नई दिल्ली6 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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खूबसूरती क्या है? कम उम्र, पतली कमर, गोरा रंग, मोटी आंखें, लंबे घने बाल या हमेशा फ्रेश लगता चेहरा…इन्हीं पैमानों से आप भी एक औरत की खूबसूरती को मापते होंगे क्योंकि आज के पढ़े-लिखे समाज में स्त्री के इसी रूप को सुंदर माना जाता है। ये सभी पैमाने औरत की उम्र से बने रहने वाली खूबसूरती से जुड़े हैं।

क्या झुर्रियां निकले के बाद महिला महिला नहीं रहती?

महिला 16 साल की हो या 60 साल की, औरत-औरत ही रहेगी। वो उम्र के हर रूप में सुंदर है चाहे वह बेटी हो, मां हो या पत्नी।

ढलती उम्र से स्त्री नहीं डरती, लेकिन समाज और सोशल मीडिया उसे डराता है और उसकी उम्र को रोज नापता है।

मेंटल हेल्थ को खराब करता बढ़ती उम्र का भूत

बॉलीवुड एक्ट्रेस समीरा रेड्डी ने एक इंटरव्यू में इस बारे में बेबाकी से बताया कि उन्होंने शोबिज में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए खुद को ‘सरटेन साइज’ यानी ब्यूटी बाजार, सोशल मीडिया और मर्दाना नजर के खांचे में फिट आने के लिए उनके ही बनाए कई बेतुके तरीके अपनाए। कभी उन्होंने खाने पीने पर पहरे लगाए, कभी हद से ज्यादा वर्कआउट किया जिससे उनकी मेंटल हेल्थ तक डगमगा गई।

वह कहती हैं कि बेबी होने के बाद जब उन्होंने सोशल मीडिया पर स्ट्रेच मार्क्स, ग्रे हेयर और हॉर्मोनल इम्बैलेंस की बात की तो लोगों ने उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई।

समीरा रेड्‌डी का यह बयान साफ बताता है कि हर जगह महिला की खूबसूरती को उसकी उम्र से नापा जाता है इसलिए शोबिज इंडस्ट्री में कम उम्र को अहमियत दी जाती है। शोबिज इंडस्ट्री ही नहीं, समाज भी औरत को ‘आइटम’ या ‘माल’ की नजर से क्यों देखता है?

पॉपुलर अमेरिकन एक्ट्रेस जेन फॉन्डा ने एक इंटरव्यू में इस बात को माना कि वह इतनी हिम्मतवाली नहीं थीं कि अपनी बढ़ती उम्र काे स्वीकार कर सकें। इसलिए उन्होंने प्लास्टिक सर्जरी का सहारा लिया।

तरक्की और एक अलग मुकाम पर पहुंची औरत भी यंग लुक्स तलाशती है और ढलती उम्र से घबराती है। यहां उसकी गलती नहीं, समाज उसे उसकी बढ़ती उम्र को लेकर डराता है, क्यों?

सिल्वर सुनामी से डरती दुनिया!

फ्रेंच एक्ट्रेस लेरॉय (Leroy-Beaulieu) ने एक बार कहा था कि “इस दुनिया में महिलाओं की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उन्हें डिस्पोजेबल सामान के रूप में देखा जाने लगता है।” महिला की ढलती उम्र एक तरह की ‘सिल्वर सुनामी’ है क्योंकि इस उम्र में वह दुनिया की उसके प्रति बदलती नजरों के साथ ही चेहरे पर पड़ती झुर्रियों, सफेद बालों और अपने शरीर में हो रहे बदलावों से लड़ती है और गुस्सैल होकर चिड़चिड़ी होने लगती है।

गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. माला पाठक के अनुसार ‘जब स्त्री के पीरियड्स बंद होने लगते हैं तो यह एक असुविधाजनक स्थिति होती है। इसके लिए वह शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार नहीं होती। लेकिन वह जानती भी है कि एक दिन ऐसा तो होना ही है।’

मेनोपॉज की स्टेज में पहुंचने पर एक स्त्री का शरीर कैसा अनुभव करेगा और वह खुद कैसा महसूस करेगी, इसका उसे खुद अंदाजा नहीं होता।

वहीं जब औरत की झुर्रियों को देख हमारा समाज उसे असमर्थ करार कर देता है तो उथल-पुथल मचाते हार्मोन्स की वजह से वह खुद से नाराज हो बैठती है। दरअसल समाज औरत के शरीर को पीरियड्स, पुरुष की जरूरत और बच्चा पैदा करने से ही जोड़कर देखता है।

समाज बढ़ती उम्र की महिलाओं को गायब कर देता है

‘द डबल स्टैंर्डड ऑफ एजिंग’ किताब की लेखिका सुजैन सॉन्टैग (Susan Sontag) का कहना है, बढ़ती उम्र कल्पना की अग्नि परीक्षा है, यह एक नैतिक बीमारी और सामाजिक विकृति है, जो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को कहीं ज्यादा प्रभावित करती है।

वहीं, ‘लेसन इन केमिस्ट्री’ की अमेरिकन लेखिका बोन्नी गर्मस (Bonnie Garmus) अपनी जिंदगी के अनुभवों के आधार पर कहती हैं कि यह दुनिया पुरुषों की है। यहां महिला के अनुभवों नहीं, उसकी उम्र की गिनती की जाती है और जब वह करियर का लंबा अनुभव रखने के बाद 50 के पार पहुंचती है तो वह पागल कहलाती हैं जबकि उसी उम्र का कोई पुरुष हो तो उसे अनुभवी और अक्लमंद कहा जाता है।

समाज खुद बढ़ती उम्र की महिला को ठप मानकर उसे उसकी पहचान से ही दूर करने लगता है।

प्रीमैच्योर एजिंग की बढ़ी दिक्कत

डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. शिखा खरे कहती हैं कि आजकल प्रीमैच्योर एजिंग होने लगी है। उम्र को काबू में रखने की कोशिश की जा रही है। लेकिन उम्र रोकी नहीं जा सकती। बढ़ती उम्र के डर से महिलाएं एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट जल्दी लेना शुरू कर देती हैं। आज एंटी एजिंग का मार्केट बड़ा बन चुका है।

उम्र को काबू में करने का कोई परमानेंट उपाय नहीं है। लेकिन अच्छी डाइट, एक्सरसाइज, सनस्क्रीन का इस्तेमाल और बॉडी हाइड्रेटेड रखने से बढ़ती उम्र को संभाला जा सकता है।

विज्ञापन और सोशल मीडिया बढ़ती उम्र के दुश्मन

फिल्मों की हीरोइन हो, टीवी के विज्ञापन या फिर सोशल मीडिया की पोस्ट, हर प्लेटफॉर्म पर कम उम्र की लड़कियां दिख जाएंगी। इन सब में बढ़ती उम्र की महिलाएं कहां हैं? क्या वह दिखाई नहीं देती हैं? तो इसका जवाब है कि हम जिस जमाने में रह रहे हैं, उसे ‘जवां उम्र के भूत’ ने जकड़ा हुआ है। 21वीं सदी में समाज उम्र के फोबिया (age-phobic) में डूबा हुआ है।

हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स में सेंट लॉरेंस शो पर आर्टिकल छपा जिसमें कम उम्र की मॉडल्स अपनी ब्रेस्ट का प्रदर्शन कर रही थीं। फैशन इंडस्ट्री तो यंग बॉडी के दम पर ही चलती है।

53 साल की फैशन मॉडल, एक्टिविस्ट और बिजनेसवुमन गीता जे ने 50 साल की उम्र में मॉडलिंग शुरू की। उन्होंने उम्र की वजह से कई ब्रैंड्स का रिजेक्शन झेला। इसके बाद उन्होंने ‘ऐज नॉट केज’ नाम से कैंपेन शुरू किया।

वह कहती हैं कि चूंकि मैं 50 साल की थी, इसलिए मुझे कई बार उम्र को लेकर भेदभाव झेलना पड़ा। जब मेरे पास कोई प्रोजेक्ट आता तो वह मेरी उम्र पूछते और कहते कि हम आपकी ऐज वाली मॉडल को मॉडर्न ड्रेस पहनाकर विज्ञापन नहीं बना सकते। मॉडलिंग में बढ़ती उम्र एक बहुत बड़ा मुद्दा है।

वह कहती हैं- मैंने सोशल मीडिया पर ‘थाई हाई स्लिट’ की ड्रेस पहनकर फोटो पोस्ट की जिसपर मुझे कमेंट मिला- ‘आपकी उम्र पर ये सूट नहीं करता’। लोग महिला की काबिलियत को नहीं उसकी उम्र को ही देखते हैं।

बाजार ने महिलाओं को उम्र के जाल में लपेटा!

बाजार ने महिला की उम्र को कारोबार की बढ़ोतरी के लिए औरत को टारगेट किया है और औरत को अपनी उम्र छिपाने के लिए कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स ऑफर भी किए हैं। बाजार कहता है कि स्त्री को ब्यूटी वर्ल्ड की चीजों के जाल में लपेटो और बेचो। लोग औरत की बढ़ती को लेकर बातें बनाते हैं, ट्रोल दौड़ लगाते हैं और महिलाएं बैठकर सुबकती हैं।

ये तो होना ही था। इसे अपनी कमजोरी नहीं, अपनी सारी उम्र कमाई क्षमताओं और अनुभवों से मिली विरासत, पहचान और ताकत समझें।

बहुत कुछ सीखने के बाद स्त्री यहां तक पहुंचती है और बहुत कुछ हासिल कर फैशन फ्री बनकर अपना फैशन कंफर्ट खुद चुनती है। बहुत मेहनत करने के बाद उम्र इस मुकाम पहुंचाती है।

इन गुजरे सालों पर नजर दौड़ाएं, क्या सीखा, उसे शेयर करें, ना की उम्र के गुजरने पर मातम करें।

‘एंटी एंजिंग’ शब्द का विरोध

2017 में ब्यूटी मैगजीन Attract ने एंटी एजिंग शब्द को ना लिखना का फैसला किया। मैगजीन का मानना था कि भाषा और हर शब्द मायने रखता है। इससे बढ़ती उम्र के साथ भेदभाव कम होगा क्योंकि एजिंग को लेकर समाज में कई तरह भ्रम है और एक छुआछूत जैसा बर्ताव है।

वहीं मशहूर ‘ब्रांड द बॉडी शेप’ ने एंटी एजिंग प्रोडक्ट्स की दोबारा ब्रांडिंग की और उसमें एंटी एजिंग शब्द के बजाय ‘सेल्फ लव’ लिखा।

औरत हैं तो पीरियड्स भी आएंगे और मेनोपॉज भी होगा। औरत के चेहरे पर उभरी हर झुर्री एक अनुभव की कहानी कहती है। औरत में कमी तलाशने से बेहतर है कि उसका सम्मान करें। उसे उसकी ब्यूटी से नहीं, टैलेंट से पहचानें। औरत कभी किसी स्केल पर नहीं नापी जा सकती।

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