3 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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बुरा वक्त झेलना मुश्किल जरूर होता है, लेकिन ये वो वक्त होता है जब हमें अपने भीतर छिपी प्रतिभा, क्षमता और साहस के बारे में पता चलता है।

बुरे वक्त ने इस महिला को सफल बिजनेस वुमन बनना सिखाया। पति का घर छोड़ जिंदगी में हार मान चुकी, डिप्रेशन की शिकार इस महिला ने जब अपने बच्चों की खातिर जीने का फैसला किया, तो उसकी ताकत, हौसला और जुनून कई गुना बढ़ गया।

छह लाख रुपए से शुरू किया हुआ उसका बिजनेस आज चार करोड़ रुपए के टर्नओवर में बदल चुका है। ‘ये मैं हूं’ में जानिए बिजनेस वुमन भारती सुमरिया के संघर्ष की कहानी…

दसवीं के बाद नहीं पढ़ सकी

मेरा जन्म मुंबई के भिवंडी इलाके में हुआ। कुछ सालों बाद हम मुलुंड रहने चले गए। आम मध्यम वर्गीय परिवारों की तरह हमारा परिवार भी आजाद खयाल नहीं रहा है। हमारे परिवार में भी लड़कियों के लिए तमाम पाबंदियां थीं। मैं दसवीं क्लास तक ही पढ़ाई कर पाई। तब ये मानसिकता हुआ करती थी कि शादी के बाद चूल्हा-चौका ही तो करना है, लड़की को ज्यादा पढ़ाने का क्या फायदा। मेरी दुनिया तब अपने परिवार तक ही सीमित थी इसलिए मेरे मन में भी कुछ करने की ख्वाहिश नहीं थी। मैं अपनी दुनिया में खुश थी।

हां, जब भी किसी कामयाब महिला को देखती या ऐसी महिलाओं के बारे में सुनती या पढ़ती, तो मेरे मन में भी ये ख्याल आता कि मैं भी कोई बड़ा काम कर सकती हूं। लेकिन तब अपने मन की बात परिवार वालों को बताने की हिम्मत नहीं होती। फिर ये भी सोचने लगती कि मेरे में ऐसा टैलेंट कहां है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बात करती हुई बिजनेस वुमन भारती सुमरिया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बात करती हुई बिजनेस वुमन भारती सुमरिया

शादी के बाद जिंदगी बदल गई

उस समय लड़कियों की शादी जल्दी कर दी जाती थी। मेरी शादी भी माता-पिता की मर्जी से 20 साल की उम्र में कर दी गई। मैंने उनकी बात का पालन किया और ससुराल की जिम्मेदारियां निभाने में खुद को बिजी कर दिया। सास-ससुर, पति और ननद अब यही मेरी दुनिया थे।

मेरे पति कोई काम नहीं करते थे, जिसका असर मुझ पर पड़ने लगा। मैं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। पति अपना गुस्सा और खीझ मुझ पर उतारने लगे। जब उनका हाथ उठने लगा तो मेरे लिए ससुराल में रहना मुश्किल हो गया।

डिप्रेशन का शिकार हुई

मेरी हालत देखकर मां मुझे मायके ले आई। मैं ससुराल से मायके तो आ गई, लेकिन उस समय मैं खुद को बहुत असहाय महसूस कर रही थी। मेरी जीने की इच्छा ही खत्म हो गई थी। मैं डिप्रेशन का शिकार हो गई। उस दौरान मैं घंटों चुपचाप बैठी रहती, मुझे क्या करना है ये समझ नहीं आ रहा था। बच्चों के भविष्य का क्या होगा, मुझे इसकी भी सुध नहीं थी।

20 साल तक शॉपिंग नहीं की

शादी के बाद हमें पता चला कि ससुराल वालों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। ससुर जी काम करते थे, लेकिन पति काम ही नहीं करते थे। बच्चों का खर्च भी ससुर जी ही उठाते थे। मैंने 20 साल तक अपने लिए कोई शॉपिंग नहीं की। मैं बहुत शौकीन नहीं थी इसलिए मुझे बहुत ज्यादा बुरा भी नहीं लगता था। मेरी बहन मुझे अपने कपड़े देती थी और मैं उन्हें खुशी खुशी पहन लेती थी।

बिजनेस के गुण पापा से मिले

शादी के बाद पापा मुझे दिवाली, बर्थडे पर पैसे देते थे। वो सारे पैसे घर पर ही खर्च हो जाते थे। फिर मैंने पापा से कहा कि वो पैसे मुझे देने के बजाय जमा कर दीजिए, बाद में काम आ जाएंगे। पापा ने मेरे लिए जो पैसे जमा किए वो बढ़कर छह लाख हो गए थे।

2005 में उन छह लाख रुपए से मैंने अपना बिजनेस शुरू किया। फैक्ट्री में टूथब्रश, टिफिन बॉक्स, वॉटर बॉटल जैसी जरूरत की छोटी-छोटी चीजें बनाने का काम शुरू किया। अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए मैंने दिन-रात मेहनत की। जल्द ही हमें सिप्ला, बिसलेरी जैसे बड़े ब्रांड से ऑर्डर मिलने लगे। इसी की नतीजा है कि आज हमारे बिजनेस का टर्नओवर 4 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।

मैंने 300 फीट एरिया किराए पर लेकर अपनी फैक्ट्री शुरू की और आज मेरी फैक्ट्री एक लाख बीस हजार फीट एरिया में फैल चुकी है। मेरे बिजनेस के सफर में बच्चों का बहुत बड़ा योगदान है। मैंने बच्चों के लिए काम करना शुरू किया और अब बच्चे ही मेरी ताकत बन गए हैं।

डर को ताकत बनाया

मैं कभी काम के लिए घर से बाहर नहीं निकली, लेकिन हालात ऐसे बने कि मेरे पास काम करने के अलावा और कोई चारा भी नहीं था। मैं अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देना चाहती थी इसलिए मैंने दिन रात मेहनत करना शुरू कर दिया।

बुरा वक्त अवसर लेकर आता है

बुरे वक्त ने मुझे खुद मुझसे मिलवाया। मुझे मेरी काबिलियत को जानने का मौका दिया। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो हैरानी होती है कि इतना सब कुछ मैंने कैसे कर लिया। मैं जितना सहन करती गई, तकलीफें उतनी ज्यादा बढ़ती चली गईं।

मेरा ईश्वर में बहुत विश्वास है। मैं ये मानती हूं कि ईश्वर ने मुझे मेरी ताकत का एहसास कराया और मैं सफलता की राह पर आगे बढ़ती चली गई। मेरे पति का गुस्सा, लड़ना-झगड़ना मेरे आगे बढ़ने का निमित्त बना, जिसकी वजह से मैं इतना कुछ कर सकी।

महिलाओं को सपोर्ट मिलना चाहिए

महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या ये है कि जब वो तकलीफ में होती हैं तो कोई उनका साथ नहीं देता। न उन्हें मायका अपना लगता है और न ही ससुराल। जब माता-पिता से भी सपोर्ट नहीं मिलता तो कई महिलाएं आत्महत्या जैसा कदम उठा लेती हैं। लड़कियों को सपोर्ट मिले तो कितनी लड़कियां जान गंवाने से बच सकती हैं।

मैं इस मामले में लकी रही। मेरे माता-पिता ने जब मेरी हालत देखी तो उन्होंने मुझे अपना बिजनेस शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे पापा ने 3 क्लास तक ही पढ़ाई की। पापा जामनगर से आकर मुंबई में बस गए। यहां उन्होंने टेक्सटाइल का बिजनेस शुरू किया। मां ने घर और हम चारों भाई-बहन की देखभाल की जिम्मेदारी उठाई। लेकिन मां घर संभालने के साथ-साथ हमेशा लोगों से जुड़ी रहीं। अभी भी मां लोगों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।

बिजनेस वुमन भारती सुमरिया अपने परिवार के साथ

बिजनेस वुमन भारती सुमरिया अपने परिवार के साथ

बच्चे मेरी दुनिया हैं

एक बीवी के रूप में भले ही मैं स्ट्रॉन्ग नहीं हो पाई, लेकिन बच्चों की खातिर मैंने खुद को इतना मजबूत बना दिया कि मैं किसी भी हालत में थकने-हारने के लिए तैयार नहीं थी। सब लोग हैरान थे कि मैं वही भारती हूं जिसने जीने की इच्छा तक खो दी थी। मेरे दिमाग में बस एक ही बात रहती कि मुझे अपने बच्चों के अच्छे भविष्य की खातिर काम करना ही होगा।

जब मैंने अपना काम शुरू किया तो बच्चों ने मेरा पूरा साथ दिया। तब मेरी बेटी आठवीं क्लास में थी और दोनों बेटे पांचवीं कक्षा में थे। बेटी अपनी पढ़ाई भी करती और भाइयों का ध्यान भी रखती। मुझे घर पहुंचने में देर होती तो वह खुद खाना बनाकर भाइयों को खिलाती और उन्हें सुला भी देती।

बच्चों को पिता से दूर नहीं किया

मैंने कभी बच्चों को उनके पिता या परिवार से दूर नहीं किया। ससुराल में रहकर ही अपना बिजनेस आगे बढ़ाया। मेरा ये मानना है कि बच्चों को माता-पिता दोनों का प्यार मिलना चाहिए। पति-पत्नी के झगड़े में बच्चों का नुकसान नहीं होना चाहिए।

शादी के 25 साल बाद बच्चों ने तय किया कि अब उन्हें अपने पैतृक घर में नहीं रहना। उसके बाद हम वहां से अपने अलग घर में शिफ्ट हो गए। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरे संघर्ष ने मेरे बच्चों को भी स्ट्रॉन्ग बनाया।

बिजनेस वुमन भारती सुमरिया लाखों महिलाओं की प्रेरणा बन गई हैं

बिजनेस वुमन भारती सुमरिया लाखों महिलाओं की प्रेरणा बन गई हैं

अब मैं जीने लगी हूं

20 सालों से मैं अपना बिजनेस कर रही हूं, लेकिन पिछले चार सालों से मैंने लोगों से मिलना जुलना, घूमना-फिरना शुरू किया। उससे पहले मेरी जिंदगी घर और फैक्ट्री तक ही सिमट कर रह गई थी। मैं दिन-रात काम करती रही।

लोगों के लाडले बच्चे हैं, लेकिन मैं अपने बच्चों की लाडली मां हूं। मेरे बच्चे मुझे इतना प्यार करते हैं कि अब मुझे पुरानी बातें और अपना संघर्ष याद नहीं आता।

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