3 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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बीमार पिता, बच्चों को अच्छा भविष्य देने के लिए संघर्ष करती मां, डर और अभाव के माहौल में बीते उनके बचपन ने उन्हें अंतर्मुखी बना दिया। शादी के बाद जिंदगी पटरी पर तो आई, लेकिन कुछ ही सालों बाद पति को बिजनेस में ऐसा नुकसान हुआ कि घर की माली हालत डगमगाने लगी।

40 साल की उम्र में जब उन्होंने अपना करियर शुरू करने का फैसला किया, तो परिवार में सब हैरान रह गए। गहने बेचकर उन्होंने जर्नलिज्म कोर्स की फीस चुकाई। पति का साथ छूटा तो करियर और बच्चों की परवरिश में खुद को व्यस्त कर लिया।

उन्होंने हर रिश्ता पूरी शिद्दत से निभाया, अपने करियर से भी। मगर अपने करियर से उनका रिश्ता गहरा होता ही गया। ‘ये मैं हूं’ में जानिए फिल्मों की चकाचौंध भरी दुनिया की सच्ची कहानी लिखने वाली राइटर फरहाना फारूक की कहानी…

गरीबी ने पढ़ाकू बनाया

मेरी परवरिश एक लोअर मिडल क्लास फैमिली में हुई। मां टीचर थीं, लेकिन पापा अक्सर बीमार ही रहते। हम मुंबई के मोहम्मद अली रोड में टिपिकल कंजर्वेटिव मुस्लिम मोहल्ले में रहते थे। हम तीन भाई-बहनों के लिए पेरेंट्स ने एक बहुत अच्छा काम ये किया कि हमें कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाया।

मेरी जिंदगी में और कोई खुशी तो थी नहीं इसलिए मैंने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाया। मैं पढ़ाई में अच्छी थी इसलिए स्कूल के बाद मेरा एडमिशन सेंट जेवियर्स कॉलेज में हो गया और वहां बीए की पढ़ाई के दौरान मेरी अच्छी-खासी ग्रूमिंग हो गई।

मां से संघर्ष करना सीखा

मेरे पापा बहुत अच्छी कविताएं लिखते थे। शायद मुझमें लिखने का हुनर पापा से ही आया। लेकिन पापा सीवियर डिप्रेशन के शिकार थे, जिसके कारण उनका व्यवहार हमेशा बदलता रहता। उन्हें गुस्से के ऐसे दौरे पड़ते कि घर का पूरा माहौल बिगड़ जाता। घर के माहौल के कारण मेरा स्वभाव शांत और डरपोक किस्म का हो गया।

पापा काम करने की स्थिति में नहीं थे इसलिए मां पर घर-बच्चों की जिम्मेदारी के अलावा कमाने का प्रेशर भी आ गया। मां घर में अकेली कमाने वाली सदस्य थीं इसलिए वो चाहती थीं कि किसी भी तरह हम दोनों बहनों की शादी अच्छे घर में हो जाए और मां हमारा भविष्य सुरक्षित हो जाए। मैं करियर में कुछ कर पाती इससे पहले ही ग्रेजुएट होते ही मां ने 20 साल की उम्र में मेरी शादी तय कर दी। बीमारी के कारण पापा बहुत जल्दी हमें छोड़कर चले गए।

फरहाना फारूक अपने दोनों बच्चों के साथ

फरहाना फारूक अपने दोनों बच्चों के साथ

शादी के बाद मैं बहुत खुश थी

मैंने बचपन से घर में गरीबी और बहुत उतार-चढ़ाव देखे। ससुराल की आर्थिक स्थिति मेरे मायके से बहुत अच्छी थी इसलिए मैं वहां बहुत खुश थी। 20 साल की लड़की को अगर अचानक बहुत सारे कपड़े-गहने खरीदने का मौका मिले, हर दिन कुछ नया पहनने को मिले तो वह खुश ही होगी। सूरज बड़जात्या की फिल्मों की तरह खुशहाल ससुराल पाकर मैं बहुत खुश थी।

शादी के बाद कुछ सालों तक ‘साहेब बीवी और गुलाम’ फिल्म के डायलॉग की तरह मैं भी नए नए गहने बनवाती और उन्हें तुड़वाती।

21 साल की उम्र में मेरी बेटी हो गई थी और 24 साल में मैं दूसरे बच्चे की मां बन गई।

बिजनेस में नुकसान से बदली जिंदगी

ससुराल में हमारा ‘बांधनी’ फैब्रिक का बिजनेस था। हम एक्सपोर्ट भी करते थे। फिर हमारे बिजनेस में नुकसान होना शुरू हुआ और घर की स्थिति बिगड़ती चली गई। हमारा संयुक्त परिवार धीरे धीरे बिखरता चला गया। परिवार के कुछ सदस्य विदेशों में बस गए। मेरे पति पर इतना कर्ज हो गया कि घर का खर्च चलाना मुश्किल हो गया।

मैं खुद को बदलना चाहती थी

मेरी मां रिटायर्ड होने के बावजूद हर महीने अपनी पेंशन के पैसों में से मुझे घर खर्च देती थीं। मुझे मां से पैसे लेना अच्छा नहीं लगता था। मां ने पूरी जिंदगी संघर्ष किया और बुढ़ापे में भी उन्हें हमारा दुख देखना पड़ रहा था।

मैं जब सड़क पर छोटे-छोटे बच्चों को अखबार, पेन, फूल बेचते देखती, तो मुझे खुद पर गुस्सा आता। मैं सोचती, ये इतने छोटे होकर मेहनत करके पैसे कमाते हैं, तो मुझे भी कुछ करना चाहिए। मुझे अपनी मां से पैसे नहीं लेने चाहिए। लेकिन मैं क्या कर सकती हूं ये मुझे समझ नहीं आ रहा था।

गहने बेचकर की पढ़ाई

मैंने एक दिन जर्नलिज्म की क्लासेस के बारे में पढ़ा। मैंने घर में कहा कि मैं जर्नलिज्म का कोर्स करना चाहती हूं। घर में सब हैरान थे कि 40 साल की उम्र में पढ़ाई करने की जरूरत क्या है? लेकिन मैंने जिद पकड़ ली। पति खुद इतने उलझे थे कि उन्होंने मुझे रोका नहीं। मेरे पास फीस भरने के लिए 13 हजार रुपए नहीं थे इसलिए मैंने अपने गहने बेच दिए। परिवार में सबको मेरा ऐसा करना अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं जानती थी कि मैं सही हूं।

मैं अपनी क्लास की सबसे सीनियर स्टूडेंट थी। जब मैं पहले दिन लेक्चर अटेंड करने गई तो गेट कीपर को लगा कि मैं बच्चों को पढ़ाने के लिए आई हूं। लेकिन एक साल के जर्नलिज्म डिप्लोमा ने मेरी जिंदगी बदल दी। मैंने जर्नलिज्म की पढ़ाई में भी टॉप किया। उस समय मैं और मेरे बच्चे एक साथ पढ़ रहे थे।

ऐसे शुरू हुआ लिखने का सफर

मुझे फिल्मों ने हमेशा से प्रभावित किया। मेरा ये मानना है कि फिल्में बड़ी उम्र के लोगों की फेरी टेल्स (परियों की कहानियां) होती हैं। जो जिंदगी हम जी नहीं पाते उसे पर्दे पर देखना हमें अच्छा लगता है इसीलिए फिल्मों का क्रेज कभी कम नहीं होता।

मुझे पहली जॉब में बॉलीवुड के लिए लिखने का मौका मिला, जिससे मुझे काम करने में बहुत मजा आने लगा। उसके बाद तो पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। मुझे फिल्मों की हर जानी मानी मैगजीन में काम करने का मौका मिला।

एंटरटेनमेंट जर्नलिज्म ने मुझे एक नई पहचान दी। मेरे लिखने के अंदाज में ह्युमन एंगल होता है इसलिए सेलिब्रिटीज को मेरे आर्टिकल पसंद आते हैं। रिटायरमेंट के बाद भी लिखने का सफर जारी है। मुझे सतही स्टोरीज लिखना पसंद नहीं। मेरा ये मानना है कि ऐसा लिखो कि पढ़ने वाला लिखने वाले के बारे में भी जानना चाहे। मुझे सोशल मीडिया पर भी अपने पाठकों का बहुत प्यार मिलता है। इस समय मैं भारत के अलावा विदेशी वेबसाइट्स के लिए भी लिख रही हूं। मेरा हुनर मेरे साथ है इसलिए काम की कोई कमी नहीं है।

दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान के साथ फरहाना फारूक

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एक फैसला जिंदगी बदल सकता है

आज मेरी बेटी न्यूट्रीशनिस्ट बन चुकी है और बेटे का बिजनेस है। उस दिन अगर मैं 40 की उम्र में पढ़ने की जिद न करती तो पता नहीं हमारे घर की हालत क्या होती। मेरा करियर ठीक से शुरू भी नहीं हुआ था कि पति हमें छोड़कर इस दुनिया से चले गए। जिंदगी हमें मौके देती है, हमें बस ऊपर वाले के इशारे को समझना चाहिए। अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलकर आगे बढ़ना चाहिए।

इस्लाम में विधवा होने के बाद महिला साढ़े चार महीने तक घर से बाहर नहीं निकलती, लेकिन मैंने पति के जाने के बाद 10वें दिन से ऑफिस जाना शुरू कर दिया था। घर पर रहती तो और दुखी होती, मुझे अपने बच्चों के लिए काम करना था इसलिए मैंने ऑफिस जाने का फैसला किया।

औरत की कमाई

मुझे लगता है कि आत्मनिर्भरता महिला को मजबूत बनाती है। जब आपका अपना करियर होता है, अच्छी कमाई होती है, तो पति और परिवार के लोगों का आपके प्रति व्यवहार बदल जाता है। मां ने इस सच को समझा इसलिए स्कूल में पढ़ाने के साथ ट्यूशन पढ़ाना भी शुरू कर दिया, ताकि बच्चों की पढ़ाई में कोई दिक्कत न आए। अगर मैं कमाने का फैसला न करती तो अपने बच्चों को अच्छा भविष्य नहीं दे पाती। अपनी और परिवार की जिंदगी संवारने के लिए महिला का आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है।

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