2 घंटे पहलेलेखक: कमला बडोनी

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43 साल की उम्र में फिर से पढ़ाई शुरू कर उन्होंने अपने करियर को एक नई दिशा दी। वो लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त करने का काम करती हैं। साथ ही बच्चों और बड़ों को शिष्टाचार के गुर सिखाती हैं ताकि उनकी तरक्की के रास्ते खुलें। वो लोगों को पहनावे का सलीका और बातचीत का सही तरीका सिखाती हैं। गरीब बच्चों, खासकर लड़कियों को पढ़ाई करने और करियर बनाने में मदद करती हैं। झारखंड स्टेट काउंसिल फॉर चाइल्ड वेलफेयर में तत्कालीन महामहीम राज्यपाल दौपदी मुर्मू (वतर्मान राष्ट्रपति) के अधीन उन्होंने काम किया है। ‘ये मैं हूं’ में जानिए इमेज मेकर, साइकोलॉजिस्ट, शिक्षाविद, समाज सेविका गीता शर्मा की कहानी…

पापा से सीखा जीने का सलीका

मेरे पापा राष्ट्रपति भवन स्कूल में शिक्षक थे। मैंने उन्हें हमेशा वेल ड्रेस्ड देखा था। उनकी बातों से प्रभावित होकर अक्सर लोग उनसे मिलने घर तक आ जाते। पापा के व्यक्तित्व की खासियत मुझे बहुत अच्छी लगती। उनसे ही मैंने शिष्टाचार के गुण सीखे। हमें अच्छे संस्कार देने के लिए मां ने घर में रहना चुना। उन्होंने हम चार भाई-बहनों की परवरिश में जीवन गुजार दिया।

आप कितने ही पढ़े लिखे क्यों न हों, लेकिन अगर आपने में तमीज और तहजीब की कमी है तो आप काबिल नहीं कहलाएंगे। अगर आप किसी से सम्मानजनक ढंग से नहीं पेश आते, आपकी चाल ढाल पहनावा, तमीज का नहीं है, आपमें मैनर्स की कमी है तो इससे व्यक्ति के पूरे व्यक्तित्व पर निगेटिव असर पड़ता है। जो बने बनाए काम भी बिगाड़ देता है। ये सभी बातें पर्सनैलिटी की ‘सॉफ्ट स्किल्स’ कहलाती हैं जिन पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। इन सॉफ्ट स्किल्स का व्यक्ति की सफलता में बहुत हाथ होता है।

गीता शर्मा पति कौशल कुमार के साथ

गीता शर्मा पति कौशल कुमार के साथ

लव मैरिज आसान नहीं थी

मेरी परवरिश और पढ़ाई दिल्ली में हुई। चार भाई-बहनों में मैं सबसे छोटी हूं इसलिए बचपन से सबका प्यार मिला। हिस्ट्री में ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने बामर लॉरी के साथ ट्रैवल एंड टूरिज्म का काम करना शुरू किया।

हमारी लव मैरिज है, हम कॉलेज फ्रेंड्स रहे हैं। पति कौशल बिहार से हैं इसलिए परिवार शादी के लिए राजी नहीं था। उस समय लव मैरिज करना इतना आसान नहीं था। मेरे केस में एक फायदा ये था कि मैं घर में सबसे छोटी थी। मेरी शादी से किसी और की शादी न हो पाने का डर नहीं था। हमें पेरेंट्स को शादी के लिए मनाने में 4-5 साल लग गए। तब तक मैं अपना ट्रैवल एंड टूरिज्म का काम करती रही।

शादी के बाद भी काम जारी रखा

कौशल उस समय स्टेट सर्विस के लिए पीसीएस की तैयारी कर रहे थे। जब उनका सिलेक्शन हो गया, तब हमने शादी की। पति की पोस्टिंग रांची में थी इसलिए शादी के बाद मैं भी उनके साथ वहीं शिफ्ट हो गई। शादी के बाद भी मैं काम करती रही, लेकिन बेटी की परवरिश की खातिर मैं करियर को बहुत

समय नहीं दे सकी। मैं झारखंड में स्कूल में जाकर बच्चों को एटिकेट्स और सॉफ्ट स्किल्स सिखाती थी। मैं उन बच्चों की पढ़ाई के लिए काम करती रही हूं जिनके माता-पिता उन्हें पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। उनमें से एक लड़की का मेडिकल में सिलेक्शन हो गया है। बच्चों की तरक्की देखकर बहुत खुशी होती है।

गीता शर्मा काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट हैं और बच्चों को लाइफ स्किल भी सिखाती हैं

गीता शर्मा काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट हैं और बच्चों को लाइफ स्किल भी सिखाती हैं

43 साल की उम्र में फिर शुरू की पढ़ाई

बेटी जब बड़ी हो गई तो मेरे पास अपने लिए समय बचने लगा। मैंने बेटी की बोर्ड एग्जाम के साथ फिर से पढ़ाई का फैसला किया और इमेज कंसल्टिंग एवं सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग डिप्लोमा से शुरुआत की और उसे पूरा किया। उस समय बेटी अनुषा कॉलेज में थी और हम दोनों साथ में पढ़ाई कर रहे थे। लॉकडाउन में जब हम सब घरों में बंद हो गए उस समय का उपयोग मैंने पढ़ाई के लिए किया।

आत्मविश्वास सफलता की पहली सीढ़ी

रांची से दिल्ली आने के बाद 48 वर्ष की आयु में एमए (साइकोलॉजी) में दाखिला लिया। अपने आप से किया वादा कि मैं खुद को अपने 50वें जन्मदिन पर मास्टर्स की डिग्री का तोहफा दूंगी उसे पूरा किया, वो भी फर्स्ट डिविजन से।

मेरा मानना है कि किसी भी काम को पूरा करने के लिए या करियर में आगे बढ़ने के लिए कॉन्फिडेंस सबसे ज्यादा जरूरी है। मैं कॉन्फिडेंस बढ़ाने के गुर सिखाती हूं। साथ ही युवाओं को उठने-बैठने, बात करने के मैनर्स और ड्रेसिंग सेंस का आर्ट सिखाती हूं। मैंने अपने अनुभवों से पहले खुद सीखा, फिर मैंने जो सीखा उससे दूसरों के साथ शेयर किया। मैं फेमस पर्सनैलिटी को स्टडी करती हूं।

गीता शर्मा पति कौशल कुमार और बेटी अनुषा के साथ

गीता शर्मा पति कौशल कुमार और बेटी अनुषा के साथ

मानसिक स्वास्थ्य पर बात नहीं होती

अब मैं काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट हूं। मैंने ये महसूस किया है कि हमारे देश में अभी भी मेंटल हेल्थ को लेकर खुलकर बात नहीं होती। ऑनलाइन अपनी मानसिक समस्याएं बताने में लोग कम झिझकते हैं। लेकिन इसमें मरीज की प्राइवेसी का ख्याल रखना काउंसलर की जिम्मेदारी बनती है। अकेलापन मेंटल हेल्थ की सबसे बड़ी वजह है। आज के समय में व्यक्ति अकेला है और अपनी मन की बात कहने के लिए सामने कोई नहीं दिखता। आपसी विश्वास और हेल्दी कॉम्पिटिशन की भी कमी है। समाज में एक दूसरे के प्रति जलन की भावना तेजी से बढ़ी है। टेक्नोलॉजी ने जहां समाज से तरक्की की है वहीं समाज आत्मकेंद्रित भी बना है। इन सबका व्यक्ति के मन पर असर हुआ है जिससे मेंटल हेल्थ की समस्याएं खड़ी हुई हैं।

बचपन से लाइफ स्किल्स सिखाना जरूरी

हमारे देश में बच्चों को लाइफ स्किल्स सिखाने का रिवाज नहीं है। गर्मियों की छुट्टियों में इसकी शुरुआत की जा सकती है। इस समय बच्चों के पास समय होता है। लेकिन उन्हें पढ़ाई की तरह नहीं, खेल खेल में मैनर्स सिखाएं। गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों को खाना बनाना, सब्जियां काटना, कपड़े-बर्तन धोना, घर साफ करना, गार्डनिंग जैसी स्किल्स सिखाएं। इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वो खुशी खुशी काम सीखते हैं।

जो लोग खुद स्ट्रगल करके आगे बढ़े हैं, वो चाहते हैं कि उनके बच्चों को ऐसी तकलीफें देखने को न मिलें। बच्चों को सुविधाएं देते समय लोग ये भूल रहे हैं कि सुविधाओं की अति बच्चों को बिगाड़ रही है। उन्हें चीजों की कद्र नहीं है, ‘ना’ सुनने की आदत नहीं है। बच्चों को हर परिस्थिति से जूझना सिखाने के लिए उन्हें बचपन से सही ट्रेनिंग देनी जरूरी है।

मेरा काम बढ़ने लगा है

मैंने ‘ल्यूमियर इमेज कंसल्टेंसी’ से एक बार फिर से अपने करियर की शुरुआत की। अब मैं इमेज मेकर के साथ साथ काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट के तौर पर जानी जाती हूं। क्योंकि सिर्फ इमेज मैनेजमेंट और सॉफ्ट स्किल्स ही काफी नहीं, लोगों की साइकोलॉजी को समझना भी जरूरी है।

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