ़ने लगेगा और वैसा ही निकलेगा जैसा रजत..नहीं मीरा ‘पूर्वाग्रह नहीं..पूर्वाग्रह नहीं…’ स्टेस मैनेजमेंट की वर्कशॉप से निकलकर ये दो शब्दों का वाक्य चिल्लाया। हो सकता है उसे भी मेरी तरह एक दोस्त की तलाश हो जिसके साथ अपने संघर्ष बांट सके। जिसके साथ समस्याएं साझा कर सके और समाधान डिस्कस कर सके।

अगले दिन समय होते हुए भी कॉफी नहीं पी। ‘उसी कैफे में पी लूंगी’ सोचकर मीरा निकल गई। कितनी टेस्टी कॉफी थी। लगता है वो उस कैफे में आता रहता है। इसीलिए उस कॉफी के बारे में पता होगा।

“कल इसी समय मैं आई थी। क्या आपको याद है मैंने कौन सी कॉफी पी थी?” वेटर के चेहरे पर असमंजस के भाव आ गए। “जी, हमारे यहां की सभी कॉफी अच्छी हैं। आप…” “दो सिटी कैपेचीनो” दोनों ने आवाज़ की दिशा में देखा तो मीरा का चेहरा खिल उठा। अर्जुन मुस्कुराता हुआ उसके सामने खड़ा था।

“मैं नया एंटरप्रेन्योर हूं। अपने स्टार्ट-अप के लिए इन्वेस्टमेंट जुटाने में लगा हूं। शहर की तकलीफें जितना सताती हैं, रोज़ नए खुलते अवसर उतनी ही उम्मीद जगाते हैं।” “ठीक कहते हैं आप। ये शहर एक बहती नदी की तरह है। लगता है जिसमें नाव खेने में हर पल नया स्ट्रगल है तो ऐडवेंचर भी। और हर कुछ दिन पर धारा के साथ दूर तक का सफर तय कर लेनी की खुशी भी” “अरे वाह! आप कवयित्री हैं क्या?” “नहीं ग्राफिक डिज़ाइनर हूं। अपने करियर को बुलंदियों तक पहुंचाने में लगी हूं।” बातों में खनक थी और चेहरों पर चमक। दिन पंख लगाकर उड़ चले। रूमानी तो उन्हें होना ही था।

बारिश की एक शाम। दोनों कैफे में बैठे हैं। पर आज माहौल शांत..नहीं दुखी है। “हां मीरा, मुझे जाना ही होगा। सिलिकॉन वैली से एक नया इन्वेस्टमेंट मिला है, जिसके कारण मुझे अमेरिका जाना पड़ेगा। जिसके लिए इतना स्ट्रगल किया है, वो छोड़ नहीं सकता।” मीरा की पलकों में मोती उभर आए। कुछ देर अर्जुन उसे एकटक देखता रहा “कहना तो वैसे भी था पर अब तो बिल्कुल ज़रूरी हो गया है। मीरा तुम मेरे साथ..” “नहीं अर्जुन, मैं अपने करियर के उस मोड़ पर हूं जहां पहुंचने के लिए मैंने भी बहुत स्ट्रगल किया है। मैं भी ये छोड़ नहीं सकती।” “पर तुम्हारा लास्ट टार्गेट तो फ्रीलांसर..” “हां पर टॉप फ्रीलांसर बनने के लिए सफर अभी लंबा है।”

एयरपोर्ट पर हाथ हिलाते हुए अर्जुन का जो चेहरा देखा था, वो अब तक निगाहों में है। उसकी आंखों में…

दरवाज़ा खुला और अर्जुन का वही चेहरा सामने था। आंखों में प्यार की वही गहराई..चेहरे पर प्यार की मनुहार और होंठों पर प्यार का विश्वास भरी मुस्कान। बस उस समय विरह की वेदना के रंग की जगह आज आश्चर्यजनक खुशी से ले ली थी। दोनों बड़ी देर एक-दूसरे की आंखों में एकटक निहारते रहे फिर एक-दूसरे की बांहों में समा गए। चुंबनों की बारिश और स्पर्श के निश्छल आश्वासन में बहुत देर बाद किसी प्यारी सी भौंकने की आवाज़ की ओर ध्यान गया। “अरे अंदर आओ, इसे बता तो दूं कि तुम हो नहीं तो चिल्लाकर जान दे देगी मेरी सुख-दुख की साथी।” “बिल्कुल डेकोरेटिव खिलौने सी सुंदर डॉगी को देख मीरा गुस्साई – “इसे वीडियो कॉल पर क्यों नहीं दिखाया कभी?” “सच्ची बताओ, अगर दिखा देता तो फ्रीलंसर रजिस्ट्रेशन के साथ रिजिग्नेशन देने वाले ही दिन इतनी हड़बड़ी में तुम आती यहां? सच तुम्हारे बिना अब एक पल भी रहना मुश्किल हो गया था।”

-भावना प्रकाश

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