2 घंटे पहले

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सूरज डूबने से पहले जो मरियल-सा उजाला फैला होता है, वही हर ओर पसरा हुआ था। खिड़की से सटकर खड़ी हो गई कनक। मन हुआ कि बालकनी में कुर्सी डालकर बैठ जाए और सड़क पर फैली आपाधापी को महसूस करे। एकांत को भंग करने का इससे अच्छा तरीका और क्या हो सकता है?

कनक का मन कभी-कभी यूं ही उलझ जाता है। आखिर है क्या इस मन में जो थकता नहीं है सोचते-सोचते? थकान महसूस हुई कनक को। सिरहाने को पीछे लगा पलंग पर पांव पसार कर बैठ गई।

यूं ही पलंग के हर हिस्से पर नजर दौड़ने लगी। साथ ही तो रोज सोता है नीलाभ। चादर पर हाथ फिसलने लगे, मानो नीलाभ के शरीर को सहला रहे हों। पति-पत्नी के बीच जो रिश्ता होना चाहिए, वह दोनों के बीच भी है। शारीरिक रूप से दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह तृप्त करते हैं। कनक को शरीर में सिहरन दौड़ती महसूस हुई। नीलाभ का स्पर्श, उसका चुंबन, प्यार करने का ढंग…कनक उत्तेजित होने लगी थी। फोन करें क्या, जल्दी आने को कहें…बहुत बचकाना सा लगेगा। विवाह के तीन वर्षों बाद भी निकटता की इतनी चाह।

पर क्या चाह सिर्फ शरीर की होती है। अगर ऐसा होता तो मन क्यों रिक्त रहता कनक का? पति-पत्नी की तरह रिश्तों को जीने का अर्थ यह तो नहीं कि आपस में प्रेम भी हो। नीलाभ उसको रिश्तों का इस तरह समीकरण करते देख हमेशा ताज्जुब प्रकट करता है। पति और प्रेम—ये दोनों अलग-अलग खानों में रखने वाली चीजें हैं। पति-पत्नी का रिश्ता एक समझौता होता है, कोई लाख इस बात को झुठलाए पर यही सच है। हां, प्रेम उस सूरत में हो सकता है जब प्रेम होने के बाद उसकी परिणति विवाह में हुई हो, अन्यथा पति-पत्नी सारी जिंदगी एक समझौते की तरह बिताते हैं।

पर कनक यह सब क्यों सोचने लगी। नीलाभ और वह तो बहुत स्पष्ट सोच रखते हैं। ठीक ही कहता है वह, ‘यह रिश्ता एक ट्रायल बेसेस पर होता है, कभी-कभी यह सारी जिंदगी चलता है तो कभी-कभी वे एक-दूसरे को जल्दी ही स्वीकारने लगते हैं। सच तो यह है कनक, आदी हो जाते हैं, जैसे मैं तुम्हारा आदी हो गया हूं।’

आदी तो कनक भी हो गई है। तीन साल का वक्त कम नहीं होता। चाहे कितनी भी दूरियां हों, मनमुटाव हो, प्यार या एक-दूसरे को सहने की आदत पड़ ही जाती है। आदत शब्द अकसर कनक को उलझा जाता है, क्या मात्र आदत हो जाने से दो व्यक्ति साथ एक लंबा अर्सा गुजार सकते हैं। कोई तो लगाव या अनकहा भाव उनके बीच अवश्य होगा। वह नीलाभ को पसंद करती है, उसके साथ बिताया हर क्षण उसके लिए यादगार बन जाता है। वे इतनी ज्यादा एक दूसरे को प्यार देते हैं कि उनके बीच तकरार की आशंका शायद ही कभी पैदा हुई हो। एक आदर्श पति पत्नी के रूप में समाज उन्हें इज्जत देता है, फिर भी न जाने क्यों नीलाभ को लगता है कि वह समझौता कर रही है उसके साथ रहते हुए।

नीलाभ और वह अपनी अपनी व्यस्तता में मस्त हैं और इसलिए अपने बीच एक बच्चे को भी नहीं आने दिया है। उसने कभी यह बात उठाई भी तो नीलाभ हंस पड़ता। ‘‘ट्रायल पर टिके रिश्तों में क्यों कोई झंझट पालना चाहती हो? कल को तुम मुझसे ऊब कर अलग होना चाहो तो अकेले जाना आसान होगा, पर बच्चे के बाद एक बंधन हो जाएगा।

‘‘हद करते हो, न जाने किस तरह की बातें तुम सोचते हो?’’

‘‘तुम जानती हो मैं इस तरह की बातें क्यों सोचता हूं।’’

तीर की तरह चुभी थी वह बात कनक को। ‘‘तुम कब तक मुझे यूं छलनी करते रहोगे? मेरे मन में कोई छल होता तो क्या तुमसे कुछ छिपाती? भूल क्यों नहीं जाते? मेरे प्यार या समर्पण में कोई कमी तुम्हें नजर आई?’’

‘‘नहीं, पर क्या पता कल राजीव तुम्हारे सामने आकर खड़ा हो गया तो क्या तुम अपने आपको संभाल पाओगी?’’

कनक की आंखों में नमी और चेहरे पर दर्द के निशां आ गए थे। ‘‘नीलाभ, तुम जानते हो कि राजीव अब इस दुनिया में नहीं है। उसकी लाश नहीं मिली। सरकार ने भी उसे मृत मान लिया है। वैसे भी अब उसे छिपने की क्या जरूरत है? युद्ध में बंदी बने सारे भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान सरकार ने कब का रिहा कर दिया है।’’

‘‘जब तक लाश न मिले, तब तक जीवित होने की उम्मीद हो सकती है। हो सकता है वह किसी और वजह से सामने न आ रहा हो…’’ नीलाभ अचानक पूरी बात कहते कहते चुप हो गया था।

वह राजीव से प्यार करती थी, यह बात उसने शादी से पहले ही बता दी थी। राजीव का बहुत इंतजार करने के बाद उसके घरवालों ने उसे शादी करने को बाध्य किया था। वह यकीन ही नहीं करना चाहती थी कि राजीव इस दुनिया में नहीं है। यही वजह है कि आपसी लगाव होने के बावजूद नीलाभ अपने रिश्ते को ट्रायल बेसेस पर चलने वाला मानता है। न जाने उसे क्यों लगता है कि अगर राजीव वापस लौट आया तो कनक उसे छोडक़र चली जाएगी।

डोरबेल बजी। नीलाभ था। ‘‘आज ऑफिस नहीं गईं। सब ठीक है न?’’

‘‘हां।’’ बहुत अनमने ढंग से कनक ने जवाब दिया।

‘‘क्या बात है?’’

‘‘कुछ तो नहीं।’’

‘‘कहीं बाहर चलें?’’

‘‘नीलाभ, मैं मां बनना चाहती हूं।’’

‘‘अच्छा तो यह बात है।’’ जोर से हंस पड़ा वह।

‘‘स्टॉप इट नीलाभ, क्यों तुम मेरे धैर्य का परीक्षा लेते रहते हो? अब तुम्हारे सिवाय कोई नहीं है मेरी जिंदगी में। मेरा यकीन करो।’’

‘‘मुझे तुम पर पूरा यकीन है, कनक’’ बांहों में भर लिया नीलाभ ने उसे। अच्छा यह सब छोड़ो, कल सुबह एक गेस्ट आ रहा है।’’

सुबह भी वह उदास थी, इसलिए नीलाभ से पूछा तक नहीं कि कौन गेस्ट आ रहा है। नाश्ता तैयार कर ही रही थी कि दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला तो पांव एकदम लडख़ड़ाने लगे, माथे पर पसीने की बूंदें चमक उठीं। अपनी चिर-परिचित मुस्कान लिए सामने राजीव खड़ा था।

नीलाभ के शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे, ‘हो सकता है, वह सामने न आ रहा हो।’ तो क्या नीलाभ को पता था कि राजीव जिंदा है?

आखिर राजीव को सामने लाकर नीलाभ क्या प्रूव करना चाहता है। सवालिया निगाहों से कनक ने उसे देखा।

‘‘तुम्हें याद होगा कोई छह महीने पहले जब हम तुम्हारे मायके गए थे तुम्हारे भतीजे के मुंडन में। राजीव उस दिन वहां था। तुम्हारे पापा की बातें मैंने सुन ली थीं। वह कह रहे थे,‘राजीव अब तुम चले जाओ, कनक अपने संसार में खुश है। तुम उसके सामने आ गए तो शायद वह बिखर जाएगी। हो सकता है वह तुम्हारे पास आना चाहे। उसकी खुशी के लिए यहां से चले जाओ। तुम उसके लिए मर चुके हो।’ उसके बाद मैंने राजीव से कॉन्टैक्ट किया और सोचा कि उसे तुम्हारे सामने लाकर खड़ा कर दूं। फिर जो फैसला तुम करोगी, वह मुझे मंजूर होगा। या तो ट्रायल जीवन भर का साथ बन जाएगा या खत्म हो जाएगा। राजीव को इस बात के लिए कंविंस करने में मुझे बहुत वक्त लग गया।’’ नीलाभ की आवाज का कंपन कनक महसूस कर पा रही थी।

इतना बड़ा रिस्क केवल नीलाभ ही ले सकता था। अपनी पत्नी को खुशी देने के लिए, उसके प्यार को सामने ला खड़ा किया था। राजीव को देख वह बीते दिनों की ओर लौटी अवश्य थी, पर उसने जब मन को टटोला, अपनी आंखों को बंद किया तो नीलाभ का चेहरा ही नजर आया। वह चाहने लगी है नीलाभ को।

‘‘नीलाभ, अपने गेस्ट को नाश्ता नहीं कराओगे?’’

कनक को इससे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं थी।

राजीव जा चुका था। नीलाभ ने कनक को सीने से लगाते हुए कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो कनक, मैं तुम्हें अच्छे से जानता हूं, पर फिर भी ऐसी भूल कर बैठा। मैं स्वार्थी नहीं कहलाना चाहता था, इसीलिए तुम्हें हर खुशी देने की चाह थी मन में।’’

‘‘कुछ मत कहो नीलाभ। तुमसे बंधने के बाद कभी मेरे मन ने कुछ नहीं चाहा था, हालांकि यह समझने में मुझे भी समय लगा। पर अपने प्रेम की स्वीकृति की मोहर जो मैं आज तक नहीं लगा पाई थी, वह आज लगाती हूं। यकीन मानो मेरे लिए न तो यह विवाह कोई ट्रायल है, न ही कोई समझौता। तुम मुझे अच्छे लगते हो, प्यार अगर किसी को कहते हैं तो मेरे अंदर वह एहसास जन्म ले चुका है। तुम हो ही इतने अच्छे रंजन। फिर हमारे बीच कोई तीसरा कैसे आ सकता है?’’

‘‘हमारा बच्चा भी नहीं,’’ नीलाभ मुस्कराया तो कनक के चेहरे पर शर्म की लालिमा फैल गई।

-सुमन बाजपेयी

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