नई दिल्ली6 मिनट पहले

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गांव से बाहर की दुनिया देखी नहीं थी, शहर के रंग-ढंग क्या होते हैं, कैसे बातचीत की जाती है, हम जिस व्यवस्था में रहते हैं वो काम कैसे करता है, कलेक्टर कौन है, उसका क्या काम होता है, कोर्ट-कचहरी में काम कैसे चलते हैं, इस सिस्टम को तभी समझ पाई जब खुद कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

जैसे-जैसे मुसीबतों के पहाड़ टूटते गए, मेरे मन से डर भी किसी गुबार की तरह उड़ता चला गया और गरीबी में पली-बढ़ी यह लड़की कैसे वकील बन गई।

दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में मैं आज हेमलता प्रधान अपने संघर्ष की कहानी आप सबको सुनाती हूं।

जोहार!

छठी क्लास में जाकर ए, बी, सी, डी लिखना सीखा

मेरा जन्म छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के सरिया गांव में हुआ। हम दो बहनें और दो भाई गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़े। गांव के बाहर की दुनिया कभी नहीं देखी। अंग्रेजी स्कूल कैसे होते हैं और वहां पढ़ाई कैसे होती है, ये नहीं जानती थी।

मेरे गांव के सरकारी स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाने वाले टीचर नहीं थे। जब छठी क्लास में पहुंची तो ए,बी, सी, डी लिखना-पढ़ना सीखा।

पिता गरीब किसान, खेती-मजदूरी करते। जो पैसे कमाते उससे ही घर चलता। 1995 में पिता ने कुछ जमीन खरीदी जो पूरी तरह बंजर थी। इस जमीन पर पूरा परिवार मिलकर काम करता।

जमीन उपजाऊ बनी तो फसल लहलहाने लगी। उसके चारों ओर पौधे लगाए।

जमीन छोड़ने का नोटिस मिला, 85 घर प्रशासन ने तोड़ दिए

सारंगगढ़ में रानू साहू एसडीएम बनकर आईं। सरिया में जहां हमलोग रहते थे, वहां हम जैसे परिवार पिछले 15-20 सालों से रह रहे थे। ज्यादातर गरीब तबके के लोग जिनके पास बमुश्किल से खाने-पीने के पैसे हो पाते।

एसडीएम ने नोटिस भेजा कि यह जंगल की जमीन है, सड़क चौड़ीकरण करनी है, कब्जा हटाएं।

कब्जा हटाने के लिए लोगों को डराया, धमकाया जाता। 14 ‌फरवरी 2013 को जेसीबी लगाकर 85 घर तोड़ दिए गए। तब कई बच्चों की 10वीं की परीक्षाएं छूट गईं। कई प्रेग्नेंट महिलाएं थीं, लेकिन प्रशासन ने रहम नहीं किया।

खेतों में लगीं फसलों को भी रौंद दिया गया। विरोध करने पर लाठीचार्ज हुआ। जिनका घर तोड़ा गया, उनके लिए पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं थी।

न कोई शेल्टर, न बिजली, न पानी।

हेमलता के गांव में इस तरह बुलडोजर से घर तोड़ दिया गया।

हेमलता के गांव में इस तरह बुलडोजर से घर तोड़ दिया गया।

एसडीएम ने पिता को 3-4 थप्पड़ लगा दिए, जमकर बवाल हुआ

बिजली-पानी, पुनर्वास को लेकर जब रैली निकाली गई तो एसडीएम आगबबूला हो गईं। एसडीएम मेरे घर के बाहर आईं और पिता का नाम लेकर बुलाया। पिता हाथ जोड़ बाहर निकले।

एसडीएम ने बिना कुछ कहे, पिता को 3-4 थप्पड़ जड़ दिए। कहा कि इसके खिलाफ शिकायत है, फर्जी पट्‌टा बनवाते हो।

तब थाने में हम सबने लिखित शिकायत की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

गांव के लोगों का गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने अधिकारी की गाड़ी के टायर की हवा निकाल दी। गाली-गलौज और धक्का-मुक्की की। हालांकि मेरे परिवार का कोई सदस्य इसमें शामिल नहीं था।

पूरे परिवार को जेल भेज दिया गया, घर पर बुलडोजर चला

इस घटना के अगले दिन पुलिस वाले आए और मां-पिता सहित परिवार के सभी लोगों को गाड़ी में बिठा थाने ले गए।

हमारे खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी। मोहल्ले की 3-4 महिलाओं के साथ हम सभी को जेल भेज दिया गया। छोटा भाई नाबालिग था तो उसे अंबिकापुर जुवेनाइल होम्स में डाल दिया।

चार दिन बाद हमें बेल मिली। जब हम घर पहुंचे तो पता चला कि पूरे घर को बुलडोजर से गिरा दिया गया। घर के अहाते में जो मवेशी थे, उनका भी अता-पता नहीं मिला।

घर में जो थोड़ा-बहुत जेवर था वो मलबे ही दब गया। उसका कुछ पता नहीं चला। तन पर जो कपड़े थे, वही बचे हुए थे। घर खाली था।

न अनाज, न बर्तन। मेरी किताबें भी मिट्‌टी में दब गईं। किसी तरह रिश्तेदारों के यहां गुजारा किया। लेकिन प्रशासन का जुल्म यहीं नहीं थमा।

एक और केस बनाकर मेरे पिता को जेल में डाल दिया गया। इस तरह कई परेशानियां आती रहीं।

लोगों की समस्याओं की जानकारी लेती हेमलता।

लोगों की समस्याओं की जानकारी लेती हेमलता।

25 लोगों को वृद्धा पेंशन दिलवाना जीवन की पहली उपलब्धि

जब घर में जब यह सब कुछ चल रहा था तब कुछ सामाजिक संगठन आए। उन्होंने मेरे पिता को कहा कि आप अपने किसी बच्चे को भेजें, हम उन्हें कानून की जानकारी देंगे। पापा ने तब मेरा नाम लिया।

मैं संगठन से जुड़कर कानून की बारिकियां सीखने लगी। कानून की पत्रिकाएं पढ़तीं।

कुछ महीनों में मेरी समझ बढ़ी। इसी बीच पता चला कि कुछ लोगों को आवेदन देने के बाद भी वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिल रही है।

10 महीने पहले वृद्धावस्था पेंशन पास हुई लेकिन 25 लोगों को अब तक पैसा नहीं मिल रहा था। तब मैं खुद कलेक्टर के सामने खड़ी हो गई।

आवेदन दिया और मामले की जानकारी दी। डीएम के आदेश पर सीओ ने जांच की और 25 लोगों को 10 महीने का पैसा एक बार में ही मिल गया। यह मेरे जीवन की पहली उपलब्धि रही।

पैरा लीगल से शुरुआत की, अपने कमाए पैसों से वकालत की

संगठन ने मुझे पैरा लीगल के रूप में रखा। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जुड़ी वकील मुझे ट्रेनिंग देते। आईपीसी, सीआरपीसी के बारे में बताते। तब तक मेरा डबल एमए हो चुका था।

पैरा लीगल के रूप में काम करते हुए कुछ पैसे भी मिल जाते। 2016 में मैंने रायगढ़ में लॉ में एडमिशन ले लिया। अपने कमाए पैसों से मैंने वकालत की पढ़ाई पूरी की।

वकालत के बाद मुझे बार काउंसिल का लाइसेंस लेने में परेशानी का सामना करना पड़ा।

काउंसलर ने कहा कि आपके खिलाफ आपराधिक मामला चल रहा है इसलिए नामांकन नंबर नहीं मिल सकता। जबकि मैंने उन्हें बताया कि मैं अभी आरोपी हूं, अभियुक्त नहीं।

जब कोई हल नहीं निकला तो हाई कोर्ट में रिट पिटिशन डाला। उस समय बार काउंसिल की परीक्षा नहीं दे पाई। लेकिन बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर नामांकन मिला और 2021 में मैंने बार की परीक्षा भी पास की।

महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताती हेमलता।

महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में बताती हेमलता।

अब तक हजारों RTI डाले, एक अधिकारी पर लगा 25,000 जुर्माना

मैं वकालत के पेशे में हूं। हर केस पर मैं पूरे रिसर्च के साथ काम करती हूं। इसमें सूचना का अधिकार मेरे लिए सबसे बड़ा हथियार बना।

2013-14 से लेकर अबतक हजारों आरटीआई डाल चुकी हूं।

जमीन के पट्‌टे से जुड़े दस्तावेज को लेकर एक बार मैंने सूचना मांगी। तहसीलदार ने सूचना नहीं दी तो सूचना आयोग ने उन पर 25,000 रुपए जुर्माना लगाया।

कई मामलों में केस को मजबूत बनाने में आरटीआई से काफी मदद मिली।

मृत व्यक्ति को जाति प्रमाण दिलवाया, हत्या के दोषियों को उम्रकैद

जमीन विवाद में एक व्यक्ति की हत्या हुई थी। इस केस में पुलिस ने एट्रोसिटी एक्ट नहीं लगाया।

यह धारा लगाने के लिए पुलिस मृत व्यक्ति का जाति प्रमाणपत्र मांग रही थी। तहसीलदार कहता कि मरे हुए व्यक्ति का जाति प्रमाणपत्र नहीं बनता।

रायपुर में ऐसे ही केस में मृत व्यक्ति का जाति प्रमाणपत्र बना था। इस उदाहरण के साथ मैंने उसका जाति प्रमाण पत्र बनवाया। तब एट्रोसिटी एक्ट लगा। मामले में दो लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई।

मुझ पर अक्सर दबाव बनाया जाता। लोग कहते-लड़की है क्या कर लेगी?

ये सब सुनकर मेरे अंदर पता नहीं हिम्मत कहां से मिल जाती? मैंने प्रशासन की गड़बड़ियां कभी बर्दाश्त नहीं की और गलत बात पर आवाज उठाई।

ससुराल में मैं प्रताड़ित हुई पर पति ने तलाक के लिए अर्जी दी

2012 में मेरी शादी हुई। लेकिन जमीन के मामले में जेल भेजे जाने और सारे बवाल में घसीटे जाने पर ससुराल वाले नाराज हो गए। वो नहीं चाहते थे कि मैं इस लगन से काम करूं।

मुझे हर दिन कुछ न कुछ सुनने को मिलता। पति ने भी सपोर्ट नहीं किया। उल्टे वो मेरे काम को लकेर परेशान करते।

पति ने तलाक के लिए अर्जी डाल दी। कोर्ट में वह हार गया। वह हाईकोर्ट गया। जब मामले पेंडिंग ही था तभी पति की बीमारी से मृत्यु हो गई। सास और ससुर भी बीमारी से चल बसे।

दोबारा शादी करने की इच्छा नहीं हुई। अब तो उनलोगों के लिए ही मेरा जीवन है जो इस तरह की पीड़ा से गुजरती हैं। घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को बताती हूं कि यह पॉवर का खेल है। बहू जब सास की भूमिका में होती है तो उसे पॉवरफुल होने का अहसास होता है। इसलिए महिलाएं खुद को मजबूत बनाएं।

घर बनाया, छोटी बहन की शादी करवाई

कई बार ऐसा होता है कि अक्सर ऐसा होता जब किसी को जरूरत से ज्यादा डराया जाता है तो उसका डर को लेकर डर पूरी तरह खत्म हो जाता है।

अब मुझे चुनौतियों से दो-दो हाथ करने में मजा आता है। अपने और लोगों के अधिकारों के लिए लड़ती हूं। अपने पैरों पर खड़ी हूं। अपने कमाए पैसों से घर बनाया है। छोटी बहन की शादी करवाई है। एसडीएम ने जो केस किया था, उस केस में भी दोषमुक्त हो गई।

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